गरियाबंद, वार्ड नंबर 6 – राजनीति का माहौल भले ही गरम हो, लेकिन इस बार चर्चा में कोई विवाद नहीं है। चर्चा का विषय है छगन यादव, जिन्हें लोग सिर्फ एक पार्षद के रूप में नहीं, बल्कि अपने परिवार का हिस्सा मानते हैं। एक ऐसा व्यक्ति, जो सेवा और समर्पण के प्रतीक बन चुके हैं। समाज सेवा के उनके अनमोल प्रयासों के चलते लोग उन्हें ‘श्रवण बेटा’ और ‘डॉक्टर’ कहकर पुकारते हैं।बुजुर्गों के लिए वह बेटा हैं, युवाओं के लिए भाई और जरूरतमंदों के लिए मसीहा। छगन को ‘डॉक्टर’ की उपाधि भले ही डिग्री से नहीं मिली हो, लेकिन वह लोगों की ज़िंदगी बचाने और मुश्किल वक्त में साथ खड़े रहने के कारण ‘डॉक्टर’ से कम नहीं।
छगन यादव: डॉक्टर नहीं, लेकिन लोगों के लिए किसी मसीहा से कम नहीं!इलाज करवाने वालों के लिए परिवार बने छगन, लोग प्यार से ‘डॉक्टर’ कहने लगे
– आमतौर पर डॉक्टर वही कहलाते हैं, जो सफेद कोट पहनकर मरीजों का इलाज करते हैं। लेकिन कभी-कभी समाज में ऐसे लोग भी होते हैं, जो डॉक्टर की उपाधि डिग्री से नहीं, बल्कि अपने कर्मों से हासिल कर लेते हैं। छगन यादव ऐसे ही एक शख्स हैं। वह डॉक्टर नहीं हैं, लेकिन लोग उन्हें ‘डॉ. छगन’ कहने लगे हैं।
डॉक्टर नहीं, पर लोगों की उम्मीद का नाम छगन
छगन यादव को किसी ने अस्पताल में मरीजों का इलाज करते नहीं देखा, लेकिन उन्हें हर उस जगह देखा गया, जहाँ मरीजों को किसी अपने की जरूरत थी। अस्पताल के चक्कर लगाते, लोगों को इलाज दिलवाते और जरूरतमंदों की सेवा करते हुए छगन यादव ने अपने मुहल्ले के लोगों के दिलों में खास जगह बना ली।
उनका अस्पतालों में मरीजों के साथ रहना, डॉक्टरों से बात करना, दवा का इंतजाम कराना और जरूरत पड़ने पर खून तक दिलवाना—यह सब देखकर लोग उन्हें ‘डॉक्टर’ बुलाने लगे। यह सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि उनके और समाज के बीच बने अनमोल रिश्ते की पहचान है।
मरीजों के लिए परिवार बन जाते हैं छगन
अस्पताल में इलाज कराने गए किसी भी मरीज को अगर परिवार की जरूरत महसूस होती है, तो छगन यादव उनके लिए खड़े नजर आते हैं। कोई अकेला हो, परिवार दूर हो, कोई बेसहारा हो—छगन उनके लिए परिवार बन जाते हैं।
➡ कभी एंबुलेंस का इंतजाम कराते हैं, कभी डॉक्टरों से बात करके इलाज जल्दी शुरू करवाते हैं।
➡ किसी को ब्लड डोनेशन की जरूरत हो, तो खून दिलाने के लिए सबसे पहले आगे आते हैं।
➡ जरूरतमंदों के लिए दवा और अस्पताल में भर्ती होने की व्यवस्था भी कराते हैं।
यही वजह है कि लोगों ने प्यार से कहना शुरू कर दिया—“ये हमारे डॉक्टर साहब हैं!”
क्यों कहते हैं लोग ‘श्रवण बेटा’?
डॉ. छगन पिछले 10 वर्षों से समाज सेवा का दूसरा नाम बन चुके हैं। बैंक जाना हो, अस्पताल में किसी बुजुर्ग की मदद करनी हो, राशन दिलवाना हो, या किसी परिवार के दुख में शामिल होना हो—छगन हर वक्त अपने मुहल्ले के लोगों के साथ खड़े रहते हैं।
कोरोना काल में जब अपनों ने साथ छोड़ दिया, तब छगन बने सहारा। उन्होंने बीमारों तक दवाइयाँ पहुँचाईं, जरूरतमंदों को ऑक्सीजन सिलेंडर दिलवाया, और जिनके परिवार अंतिम संस्कार के लिए नहीं आ पाए, उनके लिए कंधा भी दिया।
मुहल्ले के लोग बोले— बेटा हमारा अध्यक्ष हैं”
चुनाव की बात छेड़ते ही लोगों की भावनाएँ उमड़ पड़ती हैं।
➡ बुजुर्ग बोले: “हमारे लिए पार्षद से बढ़कर बेटा हैं।”
➡ महिलाएँ बोलीं: “हर मुश्किल में छगन भाई साथ खड़े रहते हैं।”
➡ युवाओं ने कहा: “नेता नहीं, यह तो हमारे परिवार का हिस्सा हैं।”
. छगन कहते हैं,
“मेरा जीवन सेवा के लिए है। भगवान ने मुझे इस काबिल बनाया कि मैं किसी के काम आ सकूँ। तकलीफ़ें बड़ी नहीं होतीं, बस हिम्मत और हौसला चाहिए। अगर हर कोई जरूरतमंदों को अपना परिवार बना ले, तो यह दुनिया और भी खूबसूरत बन सकती है।”
मुहल्ले की पहचान, मानवता की मिसाल
. छगन का मानना है कि समाज में धर्म और जाति से ऊपर उठकर मानवता को प्राथमिकता देनी चाहिए। उनका सपना है कि हर जरूरतमंद को सहारा मिले और हर इंसान एक-दूसरे की मदद के लिए आगे आए।
चुनाव में परिणाम कुछ भी हो ,. छगन का मकसद एक ही है—सेवा जारी रखना। यही वजह है कि उनका नाम सिर्फ एक प्रत्याशी के रूप में नहीं, बल्कि एक जनप्रिय समाजसेवी के रूप में लिया जा रहा है।