Guru GhasiDas Jayanti 2024: गुरु घासी दास जयंती हर साल 18 दिसंबर को मनाई जाती है, और इस साल भी यह पर्व छत्तीसगढ़ में बड़े धूमधाम से मनाया जाएगा। गुरु घासी दास, जो कि समाज सुधारक और संत थे, ने अपनी शिक्षाओं से छत्तीसगढ़ के समाज में समरसता और समानता की अलख जगाई थी। उनकी जयंती पर विभिन्न स्थानों पर धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे।
इस मौके पर विशेष रूप से उनके जीवन और विचारों पर आधारित संगोष्ठियों, भजन-कीर्तन, और सम्मान समारोहों का आयोजन किया जाएगा। उनके योगदान को याद करते हुए लोग उनके आदर्शों को अपनाने की शपथ लेंगे। इस दिन के दौरान विशेष पूजा-अर्चना भी की जाएगी, जिसमें समाज के सभी वर्गों के लोग एकजुट होकर भाग लेंगे।
गुरु घासी दास की शिक्षाएं समाज के हर वर्ग के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। उन्होंने अपनी जीवनभर की साधना के दौरान अंधविश्वास, भेदभाव और जातिवाद के खिलाफ संघर्ष किया। उनके उपदेशों में प्रेम, भाईचारे और सामाजिक समता की बातें प्रमुख रूप से शामिल हैं, जो आज भी लोगों के दिलों में गूंजती हैं।
गुरु घासीदास जयंती का इतिहास
गुरु घासीदास जयंती हिंदू धर्म के सतनाम संप्रदाय के नेता थे जो 1756 से 1836 तक जीवित रहे। उन्होंने छत्तीसगढ़ में सतनामी समुदाय की स्थापना की और जाति व्यवस्था के बजाय सतनामी शिक्षा के तहत समानता की वकालत की। उनका उपदेश मुख्य रूप से निचली जाति के भारतीयों के लिए था। गुरु घासीदास ने अपने जीवन के शुरुआती दिनों में जाति व्यवस्था के उत्पीड़न का अनुभव किया। इसने उन्हें जाति व्यवस्था के खिलाफ लड़ने के लिए अपना जीवन समर्पित करने के लिए प्रेरित किया।
गुरु घासीदास की शिक्षाएँ हिंदू धर्म और बौद्ध धर्म से मिलती-जुलती थीं, लेकिन उनमें महत्वपूर्ण अंतर थे जो उनके आंदोलन को एक नए धर्म के रूप में वर्गीकृत कर सकते थे। उनकी शिक्षाओं में समानता, सामाजिक न्याय, सत्य और शांति पर जोर दिया गया। वे हिंदू धर्म के अन्य पहलुओं से असहमत थे, जैसे कि “मूर्ति पूजा” प्रथा, जिसमें हिंदू पूजा अनुष्ठानों के दौरान भौतिक वस्तुओं को देवताओं के अवतार के रूप में देखा जाता है।
जाति व्यवस्था की सामाजिक असमानताओं को चुनौती देने और अन्य सामाजिक मुद्दों का समाधान खोजने के लिए, गुरु घासीदास ने पूरे छत्तीसगढ़ में व्यापक यात्रा की। उन्होंने क्रूर और दमनकारी भारतीय समाज में एक नई जागृति पैदा की। गुरु घासीदास के कार्यों की विरासत छत्तीसगढ़ में उनके लाखों अनुयायियों के माध्यम से जीवित है। गुरु घासीदास विश्वविद्यालय और स्थानीय गुरु घासीदास राष्ट्रीय उद्यान का नाम उनके सम्मान में उनके नाम पर रखा गया है।