नई दिल्ली। भारतीय नौसेना जल्द ही छह स्वदेशी पारंपरिक पनडुब्बियों के निर्माण के लिए 50,000 करोड़ रुपये से अधिक की परियोजना के लिए निविदा लेकर आएगी, लेकिन उनमें स्वदेशी एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन सिस्टम नहीं लगाया जाएगा जिसे डीआरडीओ विकसित कर रहा है। एयर-इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन (एआइपी) तकनीक पारंपरिक पनडुब्बियों के पानी के भीतर लंबे समय तक रहने की क्षमता और गोपनीयता बढ़ाती है। इन्हें अपनी बैटरी रिचार्ज करने के लिए आक्सीजन का उपयोग करने के लिए सतह पर आना पड़ता है।
पी-75 इंडिया – डीआरडीओ विकसित कर रहा है एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन सिस्टम
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता वाली रक्षा अधिग्रहण परिषद ने हाल ही में देश के भीतर छह नई पारंपरिक डीजल-इलेक्टि्रक पनडुब्बियों के निर्माण के साथ आगे बढ़ने के लिए भारतीय नौसेना के लिए लगभग 50,000 करोड़ रुपये की पी-75 इंडिया नामक परियोजना को मंजूरी दी थी।सूत्रों ने बताया कि रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन, पी-75 इंडिया परियोजना में अपना एआइपी शामिल करने पर जोर दे रहा है, लेकिन इसे अभी तक टेंडर में शामिल नहीं किया गया है।
नौसेना ने फिलहाल इस सिस्टम को नहीं दिखाई हरी झंडी
सूत्रों के अनुसार, भारतीय नौसेना ने डीआरडीओ से कहा है कि स्कॉर्पीन-श्रेणी की पनडुब्बियां जब अपनी निर्धारित रिफिटिंग के लिए आना शुरू करें तो उनमें इसे लगाने की अनुमति देने से पहले उसे एक प्लेटफार्म पर अपने एआइपी की क्षमता साबित करनी होगी। यह पता चला है कि नौसेना अपनी परियोजना के दावेदारों को वर्तमान में चालू एआइपी सिस्टम का उपयोग करने की अनुमति देगी जो केवल विदेशी मूल उपकरण निर्माताओं (ओईएम) के पास उपलब्ध होंगी।
इस परियोजना में कम से कम दो साल लगने की उम्मीद है। इस परियोजना का काम हाथ में लेने के लिए लार्सन एंड टुब्रो और मझगांव डाक यार्ड्स लिमिटेड के बीच जबर्दस्त होड़ है। इनके साथ पांच विदेशी फर्मे भी साझीदार हैं जो कुछ अहम उपकरणों की सप्लाई करेंगी।