Sarguja News : भारत( India)मे अगर 8वीं, 9वीं सदी (8th, 9th century)से लेकर 18वीं सदी तक कि बात हो और उसमें छत्तीसगढ़( Chhattisgarh)का सरगुजा(Sarguja) शामिल न हो ऐसा नहीं हो सकता है। दरअसल छत्तीसगढ़ के सरगुजा के लखनपुर, उदयपुर ब्लॉक पूर्वकालीन मंदिर, चित्रकला (Lakhanpur, Udaipur Block Ancient Temple, Painting)और मौर्यकालीन रहस्य (Mauryan Mysteries)से भरपूर है जिसमें उदयपुर (Udaipur)ब्लॉक के महेशपुर, देवगढ़, सीता बेंगरा, रामगढ़, सतमहला देवी मंदिर, शिव मंदिर (Maheshpur, Deogarh, Sita Bengra, Ramgarh, Satmahla Devi Temple, Shiva Temple)सहित कई वास्तुकला, चित्रकला (architecture, painting)की भरमार है। जहां इनमें एक मुख्य स्थान सतमहला है। सतमहला छत्तीसगढ़ राज्य में एक ऐतिहासिक स्थान है। यह अम्बिकापुर (ambikapur)के दक्षिण में लखनपुर (Lakhanpur)से लगभग 10 कि.मी. कि दूरी पर कलचा ग्राम में स्थित है।
छत्तीसगढ़ के इस ऐतिहासिक स्थान पर सात जगह भगवानशेष हैं।
स्थानीय मान्यताओं के अनुसार यहाँ पर प्राचीन काल में सात विशाल शिव मंदिर थे। जबकि जनजातियों के अनुसार इस स्थान पर प्राचीन काल में किसी राजा का ‘सप्त प्रांगण महल’ था। यहां कई दर्शनीय स्थल हैं। जिनमें ‘शिव मंदिर’, ‘षटभुजाकार कुंआ’ और ‘सूर्य प्रतिमा’ प्रमुख हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों में यहां को लेकर कई तरह की मान्यताओं का भरमार है
दरअसल ग्रामीणों द्वारा प्राप्त जानकारी के अनुसार सतमहला का इतिहास वहां की सात देवियों से वास्ता रखता है। वहां बने तालाब से देवी खुद पानी लेकर उस मंदिर में चढ़ाती थी। ऐसा मान्यता है कि यहाँ जमीन के अंदर महल भी है लेकिन जैसे लोग वैसी बातें होती है। लेकिन यहां की वास्तुकला और कहानी से अब भी लोग हैरान हैं। इस गांव में मंदिर के इर्द गिर्द 7 तालाब निर्माण किए गए थे। और इसके आसपास कुल 140 तालाब है हालांकि कई तालाब तो अब खेत बन गए लेकिन यहां अद्भुत रहस्यों का जमावड़ा है।
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8वी, 9वीं सदी के अनुसार यहां महल था। यहां हैहवंशी राजा कार्तवीर्य सहस्त्रार्जुन जब ने शिकार खेलने के दौरान यहां रुके थे। तब उन्होंने यहां विशालकाय शिव मंदिर का निर्माण कराया था। सतमहला परिसर में उत्खनन से आवासीय भवन भी प्रकाश में आया था। यहां लगभग 8-9वीं सदी में यहां गंगा जमुना की मूर्तियां एवं जलधारी पर शिवलिंग स्थापित है।
सतमहला में जगह-जगह पुरातात्त्विक महत्त्व की चींजे बिखरी हुई हैं। जिनके रखरखाव की दिशा में शासन प्रशासन द्वारा कोई पहल नहीं की गई है। जिस कारण ऐतिहासिक महत्व की इन धरोहरों के नष्ट होने व चोरी चले जानें की आशंका बनी हुई है।
पुरातत्त्व विभाग ने सतमहला क्षेत्र को संरक्षित घोषित तो कर दिया है। लेकिन इसके संरक्षण की दिशा में क्या किया गया है। यह दिखाई नहीं देता। सूरजपुर से 30 कि.मी. दूर ‘देवगढ़’ व ‘कलचा’ में प्राचीन महल व मंदिर के अवशेष बिखरे हुए हैं। जिनके रखरखाव की ज़रूरत है। सतमहला में जहां सात महल के अवशेष हैं तो वहीं एक ही स्थान पर 10 तालाब भी हैं। जो तत्कालीन समय में जल के संरक्षण की दिशा में चिंता को इंगित करता है। हाँलाकि विभाग ने यहां बाउंड्री कर दिशानिर्देश के बोर्ड लगाए हैं। और इन पुरातात्विक धरोहरों को छेड़ने वालों पर कार्यवाही के निर्देशिका भी लगाए हैं।