बाराबंकी। BIG NEWS : शिक्षा की रोशनी अब निजामपुर गांव तक पहुंच चुकी है, और इस क्रांति की शुरुआत की है 15 वर्षीय रामसेवक ने, जो आजादी के बाद गांव का पहला छात्र बना है जिसने यूपी बोर्ड से 10वीं की परीक्षा पास की है। करीब 55% अंकों के साथ इस ऐतिहासिक उपलब्धि ने न सिर्फ रामसेवक के जीवन को नई दिशा दी है, बल्कि पूरे गांव में उम्मीद की किरण जगा दी है।
संघर्षों भरा जीवन, फिर भी नहीं टूटा हौसला
बाराबंकी जिले से 30 किलोमीटर दूर स्थित निजामपुर गांव में ज्यादातर आबादी दलित समुदाय की है। यहां के लगभग 300 लोगों में से कोई भी 10वीं कक्षा पार नहीं कर पाया था। रामसेवक, चार भाइयों में सबसे बड़ा, दिन में मजदूरी करता था और रात को सोलर लैंप की रोशनी में दो घंटे पढ़ाई करता था। शादियों में लाइटें ढोने से उसे रोज़ाना 250-300 रुपये की कमाई होती थी, जिससे वह अपने परिवार का खर्च चलाता और खुद की पढ़ाई भी।
ताने, हंसी और जवाब बनी मेहनत
गांव में जब वह पढ़ाई करता तो लोग उसका मजाक उड़ाते थे – “तुमसे नहीं होगा।” लेकिन रामसेवक ने इसे चुनौती समझा। खुद अपनी स्कूल फीस जमा की और पढ़ाई जारी रखी। उसका आत्मविश्वास और मेहनत आखिरकार रंग लाई।
जिलाधिकारी ने की सराहना, पढ़ाई का खर्च उठाया
रामसेवक की प्रेरणादायक कहानी जब बाराबंकी के जिलाधिकारी शशांक त्रिपाठी तक पहुंची, तो उन्होंने उसे सम्मानित किया। रामसेवक उस वक्त नंगे पांव था, अच्छे कपड़े भी नहीं थे। शिक्षक और गांववालों ने पैसे इकट्ठा कर उसे नए कपड़े और जूते दिलाए। जिलाधिकारी ने न सिर्फ उसकी सराहना की, बल्कि उसकी आगे की पढ़ाई का खर्च उठाने का वादा भी किया।
मां का सपना और बेटे का लक्ष्य
रामसेवक की मां पुष्पा गांव के स्कूल में रसोइया हैं। उन्होंने गर्व से कहा, “मैं सिर्फ 5वीं तक पढ़ी, लेकिन अब मेरा बेटा इंजीनियर बनना चाहता है।” रामसेवक मानता है कि उसका सपना अभी दूर है, लेकिन अब वह खुद पर भरोसा करने लगा है।
शिक्षा की ओर बढ़ता निजामपुर
रामसेवक की कामयाबी ने गांव के बच्चों और उनके अभिभावकों को नई सोच दी है। अब गांव में शिक्षा को लेकर जागरूकता बढ़ रही है। रामसेवक की सफलता ने यह साबित कर दिया है कि कठिनाइयों के बीच भी अगर संकल्प मजबूत हो, तो कुछ भी असंभव नहीं।