उरमाल। गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर जब पूरा देश अपने-अपने गुरु को श्रद्धांजलि दे रहा है, तब छत्तीसगढ़ के एक छोटे से गांव उरमाल की एक शिक्षिका की कहानी पूरे समाज के लिए आदर्श बनकर उभरती है। ये हैं मीना देवांगन, जो पिछले 27 वर्षों से शिक्षा की अलख जगा रही हैं – न केवल पाठ्यपुस्तकों के माध्यम से, बल्कि जीवन के संघर्षों से भी।
ट्राइसाइकिल पर स्कूल, लेकिन बच्चों को देते हैं उड़ने के पंख
मीना मैडम स्वयं शारीरिक रूप से दिव्यांग हैं, लेकिन उनके हौसले की ऊँचाई को कोई माप नहीं सकता। हर सुबह वे अपनी ट्राइसाइकिल पर सवार होकर स्कूल पहुँचती हैं – कभी तेज धूप, तो कभी बारिश या कड़ाके की ठंड भी उनके रास्ते में बाधा नहीं बनती।
उनका मानना है – “अगर मैं रुक गई, तो मेरे बच्चों के सपने भी रुक जाएंगे।”
दिव्यांगता नहीं, उनकी पहचान है ‘दृढ़ निश्चय’
मीना मैडम का जीवन इस बात का प्रमाण है कि अगर मन में दृढ़ता हो, तो कोई भी बाधा हमें रोक नहीं सकती।
वे कहती हैं –
“दिव्यांगता कोई कमजोरी नहीं है, यह तो ईश्वर की दी गई एक विशेष चुनौती है जिसे हम मेहनत से वरदान में बदल सकते हैं।”
आज मीना मैडम न केवल पढ़ाती हैं, बल्कि गांव के अन्य दिव्यांग बच्चों और युवाओं को भी संबल देती हैं, उन्हें आगे बढ़ने की प्रेरणा देती हैं।
गांव की ज़ुबान पर एक ही बात – ‘गुरु हो तो मीना मैडम जैसी’
उरमाल गांव के लोगों के लिए मीना मैडम सिर्फ शिक्षिका नहीं हैं – वे संघर्ष, समर्पण और सच्ची सेवा की प्रतिमा हैं।
गांववाले कहते हैं –
“हमारे बच्चे ही नहीं, अब उनके बच्चे भी मीना मैडम से पढ़ना चाहते हैं। वो सिर्फ शिक्षक नहीं, जीवन गुरु हैं।”
गुरु पूर्णिमा पर सच्चे ‘गुरु’ को नमन
इस गुरु पूर्णिमा पर जब हर कोई अपने गुरु के प्रति कृतज्ञता प्रकट कर रहा है, ऐसे में मीना देवांगन जैसी शिक्षिकाएं समाज के लिए चलती-फिरती मिसाल हैं।
उनका जीवन हमें सिखाता है कि
“अगर हौसला हो तो कोई भी कमजोरी, कोई भी परिस्थिति आपको थाम नहीं सकती।”
मीना मैडम जैसे गुरु वास्तव में समाज की वह जड़ हैं, जिन पर भावी पीढ़ी का भाग्य टिका है। उन्हें सादर नमन।