दिल्ली
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने कांग्रेस छोड़ दी है और उन्होंने सपा के समर्थन से राज्यसभा जाने का फैसला किया है. सिब्बल ने लखनऊ में राज्यसभा के लिए नामांकन पत्र दाखिल किया. कांग्रेस ने हाल ही में चिंतन शिविर करके भविष्य की दिशा में मजबूती से बढ़ने का फैसला किया था, लेकिन उसके बाद भी कांग्रेस की स्थिति सुधर नहीं रही है. सुनील जाखड़ और हार्दिक पटेल के बाद अब कपिल सिब्बल ने भी कांग्रेस को अलविदा कह दिया है.कांग्रेस ने उदयपुर के चिंतन शिविर में अपने रिवाइवल का प्लान बनाया था, लेकिन उसके बाद भी पार्टी को एक के बाद एक बड़े सियासी झटके लग रहे हैं. सुनील जाखड़ के बाद अब पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने भी कांग्रेस को अलविदा कह दिया. कपिल सिब्बल ने सपा का समर्थन हासिल कर लिया है. सिब्बल सपा के समर्थन से उच्च सदन पहुंचेंगे, जो कांग्रेस के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है.
कपिल सिब्बल बुधवार को लखनऊ पहुंचे और राज्यसभा के लिए अपना नामांकन पत्र दाखिल किया. हालांकि, सिब्बल ने अभी तक समाजवादी पार्टी की सदस्यता नहीं ली है, लेकिन 16 मई को ही उन्होंने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया है. छह साल पहले भी कपिल सिब्बल यूपी से राज्यसभा पहुंचे थे, लेकिन उस समय कांग्रेस के प्रत्याशी थे और सपा ने इनका सहयोग किया था. इस बार सिब्बल ने कांग्रेस छोड़ दी है.
सिब्बल के रूप में कांग्रेस ने खोया बड़ा नेता
कपिल सिब्बल कांग्रेस के बड़े नेताओं में गिने जाते थे. यूपीए सरकार के दौरान कपिल सिब्बल केंद्रीय कानून मंत्री से लेकर मानव संसाधन विकास मंत्री तक रहे रहे हैं, लेकिन पिछले काफी समय से कांग्रेस नेतृत्व से नाराज चल रहे थे. कपिल सिब्बल कांग्रेस के उन नेताओं में गिने जाते थे, जो पार्टी को सबसे ज्यादा चंदा दिया करते थे. ऐसे में कपिल सिब्बल का जाना कांग्रेस के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है. सिब्बल पंजाबी ब्राह्मण समुदाय से आते हैं और दिल्ली की सियासत में उनका अहम रोल माना जाता रहा है. फिर भी कांग्रेस कपिल सिब्बल को साथ नहीं रख सकी और वो पार्टी को अलविदा कह गए. राज्यसभा के नामांकन के बाद सिब्बल ने कहा कि मैं कांग्रेस का नेता था, लेकिन अब नहीं.
जी-23 का पहला विकेट गिरा
कपिल सिब्बल कांग्रेस के उन असंतुष्ट नेताओं की फेहरिश्त में शामिल थे, जिन्हें जी-23 के नाम से जाना जाता है. सिब्बल ने कांग्रेस नेतृत्व को लेकर मोर्चा खोल रखा था और पार्टी की तमाम खामियों को लेकर सार्वजनिक रूप से सवाल खड़े कर रहे थे. जी-23 में कांग्रेस के कई बड़े नेता शामिल थे, जिनमें से कपिल सिब्बल पहले नेता हैं, जिन्होंने कांगेस पार्टी को अलविदा कहा है. सिब्बल भले ही कांग्रेस के असंतुष्ट नेताओं की लिस्ट में शामिल रहे हों, लेकिन पार्टी के लिए सुप्रीम कोर्ट में कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए हमेशा खड़े नजर आए हैं. ऐसे में सिब्बल के जाने से कांग्रेस को सियासी झटका तो लगा ही है.
कांग्रेस सिब्बल को क्यों नहीं रोक सकी?
कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व जी-23 में शामिल गुलाम नबी आजाद से लेकर आनंद शर्मा, भूपेंद्र सिंह हुड्डा और मनीष तिवारी सहित तमाम नेताओं को अलग-अलग कमेटियों में जगह देकर उन्हें साधे रखने में सफल रही है. ऐसे में सवाल उठता है कि कपिल सिब्बल को कांग्रेस आखिर क्यों जोड़े नहीं रख पाई. इसके पीछे सबसे बड़ी वजह यह मानी जा रही है कि असंतुष्ट खेमे में शामिल दूसरे नेताओं ने खुले तौर पर गांधी परिवार पर सवाल नहीं खड़े किए थे जबकि कपिल सिब्बल ने सोनिया से लेकर राहुल तक पर सवाल खड़े कर दिए थे. ऐसे में जी-23 में शामिल नेताओं ने भी कपिल सिब्बल के बयान से किनारा कर लिया था. वहीं, गांधी परिवार ने उसी समय तय कर लिया था कि जी-23 में शामिल नेताओं को साधेगी, लेकिन कपिल सिब्बल को भाव नहीं देगी. इसीलिए उसके बाद कपिल सिब्बल को कांग्रेस ने अपनी किसी भी बैठक में नहीं बुलाया.
सिब्बल के जाने से कांग्रेस को क्या नुकसान
कपिल सिब्बल के कांग्रेस छोड़ने से भले ही पार्टी को सियासी तौर पर कोई बड़ा नुकसान न दिख रहा हो, लेकिन उन्होंने पार्टी को ऐसे समय अलविदा कहा है जब कांग्रेस को एक-एक तिनके के सहारे की जरूरत है. ऐसे में कांग्रेस से ऐसे बड़े नेता का जाना जिसकी गिनती बड़े नेताओं में होती रही हो, जो दो बार केंद्रीय मंत्री रहा हो, जो कांग्रेस की कानूनी और आर्थिक सहायता भी करता रहा हो, उसका पार्टी से जाना किसी भी तरह कांग्रेस के लिए ठीक नहीं कहा जा सकता. सिब्बल के तमाम राजनीतिक दलों के नेताओं के साथ भी अच्छे संबंध हैं, वह गठबंधन की राजनीति में भी अहम भूमिका अदा कर सकते थे.
2024 के चुनाव को लेकर सियासत गर्म है और ऐसे में सिब्बल का पार्टी छोड़ना कांग्रेस के लिए गहरा झटका है, क्योंकि हाल ही में पूर्व केंद्रीय मंत्री बलराम जाखड़ के बेटे सुनील जाखड़ ने कांग्रेस छोड़कर बीजेपी का दामन थामा है. गुजरात में हार्दिक पटेल ने कांग्रेस छोड़ दी है. ऐसी स्थिति में कपिल सिब्बल जैसे ब्राह्मण पंजाबी नेता का कांग्रेस को अलविदा कहना, पार्टी के लिए किसी बड़े झटके से कम नहीं है.
सुषमा स्वराज से हार गए थे पहला चुनाव
कपिल सिब्बल का जन्म 8 अगस्त 1948 को पंजाब के जालंधर में हुआ. इनके पिता हीरा लाल सिब्बल भी देश के जाने माने वकील थे. कपिल सिब्बल ने दिल्ली विश्वविद्यालय से एलएलबी की और एलएलएम हार्वर्ड लॉ स्कूल से किया. वकालत करने के दौरान ही वो कांग्रेस के करीब आ गए थे. लेकिन दूसरे दलों से भी वो बनाकर रखते थे. वीपी सिंह की सरकार (1989-1990) के दौरान सिब्बल एडीशनल सॉलीसीटर जनरल रहे. कपिल सिब्बल ने अपनी चुनावी राजनीतिक पारी कांग्रेस के साथ शुरू की. कपिल सिब्बल 1996 में कांग्रेस के टिकट पर बीजेपी नेता सुषमा स्वराज के खिलाफ चुनाव लड़े, लेकिन हार गए. इसके बाद कांग्रेस ने 1998 में उन्हें राज्यसभा भेजा.
स्मृति ईरानी को हटाया
सिब्बल 2004 में एक बार फिर दिल्ली की चांदनी चौक से कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़े. उन्होंने बीजेपी नेत्री स्मृति ईरानी को हरा दिया और संसद पहुंचे. 2004 से 2014 तक सिब्बल केंद्र में मंत्री रहे. सिब्बल कांग्रेस के प्रवक्ता से लेकर प्रमुख रणनीतिकारों में भी शामिल रहे. 2016 में सिब्बल यूपी से राज्यसभा सदस्य चुने गए थे.
राहुल-सोनिया-लालू से लेकर आजम की पैरवी
कपिल सिब्बल ने अपने अब तक के करियर में कई बड़े मामलों की पैरवी की है. कांग्रेस के राजनीतिक संकट की घड़ी में सिब्बल कानूनी लड़ाई के लिए खड़े नजर आए. कर्नाटक से लेकर मध्य प्रदेश तक ऑपरेशन लोट्स के दौरान कांग्रेस की ओर से सिब्बल पैरवी करते दिखे. सोनिया और राहुल गांधी पर चल रहे नेशनल हेराल्ड केस में भी वह पैरवी कर रहे हैं. इस मामले में सोनिया और राहुल गांधी अभी जमानत पर हैं. इसके अलावा कपिल सिब्बल की पैरवी का नतीजा है कि सपा नेता आजम खान को 27 महीने बाद जमानत मिली है. वहीं, एनसीपी नेता नवाब मलिक के वकील भी सिब्बल ही हैं तो हाईकोर्ट से आरजेडी के लालू यादव को चारा घोटाले केस में जमानत भी उन्होंने दिलाई.
जी-23 का पहला विकेट गिरा
कपिल सिब्बल कांग्रेस के उन असंतुष्ट नेताओं की फेहरिश्त में शामिल थे, जिन्हें जी-23 के नाम से जाना जाता है. सिब्बल ने कांग्रेस नेतृत्व को लेकर मोर्चा खोल रखा था और पार्टी की तमाम खामियों को लेकर सार्वजनिक रूप से सवाल खड़े कर रहे थे. जी-23 में कांग्रेस के कई बड़े नेता शामिल थे, जिनमें से कपिल सिब्बल पहले नेता हैं, जिन्होंने कांगेस पार्टी को अलविदा कहा है. सिब्बल भले ही कांग्रेस के असंतुष्ट नेताओं की लिस्ट में शामिल रहे हों, लेकिन पार्टी के लिए सुप्रीम कोर्ट में कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए हमेशा खड़े नजर आए हैं. ऐसे में सिब्बल के जाने से कांग्रेस को सियासी झटका तो लगा ही है.