जगदलपुर। CG NEWS : 75 दिनों तक चलने वाली ऐतिहासिक विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा पर्व के तहत रैनी की रस्म अदा की गई। इस रस्म में 8 पहिए वाले 2 मंजिला विशालकाय विजय रथ में मां दंतेश्वरी के छत्र को विराज मान कर विधि- विधान से गोलबाजार की परिक्रमा कराई गई। इसके बाद रथ को दंतेश्वरी मंदिर के सामने सिंहड्योढी पर रोककर उसमें से मांई के छत्र को रथ से उतारकर मंदिर में रखा गया।इसके बाद इस रथ को ग्राम किलेपाल के माड़िया आदिवासियों द्वारा चोरी कर कुम्हड़ाकोट के जंगल ले जाया गया। आपको बता दें कि इससे पहले, बस्तर दशहरा पर्व के तहत बीते शुक्रवार रात मावली परघाव की रस्म अदा की गई। बस्तर दशहरा में भीतर रैनी और बाहर रैनी केवल रथयात्रा की कहानी नहीं, बल्कि राजा और प्रजा के बीच की आपसी बेहतर तालमेल समझ-बूझ और लोकतांत्रिक व्यवस्था का अनुपम उदाहरण भी है। दशहरे की परम्पराओं का निष्ठा से पालन और आस्था के निर्वहन के साथ अपनी जायज मांगों को राजा से मनवाने के लिये किलेपाल के माड़िया जनजाति के लोग, जिन्हें ही भीतर रैनी और बाहररैनी का रथ खींचने का विशेष अधिकार मिला है। उनकी कुछ मांगों को न मानने के विरोध स्वरूप वे आधी रात को रथ चुराकर शहर की सीमा के पास कुम्हड़ाकोट जंगल में छिपा देते हैं।