चैत्र माह(chaitra maah ) के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन गुड़ी पड़वा का पर्व मनाया जाता है। इस पर्व को पच्चड़ी, संवत्सर पाडवो और उगादी आदि नामों से भी जाना जाता है। गुड़ी पड़वा का ये पर्व महाराष्ट्र(maharastra ), गुजरात(gujarat ), आंध्र प्रदेश(andhra pradesh ) आदि में धूमधाम से मनाया जाता है।
आपको बता दे कि गुड़ी पड़वा(gudi padwa ) को लेकर मान्यता है कि इस दिन भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की थी। इसके साथ ही सतयुग का भी आरंभ हुआ था। मान्यता है कि इस दिन विधि विधान से तोरण और पताका लगाने से सुख-समृद्धि(happiness ) की प्राप्ति होती है।
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शुभ मुहूर्त (subh muhrat )
प्रतिपदा तिथि प्रारंभ- 1 अप्रैल, शुक्रवार सुबह 11 बजकर 53 मिनट से शुरू
प्रतिपदा तिथि समाप्त- 2 अप्रैल, शनिवार को रात 11 बजकर 58 मिनट तक
तोरण लगाने का सही विधि
तोरण का धार्मिक महत्व काफी है। घर के मुख्य दरवाजे पर आम के पत्ते या फिर न्यग्रोध का तोरण या बंदनवार लगाना शुभ माना जाता है।
दक्षिण भारत में गुड़ी पड़वा का त्यौहार काफी लोकप्रिय(famous )
दक्षिण भारत में गुड़ी पड़वा(gudi pawda ) का त्यौहार काफी लोकप्रिय है। पौराणिक मान्यता के मुताबिक सतयुग में दक्षिण भारत में राजा बालि का शासन था। जब भगवान श्री राम को पता चला की लंकापति रावण ने माता सीता का हरण कर लिया है तो उनकी तलाश करते हुए जब वे दक्षिण भारत पहुंचे तो यहां उनकी उनकी मुलाकात सुग्रीव से हुई। सुग्रीव ने श्रीराम(shree ram ) को बालि के कुशासन से अवगत करवाते हुए उनकी सहायता करने में अपनी असमर्थता जाहिर की। इसके बाद भगवान श्री राम ने बालि का वध कर दक्षिण भारत के लोगों को उसके आतंक से मुक्त करवाया।