गुवाहाटी, असम। Dr. Prem Sai Maharaj : शक्ति की भूमि, नीलांचल पर्वत पर स्थित माँ कामाख्या मंदिर, एक ऐतिहासिक आध्यात्मिक क्षण का साक्षी बना। 10 से 12 जुलाई 2025 तक चले तीन दिवसीय गुरु पूर्णिमा उत्सव में छत्तीसगढ़ के मातंगी धाम के पीठाधीश्वर, डॉ. प्रेम साईं महाराज जी की उपस्थिति ने मंदिर परिसर को एक नए आध्यात्मिक जागरण की ओर अग्रसर किया।
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यह केवल एक महोत्सव नहीं था — यह एक पुनरावृत्ति थी उस समय की, जब तंत्र जीवित था, गुरु दीक्षा जीवंत थी, और भक्त स्वयं साधक होते थे। इस बार डॉ. प्रेम साईं जी अपने साथ लाए — वे ग्रंथ जो न तो पुस्तकों में मिलते हैं और न ही पुस्तकालयों में। ताड़पत्रों पर लिखे गए ये दुर्लभ असमिया तंत्र-शास्त्र, पहली बार कामाख्या परिसर में दर्शनार्थ लाए गए।
इस विशेष अवसर पर “दश महाविद्या यज्ञ” ने साधना का एक उच्चतम स्तर प्रस्तुत किया, जहाँ देवी मातंगी सहित दसों महाविद्याओं को समर्पित विधिपूर्वक आहुतियाँ दी गईं। इस अनुष्ठान की अनुभूति केवल आँखों से नहीं, चेतना से की जाती थी — मंत्रों की ध्वनि, अग्नि की लहर, साधकों की तपश्चर्या — सबने मिलकर एक गूढ़ तांत्रिक कंपन उत्पन्न किया।
गुरु पूर्णिमा पर गुरुदेव द्वारा दी गई दीक्षा ने सैकड़ों जिज्ञासुओं को साधना पथ पर प्रवेश दिया। यह दीक्षा कोई अनुष्ठान नहीं, आत्मा के साथ की गई प्रतिज्ञा थी।
डॉ. प्रेम साईं महाराज का यह आगमन केवल एक यात्रा नहीं, बल्कि एक संदेश था — कि गुरु परंपरा, जब जीवित गुरु के द्वारा साधक को दी जाती है, तब तंत्र फिर से सांस लेता है।