आज षटतिला एकादशी (Shattila Ekadashi 2022) है। एकादशी का व्रत सभी व्रतों में उत्तम और श्रेष्ठ माना गया है। माघ माह के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी की तिथि को षटतिला एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। षटतिला एकादशी पर तिल का दान करना भी बेहद उत्तम माना जाता है।
षटतिला एकादशी (Shattila Ekadashi 2022) के दिन विधि पूर्वक व्रत रखने और पूजा करने से जीवन में सुख-समृद्धि आती है साथ ही सारे रोगों और कष्टों से मुक्ति मिल जाती है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन व्रत करने से व्यक्ति को कन्यादान, हजारों सालों की तपस्या और स्वर्ण दान के समान फल मिलता है।
तिल का धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व
षटतिला एकादशी तिल के महत्व के बारे में भी बताती है। इस दिन 6 तरह से तिल का प्रयोग करना शुभ माना गया है। तिल को सेहत के लिए भी लाभकारी माना गया है। षटतिला पर तिल मिश्रित जल से स्नान करना, तिल का उबटन लगाना भी शुभ माना गया है। इसके साथ ही षटतिला एकादशी पर तिल से भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। इस दिन तिल मिश्रित जल का सेवन करना उत्तम माना गया है। फलाहार के समय तिल का मिष्ठान ग्रहण करना, तिल से हवन करना और तिल का दान करना भी विशेष फलदायी माना गया है।
Shattila Ekadashi 2022: सुख और समृद्धि पाने के लिए षटतिला एकादशी को जरूर करें विष्णु कवच का पाठ
इन चीजों से करें श्री हरि की आराधना
एकादशी के दिन सुबह उठकर स्नान आदि करने के बाद शुद्ध वस्त्र धारण कर भगवान विष्णु की आराधना करनी चाहिए। जल, वस्त्र, गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, तिल, तुलसी आदि से श्री हरि विष्णु की पूजा करनी चाहिए। साथ ही विष्णु स्तुति, विष्णु कवच आदि का जाप भी करना चाहिए।
श्री विष्णु स्तुति
शान्ताकारं भुजंगशयनं पद्मनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगन सदृशं मेघवर्ण शुभांगम्।
लक्ष्मीकांत कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं
वन्दे विष्णु भवभयहरं सर्व लौकेक नाथम्।।
यं ब्रह्मा वरुणैन्द्रु रुद्रमरुत: स्तुन्वानि दिव्यै स्तवैवेदे:।
सांग पदक्रमोपनिषदै गार्यन्ति यं सामगा:।
ध्यानावस्थित तद्गतेन मनसा पश्यति यं योगिनो
यस्यातं न विदु: सुरासुरगणा दैवाय तस्मै नम:।।
फटतिला एकादशी मंत्र
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे।
हे नाथ नारायण वासुदेवाय।।
ॐ नारायणाय विद्महे।
वासुदेवाय धीमहि।
तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।।
ॐ विष्णवे नम:
ॐ हूं विष्णवे नम:
ॐ नमो नारायण।
श्री मन नारायण नारायण हरि हरि।
दन्ताभये चक्र दरो दधानं,
कराग्रगस्वर्णघटं त्रिनेत्रम्।
धृताब्जया लिंगितमब्धिपुत्रया
लक्ष्मी गणेशं कनकाभमीडे।।
ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर।
भूरि घेदिन्द्र दित्ससि।
ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्।
आ नो भजस्व राधसि।
ॐ अं वासुदेवाय नम:
ॐ आं संकर्षणाय नम:
ॐ अं प्रद्युम्नाय नम:
ॐ अ: अनिरुद्धाय नम:
ॐ नारायणाय नम:
ॐ ह्रीं कार्तविर्यार्जुनो नाम राजा बाहु सहस्त्रवान।
यस्य स्मरेण मात्रेण ह्रतं नष्टं च लभ्यते।।