संवाददाता — आनंद सिंह राजपूत, दुर्ग
बीते दो दशक में भौतिकवादिता ने इंसान के जीवन में किस तरह से घर किया है, हमारी आज की जीवन शैली से इस बात का अंदाजा लग सकता है। आज भाग—दौड़ से भरी इंसान की जिंदगी में सुख—सुविधाओं की कोई कमी नहीं है, लेकिन सुकुन से ज्यादातर लोगों का नाता टूट चुका है। दिल और दिमाग में असंतोष इतना घर कर चुका है, जिससे चाहकर भी इंसान उबर नहीं पा रहा है। आज के बच्चे दो दशक पहले के उस सुख—शांति से अनजान हैं, लेकिन झांकी के माध्यम से उस खूबसूरत जीवन को बताने का अनूठा प्रयास दुर्ग के शीतला मंदिर समिति ने किया है।
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दुर्ग। शारदीय नवरात्रि की सबसे बड़ी खूबसूरती यही है कि इन पूरे 9 दिनों में जो खुशनुमा वातावरण बनता है, उसकी बानगी ही अलग होती है। जगह—जगह माता रानी की सुंदर प्रतिमाओं का दर्शन तो होता ही है, उनके साथ अद्भूत कलाकृतियां भी नजर आती हैं। ऐसी ही आकर्षक कलाकृति इस बार शीलता नगर, दुर्ग में नजर आ रही है। यहां पर उस वक्त को सहजता से समझाने का प्रयास किया गया है, जब कलयुग पूरी तरह से सवार नहीं हुआ था।
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यहां माता जी के लिए मिट्टी से बनी कुटिया बनाई गई है, जिसमें खपरैल और पुराने दिनों में जो मिट्टी का घर होता था, कुछ वैसे ही मिट्टी का घर बनाया गया है। इसे माता की कुटिया नाम दिया गया है। वहीं माता जी सूपा लेकर लाई फुनती नजर आ रही है और पास ही लकड़ी जला कर खाना बनाते हुए प्रदर्शित किया गया है। भोलेनाथ की प्रतिमा ऊपर लगाई गई है जो माता जी को खाना बनाते और लाई फुनते देख रहे हैं।
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दरअसल, यह केवल झांकी या प्रतिकृति नहीं है, बल्कि इंसान की वह जीवन शैली है, जिसके लोग अभ्यस्त थे। शुद्धता और स्वच्छता का पूरा ख्याल रखा जाता था। वातावरण में प्रदूषण नहीं था, लोगों को शुद्ध वायु मिलती थी। तब लोग वॉटर प्यूरीफायर का पानी नहीं, बल्कि कुंए का पानी पीते थे, जो प्रकृति संप्नन हुआ करता था। भोजन पौष्टिकता से परिपूर्ण हुआ करता था, नींद के लिए लोगों को दवाईयों का सहारा नहीं लेना पड़ता था। तब शुगर, बीपी के लिए डॉक्टरों को मोटी फीस नहीं देनी पड़ती थी।
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