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CG: पारंपरिक उल्लास के साथ मनाया गया छेरछेरा पर्व, बैंड की धुन, कहीं ढोलक की थाप के साथ छेर-छेरा मांगने निकली टोलिया

Aarti Beniya
Last updated: 2025/01/13 at 12:16 PM
Aarti Beniya
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4 Min Read
CG: पारंपरिक उल्लास के साथ मनाया गया छेरछेरा पर्व, बैंड की धुन, कहीं ढोलक की थाप के साथ छेर-छेरा मांगने निकली टोलिया
CG: पारंपरिक उल्लास के साथ मनाया गया छेरछेरा पर्व, बैंड की धुन, कहीं ढोलक की थाप के साथ छेर-छेरा मांगने निकली टोलिया
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गरियाबंद | CG: छेरछेरा माई कोठी के धान ला हेर हेरा’ यही आवाज छेरछेरा पर्व पर गुरुवार ज़िला मुख्यालय सहित ग्रामीण अंचलों में गूंजा। मांदर-ढोलक और झांझ-मंजीरा लिए जब नाचते-गाते, डंडा के ताल के साथ कुहकी पारते (लोकनृत्य में यह एक शैली है ताल के साथ मुंह से आवाज निकालने की इसे ही कुहकी पारना कहते हैं) युवाओं की टोली निकलती थी तो लोग उन्हें दान देने के लिए अपनी बारी की प्रतीक्षा करते थे। छेरछेरा का असली रूप और असली मजा ऐसा ही होता था, जो अब कम ही देखने को मिलता है,पर इस वर्ष बच्चों में ख़ासा उत्साह देखने को मिल रहा है।

 

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छेरछेरा पर्व पर सुबह से ही बच्चे, युवक व युवतियाें ने हाथ में टोकरी, बोरी आदि लेकर घर-घर छेरछेरा मांगा। य‍ह उत्सव कृषि प्रधान संस्कृति में दानशीलता की परंपरा को याद दिलाता है।छत्तीसगढ़ का लोक पर्व छेरछेरा नगर सहित समूचे अंचल में मनाया गया। इस अवसर पर बच्चे व बड़े बाजे-गाजे के साथ घर-घर पहुंचकर दान स्वरूप धान व पैसा मांगा।बच्चों ने दान देने वाले को आशीष दिया कि आपका धान का भंडार सदा भरा रहे। गांव के लोग भी उत्साह से बच्चों, युवाओं एवं एवं बुजुर्गों को दान दिया। इस अवसर पर अधिक संख्या में ग्रामवासी उपस्थित थे।

 

 

 

बुजुर्ग महिला धर्मीन बाई सिन्हा ने बताया कि यह पर्व फसल मिसाई के बाद खुशी मनाने से संबंधित है। पर्व में अमीरी गरीबी के भेदभाव से दूर एक-दूसरे के घर जाकर छेरछेरा मांगते हुए कहते हैं छेरछेरा माई कोठी के धान ल हेरहेरा। मान्यता है कि धान के कुछ हिस्से को दान करने से अगले वर्ष अच्छी फसल होती है। इसलिए इस दिन किसान अपने दरवाजे पर आए किसी भी व्यक्ति को निराश नहीं करते। प्राचीन काल में राजा महाराजा भी इस पर्व को मनाते थे। छत्तीसगढ़ में प्राचीनकाल से छेरछेरा पर्व की संस्कृति का निर्वहन होते आ रहा है।लोगों के घरों में तरह-तरह के पकवान बनाए गए। किसानों में इस पर्व को लेकर काफी उत्साह दिखा। दरअसल यह त्योहार खेती-किसानी समाप्त होने के बाद मनाया जाता है। इस अवसर पर लोग गांवों से बाहर निकलते नहीं हैं। गांव में रहकर ही इस पर्व को मनाते हैं। वैसे इस पर्व की तैयारी सप्ताह भर पहले से शुरू हो गई थी।

 

 

 

सूरज सिन्हा ने बताया बाबू रेवाराम की पांडुलिपियों से पता चलता है कि कलचुरी राजवंश के कोशल नरेश कल्याणसाय आठ वर्षों बाद जब अपनी राजधानी रतनपुर पहुंचे तो रानी फुलकेना ने र| और स्वर्ण मुद्राओं की बारिश करवाई। रानी ने प्रजा को हर वर्ष इस तिथि पर आने का न्योता दिया। तब से राजा के उस आगमन को यादगार बनाने छेरछेरा पर्व मनाया जा रहा।

गरियाबंद में दान मांगने सभी वर्गों में दिखा उत्साह।

छेरछेरा पर्व पर बच्चे, जवान व बूढ़े सभी ने टोली बनाकर घर-घर जाकर अन्न का दान मांगा। लोगों ने दान भी दिया। 3100 रुपए क्विंटल धान के कारण छेरछेरा का लोगों में विशेष उत्साह रहा।

मुहल्लो में बैंड बजाते हुए घर-घर पहुंचीं बच्चों की टोलियां

इस वर्ष अच्छी फसल हाेने से छेरछेरा पर्व पर राैनक दिखाई दी। बच्चे छेरछेरा काेठी के धान हेर हेरा कहते हुए घर-घर पहुंचकर छेरछेरा मांगा। बच्चाें ने टाेलियां बनाकर बैंड पार्टी व कीर्तन मंडली के साथ घरों में सुबह 7 से छेरछेरा मांगने पहुंचे।पुराना मंगल बाज़ार मानस चौक संतोषी मंदिर बजरंग चौक सहित अन्य वार्डों और गांवों में बच्चों के साथ बड़ों में उत्साह देखने को मिला।

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