Auto Components: भारत में वाहन उद्योग विश्व का सातवां सबसे बड़ा वाहन उद्योग है, जिसने वर्ष 2009 में 26 लाख इकाइयों का उत्पादन किया।2009 में, जापान, दक्षिण कोरिया और थाइलैंड के बाद भारत एशिया का चौथा सबसे बड़ा वाहन निर्यातक बन गया। अनुमान है कि 2050 तक भारत की सड़कों पर 61.1 करोड़ वाहन होंगे जो विश्व में सर्वाधिक वाहन संख्या होगी।
1991 भारत में शुरू हुए आर्थिक उदारीकरण के बाद, बढ़ती प्रतियोगिता और सरकार द्वारा नियमों को सरल बनाने के कारण भारतीय वाहन उद्योग ने लगातार वृद्धि की है। टाटा मोटर्स, मारुति सुज़ुकी एवं महिन्द्रा एंड महिन्द्रा जैसे भारतीय वाहन निर्माताओं ने अपने घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय व्यवसाय को बढ़ाया है। भारत की मजबूत आर्थिक वृद्धि के कारण भारत के घरेलू वाहन बाजार का विस्तार हुआ है और बहु-राष्ट्रीय वाहन निर्माता भारत-केन्द्रित निवेश के लिए आकर्षित हुए हैं। फरवरी 2009 में भारत ने यात्री कारों की मासिक बिक्री 1 लाख कारों से अधिक रही।
भारत में वाहन उद्योग की शुरुआत 1940 के दशक में हुई। 1947 में आजादी के बाद, वाहन उद्योग को आपूर्ति करने के लिए, भारत सरकार और निजी क्षेत्र द्वारा वाहन के कल-पुर्जों के निर्माण हेतु उद्योग लगाने के प्रयास किए गए। हालांकि राष्ट्रीयकरण और निजी क्षेत्र के विकास में बाधा डालने वाले लाइसेंस राज के कारण तुलनात्मक रूप से 1950 और 1960 के दशक में इस उद्योग की वृद्धि दर धीमी रही। 1970 के बाद, वाहन उद्योग ने विकास करना आरंभ किया लेकिन यह विकास मुख्य रूप से ट्रैक्टरों, व्यावसायिक वाहनों और स्कूटरों के निर्माण में लक्षित हुआ। कारें अब भी बड़ी विलासिता की वस्तु बनी रही। जापानी वाहन निर्माताओं ने भारतीय बाजार में प्रवेश के प्रयास किए और आखिरकार मारुति उद्योग की स्थापना हुई। अनेक विदेशी फर्मों ने भारतीय कम्पनियों के साथ संयुक्त उद्यमों की स्थापना की।
1980 के दशक में, कई जापानी निर्माताओं ने मोटरसाइकिलों एवं हल्के व्यावसायिक वाहनों के उत्पादन हेतु संयुक्त उद्यमों की स्थापना की। इसी समय भारत सरकार ने सुज़ुकी को छोटी कारों के निर्माण हेतु संयुक्त उद्यम स्थापित करने हेतु चुना। 1991 में शुरू हुए आर्थिक उदारीकरण के बाद और साथ ही लाइसेंस राज के धीरे-धीरे कमजोर होने पर कई भारतीय एवं बहु-राष्ट्रीय कार कम्पनियां भारतीय बाजार में उतरीं. तब से, घरेलू एवं निर्यात मांगों की पूर्ति हेतु वाहनों के पुर्जे बनाने वाले उद्योग और वाहन निर्माण उद्योग की वृद्धि लगातार होती रही है। वर्तमान में भारत देश में 17 कंपनी की कारे बिक रही है।
क्रिसिल की एक रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2025-26 के दौरान भारत के ऑटोमोटिव कंपोनेंट सेक्टर में 7-9 प्रतिशत की राजस्व वृद्धि होने की संभावना है। यह वृद्धि मुख्य रूप से दोपहिया (टू-व्हीलर) और यात्री वाहन (पैसेंजर व्हीकल) सेगमेंट में लगातार बढ़ती मांग की वजह से हो रही है, जो कुल राजस्व का लगभग आधा हिस्सा बनाते हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि 17 प्रतिशत हिस्सेदारी वाले वाणिज्यिक वाहनों (कमर्शियल व्हीकल) और ट्रैक्टरों की बिक्री में मामूली वृद्धि से अतिरिक्त लाभ मिलेगा। राजस्व में 15 प्रतिशत हिस्सेदारी रखने वाले आफ्टरमार्केट सेगमेंट में 5-7 प्रतिशत की स्थिर वृद्धि देखी जा रही है। हालांकि, अमेरिका और यूरोप में नए वाहनों की कमजोर मांग, जो भारत के निर्यात का लगभग 60 प्रतिशत है, प्रतिकूल परिस्थितियां पेश करती हैं।
परिचालन मार्जिन 12-12.5 प्रतिशत पर स्थिर देखा जा रहा है, जो एडीएएस1 मॉड्यूल, इंफोटेनमेंट सिस्टम और एडवांस ब्रेकिंग जैसे हाई-मार्जिन कंपोनेंट की बढ़ती हिस्सेदारी के कारण दर्ज किया जा रहा है। इनपुट लागत में कमी लाभप्रदता का समर्थन करेगी। विशेष रूप से स्टील, जो कि इनपुट लागत में 45-50 प्रतिशत हिस्सा है, एल्युमिनियम जो कि 15-20 प्रतिशत हिस्सा है और प्लास्टिक जो कि 10-12 प्रतिशत हिस्सा है, स्ट्रक्चरल कठोरता, वाहन के वजन को कम करने और इंटीरियर्स के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि नए टैरिफ के दबाव से बड़े पैमाने पर अमेरिका को निर्यात करने वाली कंपनियों के मार्जिन में कमी आ सकती है। वहीं, कार्यशील पूंजी पर कड़े नियंत्रण के साथ, यह बाहरी उधार पर कम निर्भरता सुनिश्चित करेगा, जिससे क्रेडिट प्रोफाइल स्थिर रहेगी।
क्रिसिल रेटिंग्स का विश्लेषण ऑटोमोटिव कंपोनेंट निर्माताओं पर आधारित है, जो पिछले वित्त वर्ष में लगभग 7.9 लाख करोड़ रुपए के सेक्टर रेवेन्यू का लगभग 35 प्रतिशत हिस्सा था। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि ऑटोमोटिव कंपोनेंट प्लेयर्स द्वारा सेवा प्रदान किए जाने वाले तीन प्रमुख खंडों, यानी मूल उपकरण निर्माता (ओईएम), आफ्टरमार्केट और निर्यात खंडों में मांग के रुझान अलग-अलग रहने की उम्मीद है।
क्रिसिल रेटिंग्स की निदेशक पूनम उपाध्याय ने कहा, “कुल राजस्व में दो-तिहाई योगदान देने वाले ऑटोमोटिव ओईएम की मांग इस वित्त वर्ष में 8-9 प्रतिशत बढ़ने की उम्मीद है, जिसमें बढ़ती सुरक्षा, उत्सर्जन और इलेक्ट्रॉनिक कंटेंट, विशेष रूप से पीवी और 2डब्ल्यू में मूल्य मात्रा से आगे निकल जाएगा। आफ्टरमार्केट सेगमेंट में 6-7 प्रतिशत की स्थिर वृद्धि दर्ज की जाएगी, जिसे पुराने वाहनों के आधार का समर्थन प्राप्त है। हालांकि,आईसीई व्हीकल की कमजोर मांग और अमेरिका और यूरोप में इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) अपनाने में कमी के बीच निर्यात वृद्धि 7-8 प्रतिशत तक कम हो जाएगी।”
कुल राजस्व में केवल 5 प्रतिशत का योगदान करते हुए, अमेरिका निर्यात आय में 28 प्रतिशत की प्रमुख हिस्सेदारी रखता है और सबसे तेजी से बढ़ने वाला ऑटो कंपोनेंट बाजार है।
रिपोर्ट में आगे बताया गया है कि इस वित्त वर्ष के लिए सेक्टर का क्रेडिट आउटलुक मजबूत नकदी प्रवाह और न्यूनतम ऋण वृद्धि के कारण स्थिर है, बावजूद इसके कि ईवी क्षमताओं, स्वचालन और सटीक विनिर्माण को बढ़ाने के लिए लगभग 22,000 करोड़ रुपए का निरंतर पूंजीगत व्यय किया गया है, जो कि ईवी को शामिल करने वाले मॉडल लॉन्च के अनुरूप है। हालांकि, पीवी वॉल्यूम में ईवी का हिस्सा केवल 4 प्रतिशत है, जिससे उनका राजस्व योगदान मामूली बना हुआ है, जिससे निकट भविष्य में वाहनों की इस कैटेगरी से रिटर्न कम हो रहा है।
भारत की ऑटो इंडस्ट्री की मौजूदा स्थिति
2023 में दुनियाभर में लगभग 94 मिलियन यानी 9.4 करोड़ वाहन बनाए गए। वहीं, ग्लोबल ऑटो पार्ट्स का बाजार करीब 2 ट्रिलियन डॉलर का था, जिसमें 700 अरब डॉलर का निर्यात शामिल था। भारत इस वक्त दुनिया का चौथा सबसे बड़ा ऑटोमोबाइल निर्माता बन चुका है, चीन, अमेरिका और जापान के बाद। सालाना करीब 60 लाख गाड़ियों का उत्पादन देश में होता है। खास तौर पर छोटी कारों और यूटिलिटी व्हीकल्स के मामले में भारत की अच्छी पकड़ बन चुकी है।
ग्लोबल मार्केट में बड़ी भूमिका निभा सकता है भारत
नीति आयोग ने “ऑटोमोटिव उद्योग: वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं में भारत की भागीदारी को सशक्त बनाना” शीर्षक वाली रिपोर्ट में कहा है कि भले ही इस सेक्टर को कुछ नई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा हो, लेकिन मौके भी उतने ही मिल रहे हैं। भारत के पास यह सुनहरा मौका है कि वह ग्लोबल ऑटोमोबाइल बाजारों में अपनी एक मजबूत पहचान बना सके।