छत्तीसगढ़ के पारंपरिक पर्वों में से एक भाद्रपद अमावस्या को मनाया जाने वाला और आजादी के पहले से चली आ रही अनोखी पोला पर्व आज भी कायम है। ग्राम पंचायत कोरदा में पोला पर्व महोत्सव मनाने की अनोखी परम्परा है। यहां 123 वर्षों से चली आ रही परम्परा आज भी कायम है । पोला पर्व को देखने के लिए आसपास लोग बडी संख्या में यहां पहुंचते हैं। वही इस मेले में खरीदारी में पैसे नहीं पकवाने देने पड़ते है ।
आपको बता दे कि यह पर्व छत्तीसगढ़ के बलौदा बाजार जिले के अंतर्गत ग्राम कोरदा का है जहाँ लोग माह भर पहले से ही पोला पर्व की तैयारी में जुटे रहते है। यहां पुरूष वर्ग मिट्टी के खिलौना, कागज के फुल, रोटी में बेचने के लिये बनाते हैं तो, महिलाएं घर घुंदिया बनाने में लगी रहती हैं।
इस एक दिवसीय पोला मेला में खिलौने के दुकानो से सिर्फ महिला। पकवान देकर खिलौने खरीद सकती हैं। पोला के दिन कोरदा गांव की महिलाएं तथा लडकियां अपने घर छोडकर तालाब किनारे घर घुंदिया का निर्माण करती हैं, जहां पर पुड़ी, बडा, भजिया, ठेठरी, खुरमी पकवान लेकर बैठी रहती हैं। जैसे ही बाजार सज जाता है फिर पकवान से महिलाएं खिलौना लेने के लिए निकलती है।
यहां पैसे से कुछ नहीं मिलता। घर में बने पकवानों ठेठरी, खुर्मी, पुड़ी, इत्यादि से खिलौनों की खरीदी की जाती है। पोला पर्व पर लवन क्षेत्र के 20-25 ग्रामों की महिलाएं गांव कोरदा में शामिल होकर पोला पर्व का आनंद लेती है।