बांग्ला कैलेंडर( bengali calender) के अनुसार ज्येष्ठ महीने के शुक्लपक्ष की छठी तिथि को जमाई षष्ठी का व्रत किया जाता है। ये एक उत्सव की तरह मनाया जाता है। नाम के अनुसार इस दिन जमाई की सेवा और खातिरदारी की जाती है। साथ ही इस व्रत में बच्चों की अच्छी सेहत की प्रार्थना भी की जाती है। इस अनोखी परंपरा का व्यवहारिक महत्व संबंधों को मजबूत करना है। इसी के साथ मौसम को ध्यान में रखते हुए बीमारियों( disease) से बचने के लिए ये व्रत किया जाता है।
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परंपरा के अनुसार सास सुबह जल्दी नहाकर षष्ठी देवी की पूजा करती हैं। पूजा के बाद बेटी और दामाद के घर आते ही दोनों की पूजा( worship) करती हैं। थाली में षष्ठी देवी का जल, दूर्वा, पान का पत्ता, पूजा की सुपारी, मीठा दही, फूल और फल रखे जाते हैं। जमाई पर षष्ठी देवी की पूजा का जल छिड़का जाता है। इसके बाद उनकी आरती( aarti) की जाती है।
कैसे होती है पूजा की थाली
पूजा की थाली में दूर्वा घास, धान, करमचा, खजूर के नए पत्ते, पूजा की सुपारी और काला तिल रखती हैं। षष्ठी तिथि के दिन सुबह सभी सामग्री हाथों में रखकर नहाकर गीले कपड़े( cloth) में बच्चों को पंखे से हवा करेंगी, ताकि संतान पूरी उम्र हर तरह की शारीरिक परेशानियों ( issues)से दूर रहे।
क्यों खास है ये दिन ( day)
इस दिन जमाई की खातिरदारी की जाती है। नए कपड़े दिए जाते हैं और विशेष भोजन तैयार किया जाता है। बंगाल की परंपरा के अनुसार खासतौर से दामाद को मिठाई, आम-लीची सहित मौसमी फल खिलाए जाते हैं। इसके बाद खाना खिलाया जाता है इस दौरान हाथ पंखे से जमाई को हवा करने की परंपरा भी है