सुनील दत्त को जितनी कामयाबी फिल्मों में मिली, उतने ही कामयाब वो राजनीति में भी रहे। हालांकि बॉलीवुड में उन्होंने ऐसा भी दौर देखा जब उन्हें फिल्में नहीं मिल रही थीं। सुनील दत्त आज ही के दिन यानी 6 जून 1929 को झेलम में पैदा हुए थे, जो अब पाकिस्तान में है। सुनील दत्त ने अपने छह दशक के लंबे फिल्मी करियर में 50 से ज्यादा फिल्मों में अभिनय किया था।
संघर्ष
वैसे उनका निजी जीवन काफी संघर्ष भरा रहा था। सुनील दत्त से जुड़ी निजी यादों को साझा करते हुए वरिष्ठ फिल्म पत्रकार जयप्रकाश चौकसे कहते हैं, “सुनील दत्त ने पूरे जीवन असंभव लड़ाइयां लड़ी हैं। अपने बेटे को ड्रग्स की लत छुड़ाने और पत्नी का इलाज कराने के लिए वो दो बार अमरीका गए। इस दौरान वो बहुत परेशान रहे। चौकसे कहते हैं, “उनकी मुसीबतें कभी कम न हुईं। कैंसर और ड्रग्स ने उन्हें बहुत लाचार और दुखी कर दिया था। ड्रग्स और कैंसर के प्रति लोगों में जागरुकता लाने के लिए उन्होंने दो बार मुंबई से चंडीगढ़ तक पदयात्रा की।”
चौकसे बताते हैं कि ‘सुनील दत्त पर्दे पर खलनायक की भूमिका नहीं निभाना चाहते थे। जब 1971 से 1975 तक कोई फिल्म नहीं मिलने से उनका करियर लड़खड़ाने लगा तब अभिनेत्री साधना और आरके नय्यर ने उन्हें ‘गीता मेरा नाम’ फिल्म में काम करने को कहा। लाख समझाने के बाद उन्होंने पहली बार खलनायक की भूमिका निभाई। उसके बाद से उन्हें फिर से फिल्में मिलनी शुरू हो गईं।”
कैसे मिला ब्रेक
मशहूर रेडियो प्रसारक अमीन सयानी सुनील दत्त के पुराने मित्र थे। हीरो बनने से पहले सुनील दत्त भी रेडियो सीलोन में प्रसारक थे। सयानी और दत्त उसी वक्त से अच्छे मित्र थे।
सयानी ने बताया था कि, “रेडियो कार्यक्रमों के दौरान दत्त की मुलाकात बड़ी-बड़ी फिल्मी हस्तियों से होती रहती थी। कई लोग उन्हें देखकर कहा करते थे इतने सुन्दर, लंबे, तगड़े नौजवान, इतने खूबसूरत इंसान हो तुम फिल्म कलाकार क्यों नहीं हो?”
ऐसी ही एक मुलाकात के बाद फिल्म निर्माता रमेश सहगल ने अपनी फिल्म ‘रेलवे प्लेटफॉर्म’ के लिए सुनील दत्त को हीरो के रोल का प्रस्ताव दिया था, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया।
अमीन सयानी ने आगे बताया कि, “अपने दोस्त को याद करते हुए इतना कहूंगा की पैंसठ साल से मेरा नाता रहा है हिंदुस्तानी फिल्मी दुनिया से, मुझे हर तरह के लोग मिले हैं संगीत सितारे, फिल्मी सितारे, निर्माता, निर्देशक और पॉलिटिशियन। इन सबमें सबसे खूबसूरत इंसान अगर आप चुनने को कहें तो मैं दत्त साहब का ही नाम लूंगा। मुझे आज भी याद है जब उनकी मौत हुई थी तो कैसे हजारों लोग सड़कों पर उतर आए थे। वो बहुत अच्छे अभिनेता, पॉलिटिशियन और इंसान थे।”