नई दिल्ली। जहां एक ओर श्रम संहिताओं को लेकर विरोध और शोरगुल का माहौल है, वहीं विशेषज्ञों का मानना है कि ये संहिताएं श्रमिक विरोधी नहीं, बल्कि श्रमिकों को सशक्त बनाने वाली हैं। चार प्रमुख श्रम संहिताएं—कोड ऑन वेजेज, कोड ऑन सोशल सिक्योरिटी, इंडस्ट्रियल रिलेशंस कोड और ऑक्युपेशनल सेफ्टी, हेल्थ एंड वर्किंग कंडीशंस कोड—देश के श्रम कानूनों को आधुनिक, स्पष्ट और समावेशी बनाने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम मानी जा रही हैं।
पुराने कानूनों का आधुनिकीकरण और स्पष्टता
देश में पूर्ववर्ती 44 केंद्रीय और 100 से अधिक राज्य श्रम कानूनों की जटिलता को सरल और व्यावहारिक बनाने के लिए इन संहिताओं को लाया गया है। दूसरे राष्ट्रीय श्रम आयोग (2002) की सिफारिशों के आधार पर श्रम कानूनों को 5 समूहों में विभाजित किया गया है। इससे न केवल अनुपालन आसान हुआ है, बल्कि श्रमिकों के अधिकार भी और अधिक स्पष्ट हुए हैं।
श्रमिकों के लिए व्यापक सुरक्षा और सामाजिक कल्याण
श्रम संहिताएं श्रमिकों को अधिकार, सुरक्षा और अवसर प्रदान करने के साथ-साथ उन्हें सामाजिक सुरक्षा का कवरेज भी देती हैं। इनमें आवास योजनाएं, बाल शिक्षा, रोजगार दुर्घटना कवर, वृद्धाश्रम सहायता, और अंतिम संस्कार सहायता जैसी सुविधाएं शामिल हैं। असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय सामाजिक सुरक्षा बोर्ड गठित किए गए हैं।
नारी सुरक्षा और लैंगिक समानता पर विशेष बल
संहिताओं में महिलाओं को रात्रिकालीन पाली में सुरक्षित कार्य की अनुमति, लैंगिक समानता और समान वेतन की स्पष्ट व्यवस्था की गई है। साथ ही, कार्यस्थल पर “अनुबंध” के नाम पर शोषण को रोकने के लिए तय किया गया है कि निश्चित अवधि के कर्मचारी को स्थायी कर्मचारियों के समान वेतन और सुविधाएं मिलेंगी।
गिग और प्लेटफ़ॉर्म श्रमिकों को मिला सुरक्षा कवच
श्रम संहिताओं ने पहली बार गिग और प्लेटफ़ॉर्म श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा के दायरे में लाकर एक नया अध्याय जोड़ा है। एग्रीगेटर्स को अपने वार्षिक टर्नओवर का 1-2% सामाजिक सुरक्षा निधि में योगदान देना होगा, जिससे इन श्रमिकों को स्वास्थ्य, दुर्घटना और भविष्य निधि जैसे लाभ मिल सकें।
प्रवासी श्रमिकों को भी मिलेगा लाभ
अंतर-राज्यीय प्रवासी श्रमिकों की परिभाषा का विस्तार कर उन्हें गंतव्य राज्यों में राशन, सामाजिक सुरक्षा और वार्षिक यात्रा सुविधा प्रदान की गई है। स्व-घोषणा आधारित डेटा रजिस्ट्रेशन और 10 से अधिक प्रवासी श्रमिकों वाले प्रतिष्ठानों को संहिताओं का पालन सुनिश्चित करने की बाध्यता इन श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा को मजबूत करती है।
विवाद निपटारे और न्याय में तेजी
श्रम संहिताओं के तहत बने नए श्रम न्यायाधिकरण यह सुनिश्चित करेंगे कि श्रमिकों से जुड़े विवादों का निपटारा एक वर्ष के भीतर हो। यह न्याय में देरी की पुरानी समस्या को समाप्त कर निष्पक्ष समाधान की दिशा में एक बड़ा सुधार है।
संवाद और भागीदारी की नीति
इन संहिताओं को तैयार करने में नौ त्रिपक्षीय और दस अंतर-मंत्रालयी परामर्शों के माध्यम से ट्रेड यूनियनों की सक्रिय भागीदारी रही है। संसदीय स्थायी समिति की 233 सिफारिशों में से 74% को स्वीकार किया गया, जो सरकार की समावेशी नीति और संतुलित कानून निर्माण की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।