गरियाबंद 28 अप्रैल 2025/ जिले के अमलीपदर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में बीते 24 घंटों के खुशियों की छह किलकारियां गूंजीं। ये किलकारियां सिर्फ नवजात शिशुओं की नहीं थीं, बल्कि मुश्किल हालात में उम्मीद की नई किरण भी बनीं। तेज आंधी और बारिश के कारण अस्पताल में लगातार 18 घंटे तक बिजली बाधित रही, मगर इन विषम परिस्थितियों में भी डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों ने हार नहीं मानी। मोबाइल फोन की छोटी-सी रोशनी के सहारे उन्होंने सुरक्षित प्रसव कराते हुए माँ और शिशु की जिंदगी बचाई।
सीएमएचओ डॉ गार्गी यदु पाल ने बताया कि रविवार रात आए तेज आंधी-तूफान के चलते पूरे इलाके की बिजली आपूर्ति ठप हो गई थी। स्वास्थ्य केंद्र में सोलर सिस्टम की व्यवस्था थी, लेकिन लगातार 10 घंटे उपयोग के कारण अंतिम प्रसव के ठीक पहले ही उसकी बैटरी पूरी तरह डाउन हो गई। बिजली न होने के कारण अस्पताल का ऑपरेशन थिएटर और प्रसव कक्ष अंधेरे में डूब गया। ऐसे कठिन हालात में भी डॉक्टरों और स्टाफ ने हार नहीं मानी। मोबाइल फोन की फ्लैशलाइट के सहारे प्रसव कराया। स्वास्थ्यकर्मियों ने पूरी सजगता और सूझबूझ के साथ प्रसव संपन्न कराया। एक हाथ में मोबाइल और दूसरे हाथ से जिंदगी को थामने की जद्दोजहद — यह दृश्य अस्पताल में मौजूद हर किसी के लिए अविस्मरणीय बन गया। इस दौरान सीएचसी में लीलाबाई निषाद, सदराई बाई गोड़, हीरा बाई, बुनादी बाई निषाद, रूखमणी बाई और उलसो बाई टंकेश्वर गोड़ ने नवजात को जन्म दिया। डिलीवरी के बाद सभी नवजात शिशु और उनकी माताएं स्वस्थ हैं।
अस्पताल के प्रभारी चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर इंद्रजीत भारद्वाज ने बताया कि सीमित संसाधनों और अंधेरे के बीच स्टाफ ने जिस सेवा भावना और समर्पण का परिचय दिया, वह अनुकरणीय है। उन्होंने कहा कि पांच प्रसव के बाद सोलर की बैटरी डाउन होने से अंधेरा हो गया था। यदि डॉक्टरों और नर्सों ने तत्काल मोबाइल लाइट के भरोसे प्रसव का निर्णय न लिया होता, तो महिला और उनके परिजनों को भारी कठिनाई का सामना करना पड़ सकता था। सफल ऑपरेशन में लीला, खुशबू और चित्रा सिस्टर का योगदान रहा।
वहीं स्थानीय लोगों ने भी डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों के इस अदम्य साहस और सेवा-भावना की जमकर सराहना की है। उनका कहना है कि संकट की इस घड़ी में अमलीपदर सीएचसी में जो जज्बा और समर्पण देखने को मिला, वह पूरे क्षेत्र के लिए गर्व का विषय है।