गरियाबंद। CG NEWS : “क्या गरीब की पुश्तैनी ज़मीन दिलाना भी सरकार के बस में नहीं?” यह सवाल गरियाबंद ज़िले के मुर्रा गांव में रहने वाले नागेश परिवार ने उठाया है, जो पिछले 5 वर्षों से अपनी ज़मीन पर कब्जा छुड़वाने के लिए तहसील से लेकर कलेक्टर तक की दहलीज नाप रहा है।
7.50 एकड़ पुश्तैनी ज़मीन पर लंबे समय से अवैध कब्जा है। न्याय की उम्मीद में परिवार आर्थिक और मानसिक रूप से टूट चुका है। अब उन्होंने साफ चेतावनी दी है – यदि 14 जुलाई तक न्याय नहीं मिला, तो वे कलेक्टर कार्यालय के सामने आमरण अनशन पर बैठेंगे।
पांच साल की लड़ाई, मगर हर बार मायूसी
मुर्रा निवासी नागेश ने बताया कि गांव के ही एक प्रभावशाली व्यक्ति ने उनकी ज़मीन पर कब्जा कर लिया है। न्याय की उम्मीद में वे लगातार तहसील, एसडीएम और कलेक्टर कार्यालय का दरवाज़ा खटखटाते रहे, लेकिन हर बार या तो मामला टाल दिया गया या कब्जाधारी के पक्ष में झुकाव देखा गया।
“हमने सब कुछ गंवाया, बस जमीन नहीं मिली”
नागेश का कहना है कि उन्होंने जमीन वापस पाने के लिए हर वो रास्ता अपनाया जो कानूनन मुमकिन था। लेकिन कभी आश्वासन, कभी आदेश, सब सिर्फ कागजों तक ही सीमित रह गए।
“हमने अपने जेवर तक बेच दिए, बच्चों का पेट काटकर भी लड़ाई लड़ी, लेकिन नतीजा आज तक शून्य है,” उन्होंने कहा।
करीब दो माह पहले तहसीलदार ने जमीन दिलाने का आश्वासन दिया और कुछ समय के लिए कब्जा हटाया गया। लेकिन जल्द ही कब्जाधारी ने स्टे ऑर्डर के जरिए फिर से कब्जा जमा लिया।
नागेश का आरोप है कि यह पूरी प्रक्रिया प्रशासनिक लापरवाही का नतीजा है।
टूटी उम्मीद, आर्थिक बदहाली
कभी अपनी ज़मीन की पैदावार से घर चलाने वाला यह परिवार अब दिहाड़ी मजदूरी करके जीवनयापन कर रहा है।
5 साल की कानूनी लड़ाई ने उन्हें कर्ज में डुबो दिया है।
“अब तो न खाने के पैसे हैं, न भरोसा बचा है
14 जुलाई का अल्टीमेटम
नागेश परिवार ने कहा है कि अगर 14 जुलाई तक उन्हें न्याय नहीं मिला, तो वे कलेक्टर कार्यालय के सामने आमरण अनशन पर बैठेंगे।
“अब या तो जमीन मिलेगी या हमारी आवाज़ को देश सुनेगा,” नागेश की यह चेतावनी प्रशासन के लिए गंभीर चिंता का विषय बन गई है।