Dev Uthani Ekadashi 2024: गरियाबंद: आज मंगलवार (12 नवंबर) को देशभर में देवउठनी एकादशी मनाई जा रही है. हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देवउठनी एकादशी का पर्व मनाया जाता है. गरियाबंद नगर परिषद सहित ग्रामीण क्षेत्र में मंगलवार को देवउठनी एकादशी धूमधाम से मनायी गयी. वहीं एकादशी पर महिलाओं ने अपने घरों में तुलसी पूजन किया. कई घरों में तुलसी के पौधे का पूजन किया गया.
वही कई स्थानों पर सामूहिक रूप से भी तुलसी माता की विशेष पूजा-अर्चना के साथ ही तुलसी विवाह संपन्न कराया गया. तुलसी के पौधे के समीप रंगोली बना कर तुलसी के पौधे को दुल्हन की तरह शृंगार कर सजाया गया था. नप क्षेत्र के पुराना मंगल बाजार सिन्हा निवास सहित विभिन्न मोहल्ला में महिलाओं ने बड़े ही धूमधाम के साथ तुलसी विवाह मनाया. इस दौरान तुलसी विवाह से संबंधित गीत गाये गये. इस मौके पर महिलाओं ने उपवास कर संध्या बेला तुलसी वृक्ष की पूजा-अर्चना कर प्रसाद व भोजन ग्रहण किया।
भगवान विष्णु भी इसी दिन चार माह के शयन के बाद उठते है। इसलिये इसे देवउठनी के नाम से भी जाना जाता है- धरमीन सिन्हा
इस संबंध में बुजुर्ग महिला धरमीन सिन्हा ने बताया की हिन्दु धर्म में एकादशी का बड़ा ही महत्व है। देवउठनी एकादशी को हरी प्रबोधिनी एकादशी या देवोत्थान एकादशी तुलसी विवाह के रूप में भी जाना जाता है। पुराणों के मुताबिक कार्तिक मास में देवोत्थान एकादशी के दिन तुलसी-शालिग्राम विवाह संपन्न किया जाता है। इस विवाह के बाद ही सभी शुभ कार्य जैसे विवाह,उपनयन आदि प्रारंभ हो जाते है। कहा जाता है कि भगवान विष्णु भी इसी दिन चार माह के शयन के बाद उठते है। इसलिये इसे देवउठनी के नाम से भी जाना जाता है। इस मौके पर शहर के देवउठनी एकादशी व तुलसी विवाह के मौके पर भक्तो ने अपने-अपने घरों स्थित तुलसी मंदिर व तुलसी स्थान को भव्य तरीके से सजाया।
देर संध्या विधि-विधान से तुलसी विवाह कराया। साथ ही आतिशबाजी भी की गई। जिससे पूरा माहौल भक्तिमय हो गया। वहीँ शहर के विभिन्न मंदिरों में महिलाओं ने दीये जलाकर सुख सम्रद्धि की कामना की। इस मौके पर कई मंदिरों में विशेष रूप से धार्मिक अनुष्ठान भी किया गया। जिससे माहौल पूरी तरह से भक्तिमय देखा गया।
लता सिन्हा ने बताया देवउठनी एकादशी के दिन गन्ने का विशेष महत्व होता है. इस दिन तुलसी चौरा के ऊपर गन्ने का मंडप बनाया जाता है, जो एक प्रतीकात्मक मंडप होता है. गन्ने के मंडप के नीचे भगवान सालिग्राम (भगवान विष्णु का प्रतीक) और तुलसी माता का विवाह किया जाता है. इस विवाह को देवताओं के आशीर्वाद का प्रतीक माना जाता है. पूजा के बाद तुलसी माता को चुनरी ओढ़ाई जाती है और चूड़ियां चढ़ाई जाती है, गन्ने का मंडप बनाने के बाद विधिवत पूजा-अर्चना की जाती है और भक्त अपनी श्रद्धा के अनुसार दान करते हैं. देवउठनी एकादशी के दिन से शुभ मुहूर्तों की शुरुआत हो जाती है और फिर उत्तरायण संक्रांति के बाद से और भी शुभ समय माना जाता है, खासकर विवाह और अन्य शुभ कार्यों के लिए.