सवाई माधोपुर। Ranthambore Tiger Reserve : राजस्थान के सवाई माधोपुर में स्थित रणथंभौर टाइगर रिजर्व से एक और खुशखबरी सामने आई है। फलौदी रेंज के देवपुरा बांध वन क्षेत्र में बाघिन RBT-2302 ने तीन नन्हे शावकों को जन्म दिया है। इस खबर ने वन्यजीव प्रेमियों और संरक्षणवादियों में उत्साह की लहर दौड़ा दी है। बाघिन और उसके शावकों की तस्वीरें फोटो ट्रैप कैमरों में कैद हुई हैं, जो सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं।
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- जन्म की सूचना: स्थानीय लोगों ने सबसे पहले बाघिन RBT-2302 को शावकों के साथ देखा और इसकी जानकारी वन विभाग को दी। इसके बाद वन अधिकारियों ने फलौदी रेंज में निगरानी बढ़ा दी।
- कैमरा ट्रैप में तस्वीरें: 14 मई 2025 को बाघिन और उसके तीन शावकों की तस्वीरें वन विभाग के कैमरा ट्रैप में दर्ज की गईं। इन तस्वीरों में बाघिन अपने शावकों के साथ फलौदी रेंज के खारिया खाल क्षेत्र में विचरण करती दिख रही है।
- संरक्षण के प्रयास: वन विभाग ने बाघिन और उसके शावकों की सुरक्षा के लिए निरंतर निगरानी शुरू कर दी है। अतिरिक्त कैमरे लगाए गए हैं, और क्षेत्र में गश्त बढ़ा दी गई है ताकि किसी भी खतरे से बचा जा सके।
- बाघिन RBT-2302: यह बाघिन फलौदी रेंज में सक्रिय है और माना जा रहा है कि इसके शावकों के पिता नर बाघ RBT-108 हो सकते हैं, जो उसी क्षेत्र में विचरण करता है।
संरक्षण के लिए सकारात्मक संकेत-
रणथंभौर टाइगर रिजर्व, जो 1,334 वर्ग किलोमीटर में फैला है, भारत में बाघ संरक्षण का एक प्रमुख केंद्र है। इस रिजर्व में बाघों की संख्या लगातार बढ़ रही है, और बाघिन RBT-2302 के तीन शावकों के जन्म से यह आंकड़ा और मजबूत हुआ है। वर्तमान में रणथंभौर में लगभग 89 बाघ हैं, जो इसे भारत का तीसरा सबसे घना बाघ आवास बनाता है। वन मंत्री संजय शर्मा ने इस घटना को संरक्षण प्रयासों की सफलता बताया और कहा कि यह राजस्थान सरकार की प्रभावी नीतियों का परिणाम है।
सोशल मीडिया पर उत्साह –
सोशल मीडिया पर बाघिन RBT-2302 और उसके शावकों की तस्वीरें देखकर लोग खुशी जता रहे हैं। कई यूजर्स ने इसे “प्रकृति का तोहफा” और “संरक्षण की जीत” करार दिया है। वन विभाग ने भी इन तस्वीरों को साझा कर जनता से बाघ संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ाने की अपील की है।
चुनौतियां और भविष्य –
हालांकि यह खबर उत्साहजनक है, लेकिन रणथंभौर में बढ़ती बाघ आबादी के कारण क्षेत्रीय संघर्ष और पर्यटकों के दबाव जैसी चुनौतियां भी सामने आ रही हैं। कुछ बाघों ने सफारी जोन 1-5 छोड़कर जोन 6-10 में अपने क्षेत्र बनाए हैं, जिससे संरक्षण और प्रबंधन के लिए नए उपायों की जरूरत है।