जगदलपुर, इन दिनों बस्तर आने वाले पर्यटकों को यहां मौजूद आलीशान होटल नहीं बल्कि गांवों में घने जंगलों के बीच बने झोपड़ियां आकर्षित कर रहीं है। बस्तर के सालवनों के बीच पर्यटन का एक नया अध्याय शुरू होने जा रहा है। देश-विदेश के पर्यटक अब बस्तर के गांवों में बने होमस्टे में समय बितायेगे। । इससे गांव वालों में भी सकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। बस्तर की संस्कृति को समझने के लिए होमस्टे की यह अवधारणा एक अच्छा माध्यम भी साबित हो रहा है।
बस्तर जिले के एक छोटे से गांव छोटेकवाली में होमस्टे स्थापित करने वाले शकील रिजवी ने बताया कि गाँव छोटेकवाली में, बस्तर ट्राइबल होमस्टे की स्थापना की, जिसका उद्देश्य था-बस्तर आने वाले देशी विदेशी पर्यटकों को ग्रामीण अंचल में रुकने की सुविधा उपलब्ध कराना ताकि वे यहाँ के प्राकृतिक सौंदर्य, संस्कृति, कला, नृत्य और जीवन पद्धति को वे करीब से देख सकें। बस्तर अपनी प्राकृतिक और नैसर्गिक संपदा से भरपूर है। यहां जलप्रपात, गुफ़ा, साल और सागौन के विशाल जंगल और अनेक जनजातीय समूह रहते हैं, जो अपनी पारंपरिक सांस्कृतिक धरोहर को बचाते हुए आज के युग के साथ चलने की चाहत रखते हैं।
उन्होंने बताया कि बस्तर पिछले कई दशकों से नक्सलवाद से पीड़ित है, जिससे न केवल विश्व में बस्तर की छवि धूमिल हुई है वरन आर्थिक नुकसान भी हुआ। पर्यटन व्यवसाय से आदिवासी युवाओं को जोड़ने से न केवल उन्हें आर्थिक लाभ मिल रहा है वरन वे अपनी सांस्कृतिक विरासत को देश विदेश में प्रचारित भी कर पा रहे हैं। वर्तमान में बस्तर ज़िले के छोटेकवाली, बड़े कवाली, मिलकुलवाड़ा, पुसपाल, चिलकुटी में उनके होमस्टे चल रहे हैं।
उन्होंने बताया कि इसके अतिरिक्त कोंडागाँव, नारायणपुर, केशकाल, कांकेर, दंतेवाड़ा, सुकमा में भी होमस्टे संचालित हैं,जहां देशी एवं विदेशी पर्यटक ग्राम स्तर की इस सुविधा का लाभ उठा रहे हैं।
रिजवी ने बताया कि पर्यटन व्यवसाय के अतिरिक्त हमारा उद्देश्य बस्तर को कुपोषण से मुक्त करना है, जिसके लिए हमने चरैवेति बस्तर नाम का संगठन बनाया और स्थानीय युवाओं को जोड़ा। यह संगठन जनसहयोग से प्रत्येक माह 200 कुपोषित बच्चों को आवश्यक सुविधाए उपलब्ध करा रहा है। इसके अतिरिक्त दिव्यांग किशोरी बालिकाओं और वृद्धों को आर्थिक व स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराता है।
उन्होंने बताया कि इसके अलावा हमारी समिति बस्तर के प्रति सामाजिक और नैतिक दायित्वों को उभारने में मदद कर रही है। यह संगठन कुपोषित, वृद्ध, विकलांग लोगों को जन सहयोग के माध्यम से सुविधाएं दे रहा है। बस्तर अपनी विशिष्ट सांस्कृति शैली के लिए विख्यात रहा है। बस्तर जिले के कांगेर वैली के चारों ओर गोंड और धुरवा जनजाति के लोग निवास करते हैं। इनमें से एक गांव है गुड़ियापदर यहां का युवा शुरू से ही हमारे संगठन से जुड़ा है। हमारा प्रयास रहा है कि पर्यटन संबंधि गतिविधियों से इन्हें आर्थिक लाभ मिले। हमारा सतत् प्रयास रहा है कि बस्तर में जैव-विविधता एवं जीव-जंतु सुरक्षित और संरक्षित रहंे। इस हेतु विभिन्न सामाजिक संगठनों के सहयोग विविध कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। जिसमें वैज्ञानिक, सामाजिक कार्यकर्ता, रिसर्चर, फोटोग्राफर तथा ग्रामीणों की सहभागिता रहती है। अमुस तिहार के बाद जंगलों में जाकर ग्रामीण शिकार करके देवी-देवताओं को अर्पित करते हैं। और सुख समृद्धि की कामना करते हैं। पारद प्रथा, अवैध शिकार अव्यवसायी गतिविधियों के चलते जीव-जंतुओं की संख्या में कमी आई है और वन्यजीवों की कई प्रजातियां विलुप्ति के कगार पर हैं। अवैध कटाई और सिकुड़ते वन क्षेत्र के कारण जिसका सीधा प्रभाव मौसम और जनजीवन पर पड़ा है। इसके दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं। इसी मुद्दे को लेकर कांगेर वैली के डायरेक्टर श्री धम्मशील गणवीर एवं विभागीय कर्मचारियों की उपस्थिती में गांव के बुजुर्ग कोषाबाड़ी द्वारा गांव की गुड़ी में देवी-देवताओं के सामने यह प्रतिज्ञा ली गई कि पारद प्रथा बंद कर वन्य जीव एवं वन्य के संवर्धन का कार्य करेंगे। और सतत् वन विभाग का सहयोग करेंगे। जब सैकड़ों प्रजातियां विलुप्ति के कगार पर पहुंच चुकी हैं तब ऐसे निर्णय बेहद अचम्भित और प्रशंसनीय होते हैं। इस कार्यक्रम को सफल बनाने में पार्क डायरेक्टर धम्मशील गणवीर, अंजारनबी, गौरव उपाध्याय, विभागीय कर्मचारी रिजवान खान, लाल बहादुर, दीप्ती ओगरे, विजय शंकर, राजेश एवं समस्त ग्रामीणों का सहयोग रहा।
आलीशान होटल नहीं पर्यटकों को लुभा रहीं है झोपड़ियां और ग्रामीण भोजन
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