छुईखदान। GRAND NEWS : प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण छुईखदान विकासखंड के ग्राम जंगलपुर घाट स्थित डोंगेश्वर महादेव मंदिर का आज कलेक्टर इन्द्रजीत चन्द्रवाल ने दौरा किया। यह मंदिर अपनी रहस्यमयी विशेषताओं और धार्मिक मान्यताओं के चलते श्रद्धालुओं के साथ-साथ पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र बनता जा रहा है।
डोंगेश्वर महादेव मंदिर की सबसे खास बात यह है कि यहां स्थापित नंदी की मूर्ति के मुख से वर्षभर निरंतर जलधारा बहती रहती है। इस अद्भुत दृश्य को देखकर कलेक्टर इंद्रजीत चन्द्रवाल ने गहरी रुचि दिखाई और स्थानीय ग्रामीणों से इस प्राकृतिक रहस्य व मंदिर की मान्यताओं को लेकर विस्तार से चर्चा की।
निरीक्षण के दौरान कलेक्टर ने मंदिर परिसर की स्वच्छता, पहुंच मार्ग, और पर्यटन सुविधाओं की स्थिति का अवलोकन किया। उन्होंने कहा कि इस पवित्र स्थल में अपार पर्यटन संभावनाएं मौजूद हैं, जिसे बेहतर प्रचार-प्रसार और बुनियादी ढांचे के विकास से एक प्रमुख धार्मिक पर्यटन केंद्र के रूप में स्थापित किया जा सकता है।
कलेक्टर ने श्रद्धालुओं के लिए सुरक्षात्मक उपाय अपनाते हुए मंदिर में रेलिंग लगाने संबंधों को निर्देश दिए। इसके अलावा सूचना बोर्ड लगाए जाएं और पानी, बिजली तथा साफ-सफाई की नियमित सुनिश्चित की जाए। उन्होंने मंदिर प्रबंधन समिति व ग्रामीणों से मिलकर पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए योजनाएं तैयार करने का सुझाव भी दिया।
ग्रामीणों ने भी मंदिर से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं और व्यक्तिगत अनुभव साझा किए, जिसे सुनकर कलेक्टर ने आश्वस्त किया कि इस धरोहर को संरक्षित रखने और आगे बढ़ाने के लिए हरसंभव प्रयास किए जाएंगे।
डोंगेश्वर महादेव मंदिर, जहां आस्था और प्रकृति का अद्वितीय संगम होता है, अब प्रशासन की नजर में भी एक संभावनाशील धार्मिक पर्यटन स्थल बन चुका है। इस अवसर पर जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी प्रेम कुमार पटेल, एसडीएम छुईखदान अविनाश ठाकुर सहित स्थानीय ग्रामीण तथा मंदिर समिति के सदस्य गण मौजूद थे।
पौराणिक इतिहास और प्राकृतिक वैभव
उल्लेखनीय है कि 1974 में हुआ था मंदिर का निर्माण पहले इस स्थान का नाम चोड़रापाट था, जो अब चोड़राधाम हो गया है। इस स्थान के प्राकृतिक सौन्दर्य से प्रभावित होकर गण्डई के भूतपूर्व जमीदार लाल डोगेन्द्रशाह खुशरों ने यहाँ लोगों को मंदिर निर्माण की प्रेरणा दी और उसी के फलस्वरूप 1974 में यहाँ शिव मंदिर का निर्माण किया गया। यहाँ की प्राकृतिक शोभा बड़ी ही निराली है। बड़े-बड़े चट्टान, चट्टानों के बीच झरता जल का प्राकृतिक अविरल स्त्रोत हृदय के तारों को झँकृत कर शीतलता प्रदान करता है।
सावन में लगती है श्रद्धालुओं की लंबी कतार इसी अविरल स्त्रोत को 1974 में संगमरमर से निर्मित गो-मुख से निकालकर शिवलिंग पर प्रवाहित किया गया, जिसे लोग गुप्त गंगा कहते हैं। इस गुप्त गंगा का स्त्रोत स्थल आज भी गुप्त है। वहीं सावन के समय यहां आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या काफी बढ़ जाती है।सावन के माह में यहां मेले का आयोजन भी किया जाता है। जो की बेहद खास होता है। इस जगह पर आपको शिव जी की भक्ति और प्राकृतिक सुंदरता के बीच होने का अहसास होगा जो की बहुत खूबसूरत होता है।