नक्सली कमांडर गगन्ना उर्फ बसवा राजू की कहानी
डेस्क। CG NEWS। छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ के घने जंगलों में सुरक्षाबलों को एक ऐतिहासिक सफलता मिली है। नक्सली संगठन सीपीआई (माओवादी) के शीर्ष कमांडर और 1.5 करोड़ के इनामी नक्सली नंबाला केशव राव, जिन्हें गगन्ना उर्फ बसवा राजू के नाम से जाना जाता था, मुठभेड़ में ढेर हो गए हैं। आइए जानते हैं, कौन था यह कुख्यात नक्सली, जिसने दशकों तक सुरक्षाबलों को चुनौती दी और नक्सल आंदोलन की रीढ़ माना जाता था।
21 मई 2025 को छत्तीसगढ़ के नारायणपुर, बीजापुर और दंतेवाड़ा के ट्राइ-जंक्शन पर स्थित अबूझमाड़ के जंगलों में 70 घंटे तक चले ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट में सुरक्षाबलों ने 27 नक्सलियों को मार गिराया। इस मुठभेड़ में सबसे बड़ा नाम था बसवा राजू, जिसका असली नाम नंबाला केशव राव था। वह सीपीआई (माओवादी) का महासचिव और पोलित ब्यूरो सदस्य था। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इसे नक्सलवाद के खिलाफ तीन दशकों में सबसे बड़ी सफलता करार दिया है।
बसवा राजू पर 1.5 करोड़ रुपये का इनाम था और वह छत्तीसगढ़, झारखंड, तेलंगाना, महाराष्ट्र और ओडिशा में नक्सली गतिविधियों का मास्टरमाइंड माना जाता था। उसके पास से 12 बोर राइफल, पिस्तौल और अन्य नक्सली सामग्री बरामद की गई है।
बसवा राजू का जीवन: पृष्ठभूमि और पढ़ाई
बसवा राजू का जन्म आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम जिले के जियन्नापेटा गांव में हुआ था। 70 वर्षीय राजू ने वारंगल के रीजनल इंजीनियरिंग कॉलेज (अब एनआईटी) से बीटेक की पढ़ाई पूरी की थी। कुछ सूत्रों के अनुसार, उसने एमटेक तक की पढ़ाई भी की थी। स्कूल और जूनियर कॉलेज में कबड्डी का खिलाड़ी रहा राजू, पढ़ाई में भी तेज था। लेकिन 1970 के दशक में माओवादी विचारधारा से प्रभावित होकर उसने घर छोड़ दिया और फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
नक्सल आंदोलन में शामिल होना] बसवा राजू 1980 के दशक की शुरुआत में पीपुल्स वार ग्रुप (PWG) से जुड़ा। उसने श्रीलंका के तमिल संगठन LTTE से गुरिल्ला युद्ध और विस्फोटकों की ट्रेनिंग ली थी। वह आईईडी बनाने, बारूदी सुरंग बिछाने और जंगल में युद्ध रणनीति में माहिर था। 2004 में PWG और MCC के विलय के बाद बनी सीपीआई (माओवादी) में उसकी भूमिका और बढ़ गई। 2018 में, जब पूर्व महासचिव गणपति ने स्वास्थ्य कारणों से पद छोड़ा, तब बसवा राजू को संगठन का महासचिव बनाया गया। वह नक्सलियों की सेंट्रल मिलिट्री कमेटी का भी प्रमुख था।
बड़े हमलों का मास्टरमाइंड
बसवा राजू कई बड़े नक्सली हमलों का मास्टरमाइंड था। 2003 में आंध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू पर 11 आईईडी के जरिए हमला, जिसमें वे बाल-बाल बचे, और 2010 में दंतेवाड़ा नरसंहार, जिसमें 76 सीआरपीएफ जवान शहीद हुए, इनमें उसका नाम प्रमुख था। 2019 में गढ़चिरौली हमले में 15 कमांडो की शहादत भी उसी की साजिश थी। वह पुलिसकर्मियों और नागरिकों की हत्या, खनन कंपनियों से उगाही और सरकारी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने जैसे अपराधों में शामिल था।
बसवा राजू की मौत को नक्सल आंदोलन के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। सुरक्षाबलों ने उसकी तीन स्तरीय सुरक्षा व्यवस्था को तोड़कर उसे ढेर किया, जो अबूझमाड़ के जंगलों में अपने नेटवर्क के कारण कभी पकड़ा नहीं गया था।robot: सामाजिक प्रभाव और मांगें इस घटना ने क्षेत्र में भारी आक्रोश पैदा कर दिया है। सामाजिक संगठनों और स्थानीय लोगों ने नक्सलवाद के खिलाफ इस कार्रवाई की सराहना की है, लेकिन साथ ही शांति और विकास की मांग भी उठाई है।
उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा ने कहा कि सरकार हथियारों का जवाब बातचीत से देना चाहती है और नक्सलियों से मुख्यधारा में शामिल होने की अपील की।
बसवा राजू का अंत नक्सलवाद के खिलाफ एक निर्णायक कदम है। यह ऑपरेशन न केवल सुरक्षाबलों की बहादुरी का प्रतीक है, बल्कि यह भी संदेश देता है कि हिंसा का रास्ता छोड़कर मुख्यधारा में शामिल होना ही एकमात्र विकल्प है। हमारी संवेदनाएं शहीद जवान के परिवार के साथ हैं। भास्कर न्यूज़ इस मामले पर नजर रखे हुए है और आपको हर अपडेट देता रहेगा।