डॉ. चौहान जैसे मसीहा की वजह से जिंदा है उम्मीद”
✍️ डॉक्टर्स डे पर विशेष रिपोर्ट
जब भी हम बीमार होते हैं, सबसे पहले जो नाम ज़ेहन में आता है—वो है डॉक्टर। जिन्हें धरती का भगवान कहा जाता है, क्योंकि वे हमें दोबारा जीवन देने का काम करते हैं। इस धरती पर ऐसे ही एक डॉक्टर हैं—डॉ. हरीश चौहान। गरियाबंद की धरती पर उनका नाम किसी मसीहा से कम नहीं है।
डॉक्टर्स डे हो और डॉ. हरीश चौहान की बात न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता।
गरियाबंद जिला अस्पताल में लगभग 15 से 17 डॉक्टर तैनात हैं, लेकिन अगर सबसे ज्यादा भीड़ किसी एक कक्ष के बाहर नजर आती है तो वो है—10 नंबर, यानी डॉ. चौहान का कक्ष। वहाँ जाने वाला हर मरीज डॉक्टर नहीं, एक परिवार के सदस्य से मिलने जैसा महसूस करता है।
“मरीज नहीं, परिवार का कोई आया है” – यही सोचकर काम करते हैं डॉ. चौहान।
इनकी दवा से ज़्यादा से लोग इनके बातो से राहत महसूस करते है, दिन हो की रात चौबीस घंटे अपने सेवाए देने को तत्पर रहते है और लोग है की इलाज के लिए इनके घर तक पहुँच जाते है ज़िले के बाहर और ज़िला मुख्यालय में कई ऐसे भी मरीज़ है जो इनसे फ़ोन पर ही प्रामरश लेते है , ये ऐसे डाक्टर है ,जो समय के पाबंद नहीं ये दस से पाँच की गिनती में नहीं आते और ना ही इन्हें दवा लिखने के लिए पर्ची की ज़रूरत पड़ती है राह चलते किसी भी जगह पेन और काग़ज़ ले कर चल पड़ते है राहत पहुँचाने तो कभी कंधे को बोर्ड बना लेते है तो कभी मोबाइल को रख कर लिख देते है , ज़िले के सैकडो लोगो की जान बांचने वाले मसीहा, डॉ हरीश चौहान के लोग इतने क़ायल है की उन्हें अपने दुख में तो याद करते है पर सुख में याद करने से भी नहीं भूलते,
पेशे से सिविल सर्जन होने के बावजूद वे हर बीमारी का इलाज करते हैं, और शायद यही वजह है कि हर मरीज को सिर्फ उन्हीं पर भरोसा होता है। डॉ. चौहान का कहना है—“यही प्यार और अपनापन ही मेरी ताकत है।”
दिन में सिर्फ चार घंटे की नींद, 12 घंटे अस्पताल में ड्यूटी और बाकी समय मोबाइल से इलाज—लोगों ने उन्हें ‘मोबाइल डॉक्टर’ का नाम दे दिया है।
कई मरीज तो जिले से बाहर रहने के बावजूद, मोबाइल पर परामर्श लेकर ही संतुष्ट होते हैं।
उनकी एक बात लोगों को सबसे ज्यादा सुकून देती है – “छोटे जा यार, कुछ नहीं होगा!”
डरे-सहमे बीमार लोग जब उनके पास आते हैं, तो यही वाक्य सुनकर उनकी आधी बीमारी वहीं खत्म हो जाती है। वे कहते हैं—“बीमारी इंसान की सोच में घर नहीं करना चाहिए। मरीज को डराना नहीं, भरोसा देना सबसे बड़ी दवा है।”
डॉ. चौहान का सपना है – हर गांव में डॉक्टर, हर बच्चे के हाथ में किताब।
वे शिक्षा को प्राथमिकता देते हैं, ताकि आने वाली पीढ़ी न सिर्फ डॉक्टर बने, बल्कि इंसानियत और सेवा भाव लेकर समाज में उतरें।
डॉ. मेमन की विरासत और डॉ. चौहान का संकल्प
डॉ मेमन नाम ही काफ़ी था मुस्कान और अपनापन इनकी पहचान थी वो समय था जब गरियाबंद में “डॉ. मेमन” को मसीहा कहा जाता था। वे 20 रुपये में इलाज करते थे, गरीबों का मुफ्त इलाज उनका धर्म था। उनके आकस्मिक निधन के बाद जब लोग असहाय हो गए, उम्मीदे टूट चुकी थी लोग ख़ुद को बेसहारा सा महसूस करने लगे थे तब डॉ. चौहान को वापस बुलाया गया।
डॉ. चौहान उन्हें अपना गुरु मानते हैं। वे कहते हैं—“डॉ. मेमन से मैंने सीखा कि डॉक्टर और मरीज के बीच रिश्ता सिर्फ इलाज का नहीं, भरोसे का होता है। आज भी लोग उनके नाम से दुआ करते हैं, मैं उन्हीं के चरण चिन्हों पर चल रहा हूं।मेरी बस यही कोशिश है मैं भी अपने गुरु की लोगो के दिलो में बसु ”
कोरोना काल में दिखी असली बहादुरी
कोविड महामारी के दौरान जब लोग अपने ही परिजनों से दूर भागते थे, डॉ. चौहान लोगों के घर-घर जाकर इलाज करते थे।
डरे हुए परिवारों को न सिर्फ बीमारी से लड़ना सिखाते, बल्कि मानसिक रूप से भी मजबूत करते।
शायद यही वजह है कि गरियाबंद में कोरोना से मौत का आंकड़ा बेहद कम रहा।
आज डॉक्टर्स डे नहीं, डॉ. चौहान डे है!
गरियाबंद की जनता आज डॉक्टर्स डे नहीं, “डॉ. चौहान डे” मना रही है।
क्योंकि उन्होंने लोगों को सिर्फ इलाज नहीं, भरोसा, संवेदनशीलता और सम्मान दिया है।डॉक्टरों के लिए यह दिन सिर्फ सम्मान का नहीं, समाज से जुड़ाव का प्रतीक है।जब एक डॉक्टर सफेद कोट पहनता है, तो वह सिर्फ पेशेवर नहीं होता, वह एक उम्मीद बन जाता है।और डॉ. हरीश चौहान आज उस उम्मीद का सबसे ज़िंदा चेहरा हैं।