Space Science News : ज्येष्ठ और आषाढ के महीने ग्रीष्म ऋतु होती है। इन मासों में सूर्य की किरणें इतनी तेज होती हैं कि प्रातःकाल में भी उन्हें सहन करना सरल नहीं होता। सूर्य के पृथ्वी के निकट आ जाने से यह ऋतु उत्पन्न होती है। इस ऋतु में प्रायः भारत के सभी स्थानों का तापमान बढ़ जाता है। सामान्यतः गुजरात और राजस्थान मैं गर्म हवायें चलती है जिन्हें लू कहा जाता है। राजस्थान एक मरुस्थलीय इलाका है जहां तापमान सबसे अधिक होता है। तापमान ५० डिग्री सेल्सियस तक हो जाता है । इस ऋतु में वर्षा भी होती है। इस मौसम में कुछ खरीफ की फसलें बोई जाती है।
गर्मी से हमें लाभ भी बहुत हैं। यदि गर्मी अच्छी पड़ती है तो वर्षा भी खूब होती है। गर्मी के कारण ही अनाज पकता है और खाने योग्य बनता है। ग्रीष्म ऋतु में गर्मी के कारण विषैले कीटाणु नष्ट हो जाते हैं। इस ऋतु में आम, लीची आदि अनेक रसीले फल भी होते हैं। इनका स्वाद निराला होता है।
भारत में सामान्यतया 15 मार्च से 15 जून तक ग्रीष्म मानी जाती है। इस समय तक सूर्य भूमध्य रेखा से कर्क रेखा की ओर बढ़ता है, जिससे सम्पूर्ण देश में तापमान में वृद्धि होने लगती है। इस समय सूर्य की कर्क रेखा की ओर अग्रसर होने के साथ ही तापमान का अधिकतम बिन्दु भी क्रमशः दक्षिण से उत्तर की ओर बढ़ता जाता है और मई के अन्त में देश के उत्तरी-पश्चिमी भाग में यह 48 सें.गे. तक पहुँच जाता है। इस समय उत्तरी भारत अधिकतम तापमान तथा न्यूनतम वायुदाब के क्षेत्र में परिवर्तित होने लगता है। उत्तर-पश्चिमी भारत में स्थित थार मरुस्थल पर मिलने वाला न्यूनतम वायुदाब क्षेत्र बढ़कर सम्पूर्ण छोटा नागपुर पठार को भी आवृत कर लेता है, जिसके कारण स्थानीय एवं सागरीय आर्द्र हवाओं का परिसंचरण इस ओर प्रारम्भ हो जाता है और स्थानीय प्रबल तूफानों का जन्म होता है। मूसलाधर वर्षा एवं ओलों के गिरने यहाँ तीव्रगति वाले प्रचण्ड तूफान भी बन जाते हैं, जिनका कारण स्थलीय गर्म एवं शुष्क वायु का सागरीय आर्द्र वायु से मिलना है।
उत्तर पश्चिमी भारत के शुष्क भागों में इस समय चलने वाली गर्म एवं शुष्क हवाओं को ‘लू’ कहा जाता है। राजस्थान, पंजाब, हरियाणा तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में प्रायः शाम के समय धूल भरी आँधियाँ आती है, जिनके कारण दृश्यता तक कम हो जाती है। धूल की प्रकृति एवं रंग के आधार पर इन्हें काली अथवा पीली आँधियां कहा जाता है। सामुद्रिक प्रभाव के कारण दक्षिण भारत में इन गर्म पवनों तथा आँधियों का अभाव पाया जाता है।
ग्रीष्म के फल
ग्रीष्म काल मे जंहा गर्मी बढ़ती वैसे ही उसे दूर करने के फल आने लगते हैं जिनके बीज मगज कहलाते हैं व मस्तिष्क को लाभ करते हैं।
तरबूज खरबूज खीरा ककडी ये ग्रीष्म के प्रभाव को कम करते हैं। फलों में आम होता है जिसकी बादाम नीलम दशहरी केसर तोतापुरी सफेदा चौसा अल्फांसो व अनेक कई प्रकार की किस्मे होती है। गर्मी में वैशाख मास को पवित्र मान स्नान का महत्त्व है ।
स्वास्थ्य सुरक्षा
ग्रीष्म ऋतु में जलन, गर्मी, चक्कर आना, अपच, दस्त, नेत्रविकार ( आंख आना ) आदि समस्याएंं अधिक होती हैं।अत: गर्मियों में घर में बाहर निकलते समय लू से बचने के लिए सिर पर कपड़ा बांधे अथवा टोपी पहने तथा एक गिलास पानी पीकर निकलें। जिन्हें दोपहिया वाहन पर बहुत लंबी यात्रा करनी हो वे जेब में एक प्याज रख सकते हैं।
उष्ण से ठंडे वातावरण में आने पर 10 – 15 मिनट तक पानी न पियें | धूप में से आने पर तुंरत पूरे कपड़े न निकालें, कूलर आदि के सामने भी न बैठें। रात को पंखे, एयर – कंडिशनर अथवा कूलर की हवा में सोने की अपेक्षा हो सके तो छत पर अथवा खुले आंगन में सोएं। यह संभभव न हो तो पंखे, कूलर आदि की सीधी हवा न लगे इसका ध्यान रखें।
अपने आहार में उच्च जल सामग्री वाले फलों और सब्जियों को शामिल करें। तरबूज, खीरा, संतरा और स्ट्रॉबेरी उत्कृष्ट विकल्प हैं। निर्जलीकरण करने वाले पेय पदार्थों से बचें | शराब, कैफीन और शर्करा युक्त पेय पदार्थों का सेवन सीमित करें, क्योंकि ये आपको और अधिक निर्जलित कर सकते हैं। आइसक्रीम और मीठे पेय पदार्थों का सेवन करना आकर्षक है, लेकिन अपने सेवन को सीमित करने का प्रयास करें। अत्यधिक चीनी ऊर्जा की हानि का कारण बन सकती है और निर्जलीकरण में योगदान कर सकती है।
क्या सूरज ने अपनी चाल बदल ली है? यह सवाल हम नहीं पूछ रहे बल्कि खुद स्पेस पर नजर रखने वाले वैज्ञानिक भी सूरज की सतह पर हो रही एक्टिविटीज से हैरान हैं. उन्हें इन एक्टिविटीज से पृथ्वी पर घातक असर पड़ने का डर भी सताने लगा है. स्पेस वेदर जरनल में प्रकाशित एक नए अध्ययन ने सूरज के व्यवहार में एक हैरतअंगेज बदलाव का खुलासा किया है. रिसर्चर्स का मानना है कि सूरज का सीजीसी यानी कॉरोनल ग्लोबल सर्कुलेशन शायद हाल ही में उलट गया है. आशंका जताई जा रही है कि CGC अपने चक्र की नई शुरुआत कर चुका है. वैज्ञानिकों को डर है कि 100 साल लंबा सोलर चक्र फिर से शुरू हुआ है. सरल शब्दों में समझें तो आने वाले वक्त में दशकों तक अंतरिक्ष में खतरनाक मौसम बना रह सकता है. इससे पृथ्वी की परिक्रमा करने वाले स्पेस-क्रॉफ्ट के लिए भी खतरा पैदा हो सकता है.
नए शोध से पता सूरज पर जारी सोलर मैक्सिमम (वह समय जब सूरज की चुंबकीय गतिविधि अपने चरम पर होती है) की अचानक तीव्रता आंशिक रूप 100 साल के सौर चक्र से जुड़ी हो सकती है. अगर यह सच है, तो आने वाले दशकों में सौर गतिविधि और भी बढ़ सकती है. इसे लेकर विशेषज्ञ कंफ्यूजन की स्थिति में हैं. यह खोज सौर वैज्ञानिकों के लिए एक बड़ा आश्चर्य है. साल 2024 की शुरुआत में शुरू हुए वर्तमान सोलर मैक्सिमम पृथ्वी पर भी परेशानियों का दौर लेकर आ सकता है.
स्पेस स्टेशन, बिजली ग्रिड पर पड़ेगा असर
वैज्ञानिकों का कहना है सोलर मैक्सिमम के चलते सौर तूफान आने की संभावना बढ़ जाती है. साथ ही पृथ्वी का स्पेस वेदर भी प्रभावित होता है. इस बार वैज्ञानिकों को इस चरण की तीव्रता और समय की भविष्यवाणी करने में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. रिसर्चर्स का मानना है कि CGC के इस हैरतअंगेज बदलाव ने सूरज की गतिशीलता को और कठिन बना दिया है. यह खोज न केवल सोलर विजिक्स को समझने में अहम है बल्कि पृथ्वी पर इसके प्रभावों, जैसे उपग्रह संचार, बिजली ग्रिड और अंतरिक्ष मिशनों की सुरक्षा के लिए भी अहम है.
11 साल में एक चक्र पूरा करता है सूरज
वैज्ञानिक अब इस नए चक्र की गतिविधियों पर बारीकी से नजर रख रहे हैं ताकि भविष्य में सौर मौसम की सटीक भविष्यवाणी की जा सके. वैज्ञानिकों का कहना है कि सोलर एक्टिविटी पूरे सौर चक्र के दौरान स्वाभाविक रूप से बढ़ती और घटती है. यह लगभग 11 साल की अवधि है जिसमें हमारा सूरज सोलर मिनिमम से सोलर मैक्सिमम चरण तक पहुंचते हैं. इस दौरान यह पूरी तरह शांत रहने से लेकर शक्तिशाली सौर तूफानों के रूप में बाहर निकालता है. इस चक्र को “सनस्पॉट चक्र” के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र में परिवर्तन के कारण सूर्य पर काले धब्बों की संख्या बढ़ती और घटती है, जो सौर मैक्सिमम के दौरान पूरी तरह से बदल जाती है.