जिले से करीब 45किलोमीटर दल्हा पहाड़ के समीप छोटा सा गांव कटघरी के महिला किसान अश्वनी बाई, शिला बाई, अहिल्या बाई,आज भी पारंपरिक तौर बैलगाड़ी से धान की मिसाई कर रहे हैं। उन्होंने ने दूरदर्शन समाचार में बताया कि इस वर्ष बुधवार को तीसरा मिसाई है। बच्चे भी गाड़ी में बैठकर आनंद उठाते हैं।
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अश्वनी बाई ने दूरदर्शन समाचार में बताया की पशु शक्ति के बारे में कई विशेषज्ञ व वैज्ञानिक भी यह मानने लगे हैं कि यह सबसे सस्ता व व्यावहारिक स्रोत है। मशीनीकरण से ग्लोबल वार्मिंग की समस्या बढ़ेगी,जो आज दुनिया में सबसे चिंता का विषय है। कुछ किसानों ने खेती में पशुओं के महत्व को देखते हुए फिर से बैलों से खेती करना शुरू भी कर दिया है। हालांकि यह प्रयास छुट-पुट है, लेकिन सही दिशा में उठाए गए सही कदम है
शिला बाई ने बताया की टूट रहा खेत और बैल का रिश्ता भारत समेत दुनिया में आज भी खेती और पशुपालन ही सबसे ज्यादा रोजगार देने वाले क्षेत्र हैं। ग्रामीण अर्थव्यवस्था केवल खेती-किसानी से ही नहीं, पशुपालन और छोटे-छोटे लघु-कुटीर उद्योग व लघु व्यवसायों से संचालित होती रही है। मवेशी एक तरह से लोगों के फिक्स्ड डिपाजिट हुआ करते थे, जिन्हें बहुत जरूरत पड़ने पर वे बेच देते थे। लेकिन आम तौर पर गाय-बैल और मनुष्य के आपसी स्नेह और प्यार की कई कहानियां अब भी प्रचलन में हैं। उनके प्रति गहरी संवेदनशीलता भी देखने में आती थी। उन्हें बड़े लाड-प्यार से पाला पोसा जाता है। अश्वनी बाई कहते हैं मवेशियों को अपने बच्चे की तरह पालते-पोसते हैं। उन्हें भी मनुष्यों की तरह बुढ़ापे में खूंटे पर बांधकर खिलाना चाहिए। आज भी वे बैल गाड़ी से धान लाकर उन्हें बैल गाड़ी से धान मिसाई कर रहे हैं। साथ ही हाथ वाले पंखे से धान की सफाई करते हैं। उन्होंने बताया कि परंपरा को बनाए रखने के लिए उत्साह के साथ आधुनिक पीढ़ी को संदेश दे रहे हैं।साथ ही बैल गाडी से धान मिसाई का बच्चे खूब आनंद ले रहे है