धरसींवा। CG News : रायपुर-बिलासपुर राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित धरसींवा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में पिछले पांच माह से 108 संजीवनी एम्बुलेंस सेवा पूरी तरह ठप पड़ी है। यह सिर्फ एक आंकड़े भर की बात नहीं, बल्कि इस पूरे ब्लॉक के हजारों लोगों की जिंदगी से सीधा खिलवाड़ है। हाईवे पर आए दिन होने वाली सड़क दुर्घटनाओं में घायल होने वाले लोगों को एम्बुलेंस के अभाव में निजी वाहनों के भरोसे भगवान भरोसे छोड़ दिया जा रहा है। सरकार की स्वास्थ्य सेवाओं पर सवालिया निशान लगाती यह स्थिति बेहद चिंताजनक है।
ब्लाक मुख्यालय धरसींवा की सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पूरे अंचल के एक मात्र सबसे बड़े अस्पताल है जंहा उद्योग नगर सिलतरा और रायपुर बिलासपुर की सड़कों पर होने वाले सड़क दुर्घटनाओं की अकेले इलाज की जिम्मा उठाने वाले हॉस्पिटल है जंहा बता दे कि संजीवनी ही बीमार है जिसके कारण मरीज निजी वाहनों के सहारे बने हुए है, कल्पना कीजिए, एक सड़क दुर्घटना होती है, खून से लथपथ घायल व्यक्ति मदद का इंतजार कर रहा है, लेकिन अस्पताल की “संजीवनी” एम्बुलेंस खुद बीमार पड़ी है। धरसींवा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, जो पूरे ब्लॉक को कवर करता है और एक व्यस्त राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित है, वहां से एम्बुलेंस नदारद है। पिछले पांच महीने से 108 संजीवनी एम्बुलेंस सेवा का पहिया थमा हुआ है। इसका सीधा मतलब है कि दुर्घटना पीड़ितों और अन्य गंभीर मरीजों को समय पर अस्पताल पहुंचाने के लिए कोई सरकारी साधन उपलब्ध नहीं है। मजबूरी में लोग निजी वाहनों का सहारा ले रहे हैं, जिसमें न तो प्राथमिक उपचार की सुविधा होती है और न ही प्रशिक्षित कर्मी। यह एक ऐसी आपातकालीन स्थिति है, जहां एक-एक पल कीमती होता है और सिस्टम की यह उदासीनता सीधे तौर पर लोगों की जान जोखिम में डाल रही है।
गर्भवती महिलाओं की सेवा 102 महतारी एम्बुलेंस: ‘डॉक्टर’ नहीं, ड्राइवर के भरोसे जिंदगी
यहां पर बताना आवश्यक होगा कि सिर्फ 108 संजीवनी एम्बुलेंस का ही बुरा हाल है, तो 102 महतारी एम्बुलेंस की स्थिति और भी चौंकाने वाली है। मरीजों की जान बचाने के लिए भेजी जाने वाली इन एम्बुलेंस में डॉक्टर नहीं, बल्कि ड्राइवर के भरोसे ही मरीज की जिंदगी बचाने की कोशिश की जाती है। आपातकालीन स्थिति में प्राथमिक उपचार और सही मेडिकल सलाह का कितना महत्व होता है, यह बात किसी से छिपी नहीं है। ऐसे में सिर्फ ड्राइवर के भरोसे गंभीर मरीज को अस्पताल तक पहुंचाना, यह दर्शाता है कि स्वास्थ्य सेवाओं में गुणवत्ता से किस कदर समझौता किया जा रहा है। क्या सरकार को लगता है कि एक ड्राइवर किसी डॉक्टर का काम कर सकता है? यह सीधे तौर पर मरीजों की जान के साथ खिलवाड़ है।
राजधानी से महज 18 किमी दूर, फिर भी बदहाली का आलम
सबसे बड़ा सवाल यह है कि धरसींवा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र रायपुर राजधानी से मात्र 18 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। जब राजधानी के इतने करीब स्थित एक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में ऐसी बदहाल व्यवस्था है, तो अंचल के दूरदराज के क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की क्या स्थिति होगी, इसका अंदाजा लगाना भी मुश्किल है। यह स्थिति सिस्टम और सरकार के उन दावों की पोल खोलती है, जिनमें बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं की बात की जाती है। यह साफ दर्शाता है कि जमीनी स्तर पर स्वास्थ्य सेवाएं कितनी कमजोर हैं और आम आदमी को कितनी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।
बीएमओ ने की पुष्टि
धरसींवा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के खंड चिकित्सा अधिकारी (बीएमओ) डॉ. विकास तिवारी ने भी इस बदहाल व्यवस्था की पुष्टि की है। जब अधिकारी खुद इस बात को स्वीकार कर रहे हैं, तो यह और भी गंभीर हो जाता है। अब गेंद सरकार के पाले में है। कब सरकार इस गंभीर स्थिति पर ध्यान देगी?