बिलासपुर। घर में किसी की तबीयत बिगड़ जाए तो इंसान सबसे पहले अस्पताल पहुंचाने की कोशिश करता है, ताकि किसी तरह जिंदगी बच जाए। पर यदि अस्पताल पहुंचने के बावजूद केवल इसलिए किसी इंसान की जान चली जाए, क्योंकि कागजी प्रक्रिया पूरी नहीं हुई है, तो फिर इंसान किस पर विश्वास कर पाएगा। कुछ ऐसा ही वाकया बिलासपुर जिला अस्पताल में घटा है, जहां पर कागजी प्रक्रिया पूरी करने के नाम पर एक गर्भवती की सांसे थम गई और एक अजन्मे शिशु का दम कोख में घुंट गया।
जानकारी के मुताबिक चकरभाठा निवासी चिंतामणि मिश्रा की पत्नी अन्नू मिश्रा 8 माह की प्रेग्नेंट थी। सोमवार सुबह उसकी तबीयत अचानक बिगड़ गई। इसके बाद पति चिंतामणि से उसे एंबुलेंस से लेकर जिला अस्पताल पहुंचे। वहां का स्टाफ इलाज करने की जगह कागजी कार्यवाही में उलझा रहा। जिसके चलते आधे घंटे तक अन्नू तड़पड़ी रही और उसकी मौत हो गई। मरने के बाद उसे सिम्स रेफर कर दिया।
चिंतामणि ने बताया कि ’’मैंने अपनी बीवी के सीने पर कान लगाकर धड़कन सुनी तो उसकी सांसें थम चुकी थीं, फिर भी इस उम्मीद से सिम्स ले जा रहे थे कि शायद वहां कुछ हो जाए। यहां से कोई एंबुलेंस वाला जाने को तैयार नहीं था। 108 वाले ने भी मना कर दिया। डेढ़ घंटे इंतजार किया तब एक गाड़ी वाला तैयार हुआ। इमली-पारा के पास पहुंचे ही थे कि एंबुलेंस ड्राइवर के पास फोन आया और वापस गाड़ी को मोड़कर जिला अस्पताल आ गए। जिला अस्पताल लौटने के बाद सुबह 10.30 बजे से दोपहर 3.30 बजे तक शव एंबुलेंस में ही पड़ा रहा। परिजन रोते-बिलखते रहे।’’
यदि जिला अस्पताल का स्टाफ ध्यान दिया होता तो संभव था कि उस महिला की जान बच जाती और अजन्मा शिशु कोख से बाहर आकर अपने परिवार को निहाल कर रहा होता, लेकिन अव्यवस्थाओं ने दो लोगों की जान ले ली। ऐसे में क्यों ना उन लापरवाह लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए, जो हर महीने मोटी तनख्वाह तो उठाते हैं, लेकिन अपनी जिम्मेदारी का उन्हें अहसास मात्र भी नहीं है।