जांजगीर-चांपा जिले की | कोटवार ने घर में घुसकर की मारपीट | सार्वजनिक रास्ते पर कब्जे का विरोध बना हिंसा की वजह
जांजगीर-चांपा। CG NEWS: “जब गांव के पहरेदार ही बन जाएं अत्याचारी, तो आम आदमी कहां जाए?”
जांजगीर-चांपा जिले के ग्राम पंचायत कुरियारी से आई एक चौंकाने वाली घटना ने शासन और प्रशासन की निष्क्रियता को एक बार फिर उजागर कर दिया है। यहां पंचायत के कोटवार ने एक गरीब परिवार के घर में घुसकर बेरहमी से पिटाई कर दी, और सबसे शर्मनाक बात ये रही कि पूरी घटना का वीडियो वायरल हो गया, फिर भी प्रशासन ने चुप्पी साध ली है।
📍 क्या है पूरा मामला?
घटना शिवरीनारायण तहसील क्षेत्र के ग्राम कुरियारी की है। पीड़ित गौतम कश्यप ने अपने घर के सामने सार्वजनिक रास्ते पर हो रहे अवैध कब्जे का विरोध किया था। आरोप है कि ग्राम पंचायत का कोटवार, जो राजस्व विभाग के अधीन कार्यरत होता है, राजस्व अधिकारियों के संरक्षण में सार्वजनिक रास्ते पर कब्जा कर रहा था। जब गौतम ने इसका विरोध किया, तो कोटवार रात के समय उसके घर में घुस आया और परिवार की जमकर पिटाई कर दी।
📹 वायरल वीडियो बना सुबूत, पर नहीं मिली सुनवाई
इस घटना का वीडियो मोबाइल कैमरे में कैद हो गया, जिसमें साफ देखा जा सकता है कि कोटवार किस तरह घर में घुसकर मारपीट कर रहा है। बावजूद इसके, पीड़ित परिवार को न तहसील कार्यालय ने सुना, न ही शिवरीनारायण थाने ने FIR दर्ज की।
गौतम कश्यप ने कई बार प्रशासन से न्याय की गुहार लगाई, लेकिन हर बार उसे खाली हाथ लौटना पड़ा।
🛑 सवालों के घेरे में जिम्मेदार अफसर
गांव के हालात इस कदर बिगड़े हुए हैं कि कोटवार जैसे सरकारी कर्मचारी भी अब दबंगई पर उतर आए हैं, और उनकी पीठ तहसील स्तर के अधिकारियों द्वारा थपथपाई जा रही है। सवाल ये है कि –
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जब कानून का काम करने वाला ही कानून तोड़ रहा हो, तो आम नागरिक किसके पास जाए?
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सार्वजनिक रास्ते पर कब्जा और फिर विरोध करने वालों की पिटाई – क्या यही है “जनकल्याण” प्रशासन की परिभाषा?
🚨 प्रशासन के लिए खुली चुनौती
कोटवार जैसे पदों को गांव में न्याय और सूचना का माध्यम माना जाता है, लेकिन जब वही धौंस और कब्जे के उपकरण बन जाएं, तो यह साफ है कि प्रशासनिक संरक्षण की ताकत का दुरुपयोग हो रहा है।
अब समय है कि शिवरीनारायण तहसील के जिम्मेदार अफसर जवाब दें – आखिर गरीब की आवाज क्यों नहीं सुनी गई?
🗣️ गौतम कश्यप की गुहार
गौतम और उसका परिवार डरे-सहमे हैं, लेकिन अब भी न्याय की उम्मीद में सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट रहे हैं। उनका सवाल सिर्फ इतना है –
“क्या गरीब होना ही हमारा सबसे बड़ा गुनाह है?”