गरियाबंद।
हिंदू संस्कृति में आस्था और समर्पण का प्रतीक वट सावित्री व्रत सोमवार को गरियाबंद नगर सहित ग्रामीण अंचलों में श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया गया। सुबह से ही लाल-पीली साड़ियों में सजी महिलाएं मंदिरों और वट वृक्षों के नीचे पहुंचकर पूजा-अर्चना में जुट गईं। इस दौरान काली मंदिर, शिव मंदिर फॉरेस्ट परिसर, गांधी मैदान शिक्षक नगर में खास भीड़ देखी गई।
सुहागिनों ने वट वृक्ष के चारों ओर 12 बार परिक्रमा कर कच्चा सूत बांधा और पति की लंबी उम्र, पारिवारिक सुख-शांति व संतान की कामना की। व्रत रखने वाली महिलाएं दिनभर निर्जला रहीं और शाम को पूजा के बाद ही अन्न ग्रहण किया।
नवविवाहिताओं में दिखा उत्साह
इस बार व्रत को लेकर नवविवाहिताओं में विशेष उत्साह देखा गया। नई-नवेली दुल्हनों ने सोलह श्रृंगार कर पूरे विधि-विधान से पूजा की। नगर की गलियों में सजी-धजी महिलाओं की चहल-पहल दिनभर बनी रही।
व्रत की महिमा बताई बुज़ुर्ग महिला श्याम कली तिवारी ने
व्रत की पौराणिक मान्यता पर प्रकाश डालते हुए बुजुर्ग महिला श्याम कली तिवारी ने बताया कि सावित्री ने अपने पति सत्यवान की जान यमराज से वापिस ली थी। वह बरगद के पेड़ के नीचे कठोर तपस्या कर भगवान यम को प्रसन्न कर पाई थी। तभी से इस दिन सुहागिनें वट वृक्ष की पूजा कर पति की दीर्घायु की प्रार्थना करती हैं।
वट सावित्री पर्व पर महिलाओं ने क्या कहा?
भारती सिन्हा, जिन्होंने अपनी शादी को 22 साल पूरे कर लिए हैं, ने कहा –
“मैं हर साल पूरी श्रद्धा के साथ वट सावित्री व्रत करती हूं। यह सिर्फ एक परंपरा नहीं, बल्कि अपने जीवनसाथी के लिए प्रेम और आस्था का प्रतीक है। हर बार इस व्रत से एक नई ऊर्जा और आत्मिक संतोष की अनुभूति होती है।”
वर्षा तिवारी, व्रती महिला ने बताया –
“यह व्रत नारी शक्ति और आस्था का पर्व है। हमने पूरे विधि-विधान से पूजा की और भगवान से अपने पति की लंबी उम्र और सुखी जीवन की कामना की। यह हमारी परंपरा है, जिससे जुड़कर गर्व होता है।”
राधिका सिन्हा, जो खास तौर पर वट सावित्री व्रत मनाने अपने मायके आई थीं, ने कहा –
“मैं हर साल इस व्रत को पूरी आस्था से करती हूं, लेकिन इस बार मायके में करने का आनंद ही कुछ और है। भाभी और बहनो के साथ पूजा करना और बचपन की यादों में लौट जाना बहुत खास अनुभव रहा। इस व्रत से पति की लंबी उम्र के साथ-साथ पारिवारिक सुख-शांति की कामना जुड़ी होती है।
इनकी रही प्रमुख उपस्थिति:
इस मौके पर लालिमा ठाकुर, सविता देवांगन डॉली ठाकुर किरण सिन्हा, संध्या सोनी रेणुका सिन्हा मोनिका सिन्हा सुमन लता केला मंजू निर्मलकर सीमा मिरी मिलेश्वरी साहू रूपाली सोनी, सैल सेन, साधना सेन सहित बड़ी संख्या में सुहागिन महिलाएं मौजूद रहीं।
यह पर्व न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि महिला सशक्तिकरण और पारिवारिक मूल्यों को भी मजबूती देने वाला पर्व है। गरियाबंद में इस आयोजन ने एक बार फिर दिखा दिया कि परंपरा और संस्कृति आज भी लोगों के दिलों में जीवित है।