सारंगढ़। Sarangarh News : छत्तीसगढ़ की प्राचीन संस्कृति मे उपेक्षित रहने वाला सारंगढ़ अंचल मेे दशहरा उत्सव को अनोखे ढ़ंग से मनाया जाता है। यहाँ पर रियासतकाल से ही विजयदशमी पर्व पर गढ़ विच्छेदन का कार्यक्रम आयोजित किया जाते आ रहा है। यह गढ़ उत्सव लगभग 200 साल से भी पुरानी है।
छत्तीसगढ़ की प्राचीन संस्कृति मे उपेक्षित रहने वाला सारंगढ़ अंचल मेे दशहरा उत्सव को अनोखे ढ़ंग से मनाया जाता है। यहां पर रियासतकाल से ही विजयदशमी पर्व पर गढ़ विच्छेदन का कार्यक्रम आयोजित किया जाते आ रहा है। यह गढ़ उत्सव लगभग 200 साल से भी पुरानी है। यहाँ पर मिट्टी के टिले रूपी गढ़ के ऊपर मे सैनिक रूपी रक्षक रहते है वही गढ़ के नीचे मे पानी का गड्ढ़ा रहता है जहा पर प्रतिभागी मिट्टी के टिले को नुकीले औजार से गड्ढा खोदकर ऊपर चढ़ते है जो प्रतिभागी सुरक्षा प्रहरियो से जहोशद कर गढ़ में चढाने में सफल होते है उन्हे गढ़ विजेता का पदवी दिया जाता है। इस गढ़ उत्सव को देखने के लिये आस पास के लगभग 50 हजार की भीड़ इस कार्यक्रम को देखने को लिये जुटती है। वही इस उत्सव स्थान पर विशाल मेला लगता है।
छत्तीसगढ़ मे मनाये जाने वाले दशहरा उत्सव के विभिन्न परंपराओ के बीच सारंगढ़ अंचल का दशहरा उत्सव अपनी अलग ही पहचान और गौरवगाथा समेटे हुए है। इस दशहरा उत्सव का आयोजन लगभग 200 वर्षो से होते आ रहा हे जिसका आयोजन आज भी राजपरिवार गिरीविलास पैलेस करते आ रहे है। इस गढ़ समारोह मे सारंगढ़ के प्रसिद्ध खेलभांठा स्टेडियम के पास गढ़ बना हुआ है यह गढ़ लगभग 200 वर्ष पुराना है यह मिट्टी का एक टिला है जिसके सामने मे 50 फीट की मोटाई से मिट्टी का टीला कम होते होते ऊंची होते जाती है जहा पर लगभग 40 फीट की ऊंचाई पर जाकर यह टीला तीन फीट चैड़ी ही रह जाती है जहा पर ऊपर मे पीछे से सीढ़ी से सुरक्षा प्रहरी टीला से ऊपर मे रहते है वही इस टीला के स्थापना के ठीक सामने लगभग 15 फीट चैड़ा तथा 10 फीट गहरा तालाबनुमा गड्ढा मे पानी भरा रहता है जहा पर से इस गढ़ मे नुकीला हथियार से गड्ढा करके ऊपर चढ़ते है तथा समीप मे सीमारेखा बनी रहती है जिसके अंदर से प्रतिभागी को ऊपर चढ़ना रहता है। जिसमें उनके ऊपर के सुरक्षा प्रहरियो से लोहा लेना होता है। पूर्व रियासत काल मे यहा की सेना ऊपर मे रहती थी जबकि आजकल ऊपर मे वालेंटियर व उत्सव सहयोगी रहते है।
इस आयोजन का शुभारंभ सारंगढ़ राजपरिवार के राजा के द्वारा शांति और समृद्धि के प्रतीक नीलकंठ पक्षी को खुले गगन मे छोडकऱ किया जाता है। तथा क्षेत्रवासियो को विजयीदशमी पर्व का शुभकामनाये प्रदान करते है। उसके बाद यह प्रसिद्ध गढ़ उत्सव प्रारंभ होता है जहा पर लगभग 40 से 50 प्रतिभागी इस गढ़ मे चढऩा प्रारंभ करते है तथा एक दूसरे का पैर खिच कर विजेता बनने से रोकते है। वही पर जो प्रतिभागी ऊपर के सुरक्षाकर्मी से संघर्ष करके तथा नीचे के पैर खीचने वाले से जीत कर गढ़ पर विजयी प्राप्त करता है उसे सारंगढ़ का वीर की पदवी मिलती है। यह विजेता ही बगल मे स्थापित लगभग 40 फीट ऊंचे रावण को आग के हवाले करता है। तथा विजेता को धोती कुर्ता और 501रू नगद प्रदान किया जाता है। पूर्व रियासतकाल मे गढ़ विच्छेदन में विजय श्री धारण करने वाले को राजमहल मे सम्मान के साथ राजदरबार में बिठाया जाता था।
सारंगढ़ रियासत के द्वारा आयोजित होने वाले विजयदशमी पर्व के दिवस इस गढ़ उत्सव लगभग 200 वर्ष पुरानी है इस बारे मे जानकार बताते है कि रियासत काल मे अपने सैनिको को उत्साहित करने के लिये राजपरिवार के द्वारा सैनिकों के बीच मे इस प्रतियोगी का आयोजन किया जाता रहा है जिसमे विजेता सैनिक को वीर की पदवी दी जाती थी तथा राजदरबार मे उसे विशेष स्थान प्रदान किया जाता था। सैनिकों के बीच मे स्वस्थ प्रतियोगिता के रूप मे इस गढ़ उत्सव का आयोजन किया जा रहा है।
कई हस्तियां आई है इस आयोजन में..
सारंगढ़ के इस प्रसिद्ध गढ़ विच्छेदन उत्सव को देखने के लिये बड़ी-बड़ी हस्तियो ने यहा की शोभा बढ़ाई है। सारंगढ़ राजपरिवार के पूर्व राजा स्व.राजा नरेश चंद्र सिंह अविभाजित मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके है उनके आमंत्रण पर म.प्र.के प्रथम मुख्यमंत्री स्वं. रविशंकर शुक्ल जी, स्व.कैलाशनाथ काटजू जी तथा गोविंद सिंह मंडलोई जी सहित लगभग 2 दर्जन से ’ज्यादा केन्द्रीय तथा राज्य के केबिनेट मंत्री इस उत्सव मे शामिल हो चुके है। जानकार बताते है कि सन् 60 के दशक मे इस आयोजन मे विदेशी पर्यटक भी देखने आ चुके है। गढ़ उत्सव देखने वाले को भी वीर कहा जाता है! सारंगढ़ के इस गढ़ उत्सव की परंपरा मे विजेता को ही पूजा नही जाता है बल्कि इस आयोजन को देखने के लिये शहर के हर घर से युवाओं तथा पुरूषों को जाना अनिवार्य किया गया था। इस कारण से गढ़ विच्छेदन को तथा रावण दहन को देख कर घर वापस आने वाले घर के सदस्यों को घर के महिलाओ के द्वारा पूजा अर्चना किया जाता है तथा उन्हे सोनपत्ती को दिया जाता है। आधुनिक परिवेश मे यह सोनपत्ती का स्थान अब रूपये ने ले लिया है। इस पूजा अर्चना के बाद घर के पुरूष सदस्य मां काली और मां सम्लेश्वरी का आर्शीवाद लेने मंदिर जाते है जहा पर इस दिन जबरदस्त भींड उपस्थित रहती है। शांति और समृद्धि का प्रतीक ‘नीलकंठ’ इस उत्सव के शुभांरभ मे राजपरिवार के द्वारा क्षेत्रवासियो को दशहरा पर्व की बधाई देते हुए सारंगढ़ राजपरिवार का राजकीय पक्षी ‘नीलकंठ’ को खुले गगन मे छोड़ा जाता है जहा पर हजारो की संख्या मे उपस्थित क्षेत्रवासी इस दिन नीलकंठ पक्षी का दर्शन को काफी शुभ मानते है तथा इस नीलकंठ को पक्षी को प्रणाम करते है।
गढ़ उत्सव को संरक्षित करना है जरूरी..
सारंगढ़ अंचल मे मनाया जाने वाला गढ़ उत्सव को पूरे प्रदेश मे अनोखा है। जिसके कारण से सारंगढ़ अंचल के साथ साथ सरसिंवा, भटगांव, बिलाईगढ़, चंद्रपुर, सरिया, बरमकेला और कोसीर पट्टी से काफी संख्या मे श्रद्धालु आते है तथा अंचल का प्रसिद्ध गढ़ उत्सव का आनंद उठाते है। इस आयोजन को देखने के बाद घर पहुॅचने वाले युवाओ को घर मे पूजा अर्चना किया जाता है। इस गौरवशाली आयोजन की गरिमा बनाये रखने तथा पूरे विश्व मे इस परंपरा को एक विशेष पहचान दिये जाने के लिये इस गढ़ उत्सव को छत्तीसगढ़ राज्य के संस्कृति विभाग को अपने हाथ मे ले लेना चाहिये तथा पर्याप्त संरक्षण प्रदान करना चाहिये। सारंगढ़ रियासत का यह ऐतिहासिक गढ़ उत्सव राजपरिवार के द्वारा ही आज भी संचालित होती है ऐसे मे इसे शासन अपने हाथ मे लेकर आयोजन करावे तो यहा की यश और किर्ती और दूर दूर तक पहुँचेगी।