जांजगीर-चांपा बलौदा जनपद पंचायत के ग्राम पंचायत महुदा ब में गांव की महिलाओं एवं पुरूष के स्व सहायता समूह ने कोसा (रेशम) उत्पादन में एक नई सफलता हासिल की है। इस समूह ने कृमि पालन (रेशम के कीड़े पालना) से न सिर्फ अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत किया है, बल्कि गांव के अन्य लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत भी बन गया है और इस सफलता के पीछे रेशम विभाग और महात्मा गांधी नरेगा का साथ रहा है, जिसने इस समूह को जिले में अपनी पहचान बनाने का अवसर दिया है।
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इस कहानी के पीछे एक दिन या फिर एक साल नहीं बल्कि कई वर्षों की तपस्या का फल है, जो आज गांव के समूह के लिए सार्थक हो रहा है। समूह से जुड़े सदस्य विनय शुक्ला बताते हैं कि 1984-85 में महुदा ब में रेशम विभाग से मिलकर 6 से 7 हजार शहतूत के पौधे लगाए गए। धीरे-धीरे यह पौधे बड़े हुए और इससे रेशम का उत्पादन शुरू किया गया। इसके बाद वर्ष 1985-86 में 8 हजार अर्जुन पौधे लगाए गए और साल दर साल रेशम का कार्य आगे बढ़ता गया और फिर वह समय आया अर्जुन का पौधरोपण किया गया। इसके बाद 16 हजार 800 पौधे लगाए गए और साल दर साल रेशम का कार्य आगे बढ़ता गया। महात्मा गांधी नरेगा से महुदा ब के 5 हेक्टेयर क्षेत्र में वर्ष 2020-21 में 17 हजार 500 गड्ढे बारिश के पानी को रोकने के लिए किये गये। इसके अलावा 20 हजार 400 नग पौधे भी अर्जुन के लगाए गए। इस कार्य में लगभग 1 लाख 46 हजार रूपए की राशि स्वीकृत की गई तो वहीं सीपीटी भी इसमें तैयार किया गया, जिसमें 2.50 लाख रूपए की स्वीकृति दी गई है। इस कार्य से जहां एक ओर अर्जुन के पौधों को पर्याप्त पानी की सुविधा मिली तो दूसरी ओर महात्मा गांधी नरेगा के मजूदरों को नियमित रूप से गांव में ही रोजगार मुहैया हुआ। गांव में ही एक अन्य 3 हेक्टेयर क्षेत्र में वर्ष 2015-16 में मनरेगा से 12 हजार 300 पौधरोपण का कार्य किया गया। जिस पर कोसा उत्पादन का कार्य किया जा रहा है।
आर्थिक आत्मनिर्भरता के लिए एक साथ काम करने का निर्णय
कोसा कृमिपालन स्वावलंबन स्व सहायता समूह के अध्यक्ष गोरेलाल खैरवार, सदस्य विनीत शुक्ला, नंदलाल यादव, मनोज यादव, लोकसिंह मरकाम, आनंद केवट, शिवनारायण कुम्भकार, आनंदराम कुंभकार, राजकुमार केवट, राजनंदनी, मधु यादव, गंगाबाई, सुशीला कुंभकार, फुलेश्वरी जो आज इस परियोजना में काम करते हुए आगे बढ़ रही हैं। वह बताती हैं कि खेती किसानी के साथ अर्जुन के वृक्ष में कृमिपालन करते हुए कोसा के फल का उत्पादन कर रही हैं, जिससे प्रतिवर्ष दो क्राप ले रहे हैं। समूह के सदस्य बताते हैं कि गांव की महिलाओं एवं पुरूषों ने मिलकर आर्थिक आत्मनिर्भरता के लिए एक साथ काम करने का निर्णय लिया। समूह की महिलाओं ने प्रशिक्षण प्राप्त किया और कृमि पालन के जरिए कोसा उत्पादन शुरू किया। नियमित देखभाल और मेहनत के चलते, उनके कोसा उत्पादन की गुणवत्ता में तेजी से सुधार हुआ और उनका उत्पाद स्थानीय बाजारों में लोकप्रिय हो गया। समूह के अध्यक्ष गोरेलाल खैरवार ने बताया कि शुरू में उन्हें काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ा। लेकिन धैर्य और समूह की एकजुटता के कारण वे हर मुश्किल को पार किया। धीरे-धीरे उनका उत्पादन बढ़ा और अब उनकी आय का एक बड़ा हिस्सा कोसा की बिक्री से आता है। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना और रेशम विभाग से हुए अर्जुन के पौधरोपण से पर्यावरण हरा-भरा हो रहा है, तो वहीं दूसरी ओर इन पौधारोपण से स्व सहायता समूह आजीविका के साथ आय अर्जित कर वृद्धि करते हुए हुए समृद्धि की ओर बढ़ रहा है। अर्जुन पौधरोपण के माध्यम से कोसाफल का उत्पादन करते हुए 55 हजार कोसाफल का विक्रय करते हुए स्व सहायता समूह के सदस्यों को प्रतिवर्ष 60 से 70 हजार रूपए का मुनाफा होने लगा। सदस्यों का कहना था कि इस आमदनी से उन्होंने अपने परिवार की आर्थिक स्थिति को सुदुढ़ किया है।