भारत। Sanctorum of Temples so Deep: जब भी किसी प्राचीन मंदिर में कदम रखते हैं, तो सबसे अंदर जो हिस्सा होता है, उसे गर्भगृह कहा जाता है। ये वो पवित्र स्थान है, जहां मुख्य देवी-देवता की मूर्ति स्थापित होती है। लेकिन क्या कभी सोचा है — आख़िर गर्भगृह इतना गहरा, अंधेरा और रहस्यमय क्यों होता है? इसके पीछे सिर्फ आस्था ही नहीं, बल्कि हजारों साल पुरानी वास्तुशास्त्र और ऊर्जा विज्ञान छिपा है।
क्या है गर्भगृह का रहस्य?
वास्तु विद्या के अनुसार, गर्भगृह को मंदिर का सबसे ऊर्जावान स्थान माना जाता है। यहां धरती की सकारात्मक ऊर्जा सबसे अधिक केंद्रित रहती है।
प्राचीन मान्यता के अनुसार, गर्भगृह के नीचे प्राकृतिक क्रिस्टल्स, धातु या विशेष पत्थर रखे जाते थे, जो वातावरण की ऊर्जा को आकर्षित कर भक्त को मानसिक और आध्यात्मिक शांति प्रदान करते थे।
यहां की घनी दीवारें, संकरी जगह और गहराई इस ऊर्जा को बाहर फैलने से रोकती हैं और देवता की मूर्ति के चारों ओर केंद्रित रखती हैं।
इसलिए नहीं होती रोशनी और वेंटिलेशन
गर्भगृह में ना खिड़की होती है, ना वेंटिलेशन, और ना ही आधुनिक रोशनी। मान्यता है कि यहां दीपक की लौ ही ऊर्जा संचार का माध्यम होती है। इससे वातावरण में शांति और आध्यात्मिक तरंगें बनी रहती हैं।
प्राचीनकाल में यहां वातावरण को शुद्ध करने के लिए धूप, कपूर और हवन का प्रयोग भी किया जाता था।
क्यों पड़ता है घंटियों और मंत्रों का प्रभाव?
गर्भगृह में जब पूजा के समय घंटी और मंत्रोच्चार होता है, तो वहां की सकारात्मक ऊर्जा कई गुना बढ़ जाती है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से ये कंपन शरीर के अंदर तक पहुंचकर तनाव, डर और नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है।
ऐसा भी कहते हैं पौराणिक ग्रंथ
पुराणों में वर्णित है कि गर्भगृह को धरती का नाभि केंद्र कहा जाता है। यह ब्रह्मांडीय ऊर्जा का स्रोत है। इसीलिए कहा जाता है कि गर्भगृह में प्रवेश करते ही व्यक्ति का मन और आत्मा स्वतः शांत हो जाती है।
निष्कर्ष
मंदिरों का निर्माण सिर्फ भक्ति या परंपरा के लिए नहीं हुआ, बल्कि इसके पीछे ऊर्जा विज्ञान, वास्तुशास्त्र और अध्यात्म का गहरा नाता है। अगली बार जब भी किसी मंदिर जाएं, तो गर्भगृह की गहराई और वहां की ऊर्जा को जरूर महसूस करें।