जगदलपुर। शहीद महेंद्र कर्मा विश्वविद्यालय के अकादमिक भवन सभागार में शनिवार को ‘भारतीय विज्ञान परंपरा और विज्ञान भारती’ विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि विज्ञान भारती, मध्य क्षेत्र के संगठन मंत्री विवस्वान जी ने कहा कि नालंदा विश्वविद्यालय जैसे कई ध्वंस के बावजूद हमारे प्राचीन विज्ञान वजूद में हैं। आज भी हमारा गृहस्थ जीवन भारतीय विज्ञान से जुड़ा है। रसोई में तुलसी, हल्दी के वैज्ञानिक उपयोग हो रहे हैं। हम छोटे-छोटे स्वास्थ्य परेशानियों का ईलाज घर में ही कर लेते हैं। आक्रमणकारियों ने हमारी सभ्यता, संस्कृति और मानवता के साथ हमारे दिमाग पर भी आक्रमण किया था जिसकी वजह से हमें अपनी पारंपरिक वैज्ञानिक बातें झूठी लगने लगी। श्री विवस्वान ने कहा कि हमें विज्ञान के बारे में अपना दृष्टिकोण निर्माण करने की जरूरत है। हम अपने पारंपरिक विज्ञान की बातें खुलकर करें। साहित्य, गीत, इत्यादि में उपलब्ध आसपास की पारंपरिक ज्ञान विज्ञान की बातों को डॉक्यूमेंटेशन कर किसी भी भाषा बोली में लोगों तक पहुंचाने का काम करें। हमें मॉडर्न साइंस को भी देशानुकूल बनाकर प्रयोग करना होगा। भारतीय विज्ञान के दिशा में अधिक से अधिक शोध हो।
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कुलपति प्रो मनोज कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि हमारी प्राचीन ज्ञान व विज्ञान पद्धति बहुत ही समृद्ध थी। आर्यभट, भास्कर, सुश्रुत, कणाद, नागार्जुन, ब्रह्मगुप्त, वराहमिहिर, चाणक्य, पातंजलि इत्यादि प्राचीन ऋृषियों के वैज्ञानिक दृष्टिकोण व अवधारणा वर्तमान समय के विज्ञान के आधार हैं। आधुनिक विज्ञान में भारतीय विज्ञान का बड़ा अंश समाहित है। हमारे प्राचीन दर्शन वैज्ञानिकी पर आधारित हैं। आज गणित भी भारतीय दर्शन का दूसरा रूप है। प्रो. श्रीवास्तव ने कहा कि हमारे प्राचीन ज्ञान विज्ञान को सरलीकरण करने की जरूरत है। उन्होंने बताया कि आज बाहर के वैज्ञानिक भारत आकर भारतीय प्राचीन ज्ञान विज्ञान पर रिसर्च कर रहे हैं। हमारा देश ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स(जीआईआई) में 133 देशों में 39वें स्थान पर आ गया है जो 2015 में 81वें स्थान पर था। प्रो. श्रीवास्तव ने कहा कि विश्व में विज्ञान की आवश्यकता के लिए विज्ञान भारती का रिसर्च बहुत उपयोगी है।
विशिष्ट अतिथि विज्ञान भारती के छग संयोजक डॉ. वरा प्रसाद ने कहा कि अतीत में हमारी परंपराओं को निकृष्टता के साथ पेश किया गया। इस कारण हम अपने आस पास के ज्ञान विज्ञान को बेकार मानने लगे। इसलिए हम विज्ञान के क्षेत्र में पीछे हो गए। हमसे स्व और स्वदेशी की भावना छीन ली गई। हमें फिर से अपने ज्ञान विज्ञान को विश्व मानक तक पहुंचाने का प्रयास करना है। विज्ञान भारती एक स्वदेशी विज्ञान आंदोलन है। इसके सहारे हम अपने प्राचीन खोई ज्ञान विज्ञान को शोध के सहारे सामने लाने का प्रयास कर रहे हैं।
संगोष्ठी के संयोजक डॉ. सजीवन कुमार ने अपने स्वागत उद्बोधन में कहा कि ऐसे संगोष्ठी आवश्यक हैं ताकि हम अपने समाज और संभाग की विज्ञान परंपराओं को जानें और उसे सैद्धांतिक रूप देने का प्रयास कर सकें।
आभार उद्बोधन में कुलसचिव डॉ. राजेश लालवानी ने कहा कि समस्या का निदान ढूंढने से बेहतर है हम समस्या को आने ही नहीं देने का प्रयास करें। हम अपनी जीवन शैली में वे चीज लाएं जो समस्या को जन्म न दे। ज्ञान विज्ञान की बातें किसी के लिए सीमित नहीं होती है। हमें स्थानीय उदाहरण के साथ साइंस को पढ़ाने का प्रयास करना चाहिए। हमें सिलेबस के साथ अन्य व्यवहारिक बातें भी जानना जरूरी है।
इस अवसर पर वरिष्ठ प्राध्यापक डॉ. शरद नेमा, डॉ. आनंद मूर्ति मिश्रा, डॉ. सुकृता तिर्की, डॉ. विनोद कुमार सोनी, डॉ. स्वपन कुमार कोले, डॉ. कुश नायक एवं विभिन्न संकाय के विद्यार्थी उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन डॉ. बीएल साहू ने किया। कार्यक्रम आयोजन में डॉ. दुर्गेश डिक्सेना व डॉ. नीरज वर्मा सक्रिय उपस्थिति रही।