दमोह। BIG NEWS : देश के स्वास्थ्य तंत्र को झकझोर देने वाला एक सनसनीखेज मामला उजागर हुआ है, जहां एक फर्जी डॉक्टर 18 वर्षों तक खुद को लंदन रिटर्न कार्डियोलॉजिस्ट बताकर लोगों की जान से खिलवाड़ करता रहा। नरेंद्र विक्रमादित्य यादव, जो खुद को “डॉ. एन जॉन केम” के नाम से पेश करता था, अब “डॉ डेथ” के नाम से कुख्यात हो चुका है। दमोह के मिशनरी अस्पताल में हार्ट सर्जरी के नाम पर कम से कम 15 लोगों की जान लेने का आरोप है, जिनमें से 7 मौतों की पुष्टि हो चुकी है।
कैसे हुआ भंडाफोड़?
फरवरी 2025 में दमोह स्थित मिशन हॉस्पिटल में मरीजों की रहस्यमयी मौतों ने संदेह पैदा किया। 64 वर्षीय मंगल सिंह की मृत्यु के बाद उनके परिजनों ने इस पूरे मामले की शिकायत बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष दीपक तिवारी से की। जांच में खुलासा हुआ कि “डॉ. एन जॉन केम” नामक शख्स वास्तव में न तो डॉक्टर था और न ही उसके पास कोई वैध मेडिकल डिग्री थी। उसके दस्तावेज पूरी तरह फर्जी पाए गए।
18 साल की धोखाधड़ी का इतिहास
– मध्य प्रदेश (दमोह) : यहां मिशन हॉस्पिटल में उसने सिर्फ 43 दिनों में 15 हार्ट सर्जरी कीं।
– छत्तीसगढ़ (बिलासपुर) : 2006 में एक निजी अस्पताल में पूर्व विधानसभा अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद शुक्ल की कथित सर्जरी की, जिनकी मौत हो गई थी।
– तेलंगाना (हैदराबाद) : 2019 में धोखाधड़ी के आरोप में गिरफ्तार हुआ, लेकिन बाद में छूट गया।
– नरसिंहपुर (मध्य प्रदेश) : कुछ समय तक यहां भी फर्जी डॉक्टरी की।
फर्जी पहचान और झूठ का मकड़जाल
नरेंद्र यादव ने मशहूर ब्रिटिश कार्डियोलॉजिस्ट प्रो. जॉन केम की पहचान चुराकर नकली दस्तावेज तैयार किए। सोशल मीडिया पर नेताओं के साथ फोटोशॉप की गई तस्वीरें डालकर अपनी साख बनाता रहा। वह खुद को विदेश में प्रशिक्षित हृदय रोग विशेषज्ञ बताता था। कोई मेडिकल रजिस्ट्रेशन या वैध प्रमाणपत्र न होने के बावजूद, बड़े अस्पतालों में नौकरी पा लेता और मरीजों पर जानलेवा सर्जरी करता।
गिरफ्तारी और कानूनी कार्रवाई
7 अप्रैल 2025 को दमोह पुलिस ने उसे उत्तर प्रदेश के प्रयागराज से गिरफ्तार किया। नरेंद्र यादव पर जालसाजी, धोखाधड़ी, और हत्या जैसे गंभीर आरोपों में FIR दर्ज की गई है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने मामले की जांच शुरू कर दी है। जबलपुर मेडिकल कॉलेज को सभी मौतों की मेडिकल रिपोर्ट तैयार करने का जिम्मा सौंपा गया है।
क्या कहता है सिस्टम?
इस पूरे घटनाक्रम ने स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोलकर रख दी है। सवाल यह है कि:
– कैसे बिना डिग्री का व्यक्ति 18 साल तक मरीजों की जान से खेलता रहा?
– क्या अस्पताल प्रबंधन ने कभी उसके दस्तावेजों की जांच नहीं की?
– आखिरकार, इतने वर्षों तक प्रशासनिक और चिकित्सकीय निगरानी कहाँ थी?
अभी तो सिर्फ शुरुआत है
इस मामले की जांच अभी जारी है और विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले दिनों में और भी चौंकाने वाले खुलासे हो सकते हैं। यह घटना केवल एक अपराध की कहानी नहीं, बल्कि हमारे देश के स्वास्थ्य तंत्र की बड़ी चूक की भयावह तस्वीर भी पेश करती है। “डॉ डेथ” की गिरफ्तारी के बाद अब सबकी निगाहें इस पर हैं कि क्या पीड़ितों को न्याय मिलेगा, और क्या सिस्टम अपनी भूलों से सबक लेकर ऐसे फर्जीवाड़ों पर रोक लगाने में सक्षम हो पाएगा?