आज बसंत पंचमी (Basant Panchami 2022) का शुभ दिन है। इस दिन मां सरस्वती की पूजा (maa saraswati puja) की जाती है। विद्या इससे विद्या और ज्ञान का आर्शीवाद मिलता है। मां सरस्वती को ज्ञान, विद्या और कला की देवी माना जाता है। बसंत पंचमी (Basant Panchami 2022) के दिन सरस्वती स्त्रोत का जाप भी जरूर करना चाहिए। साथ ही पूजा वाली जगह पर कोई पुस्तक, वाद्य यंत्र या कोई भी कलात्मक चीज रखकर उसकी पूजा करनी चाहिए। ये दिन विद्यारंभ संस्कार (vidyarambh sanskar) के लिए भी सर्वोचित माना जाता है।
ऐसे करें मां की पूजा-
घर में अच्छी तरह साफ सफाई कर लें।
इसके बाद स्नान करने से पहले नीम और हल्दी का लेप अपने शरीर पर अवश्य लगाएं।
नहाने के बाद पीले या सफेद रंग के कपड़े पहनें।
मां सरस्वती की प्रतिमा या चित्र को पूजा स्थल पर स्थापित करें।
माता सरस्वती की प्रतिमा के बगल में भगवान गणेश की प्रतिमा आवश्य रखें।
साथ ही स्थल पर कोई पुस्तक, वाद्य यंत्र या कोई भी कलात्मक वस्तु आवश्यक रखें।
इसके बाद यथा उपलब्ध सामाग्री से पूजा करें।
सरस्वती वंदना (Saraswati Vandana)
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता।
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना॥
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥
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सरस्वती स्त्रोत-
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना ।
या ब्रह्माच्युतशङ्करप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥1॥
आशासु राशीभवदङ्गवल्लीभासैव दासीकृतदुग्धसिन्धुम् ।
मन्दस्मितैर्निन्दितशारदेन्दुं
वन्देऽरविन्दासनसुन्दरि त्वाम् ॥2॥
शारदा शारदाम्भोजवदना वदनाम्बुजे ।
सर्वदा सर्वदास्माकं सन्निधिं सन्निधिं क्रियात् ॥3॥
सरस्वतीं च तां नौमि वागधिष्ठातृदेवताम् ।
देवत्वं प्रतिपद्यन्ते यदनुग्रहतो जनाः ॥4॥
पातु नो निकषग्रावा मतिहेम्नः सरस्वती ।
प्राज्ञेतरपरिच्छेदं वचसैव करोति या ॥5॥
शुक्लां ब्रह्मविचारसारपरमामाद्यां जगद्व्यापिनीं
वीणापुस्तकधारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम् ।
हस्ते स्फाटिकमालिकां च दधतीं पद्मासने संस्थितां
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम् ॥6॥
वीणाधरे विपुलमङ्गलदानशीले
भक्तार्तिनाशिनि विरञ्चिहरीशवन्द्ये ।
कीर्तिप्रदेऽखिलमनोरथदे महार्हे
विद्याप्रदायिनि सरस्वति नौमि नित्यम् ॥7॥
श्वेताब्जपूर्णविमलासनसंस्थिते हे
श्वेताम्बरावृतमनोहरमञ्जुगात्रे ।
उद्यन्मनोज्ञसितपङ्कजमञ्जुलास्ये
विद्याप्रदायिनि सरस्वति नौमि नित्यम् ॥8॥
मातस्त्वदीयपदपङ्कजभक्तियुक्ता
ये त्वां भजन्ति निखिलानपरान्विहाय ।
ते निर्जरत्वमिह यान्ति कलेवरेण
भूवह्निवायुगगनाम्बुविनिर्मितेन ॥9॥
मोहान्धकारभरिते हृदये मदीये
मातः सदैव कुरू वासमुदारभावे ।
स्वीयाखिलावयवनिर्मलसुप्रभाभिः
शीघ्रं विनाशय मनोगतमन्धकारम् ॥10॥
ब्रह्मा जगत् सृजति पालयतीन्दिरेशः
शम्भुर्विनाशयति देवि तव प्रभावैः ।
न स्यात्कृपा यदि तव प्रकटप्रभावे
न स्युः कथञ्चिदपि ते निजकार्यदक्षाः ॥11॥
लक्ष्मीर्मेधा धरा पुष्टिर्गौरी तुष्टिः प्रभा धृतिः ।
एताभिः पाहि तनुभिरष्टाभिर्मां सरस्वति ॥12॥
सरस्वत्यै नमो नित्यं भद्रकाल्यै नमो नमः ।
वेदवेदान्तवेदाङ्गविद्यास्थानेभ्य एव च ॥13॥
सरस्वति महाभागे विद्ये कमललोचने ।
विद्यारुपे विशालाक्षि विद्यां देहि नमोऽस्तु ते ॥14॥
यदक्षरं पदं भ्रष्टं मात्राहीनं च यद्भवेत् ।
तत्सर्वं क्षम्यतां देवि प्रसीद परमेश्वरि ॥15॥