आज बात करेंगे हिंदी सिनेमा के उस महान कॉमेडियन और एक्टर महमूद की जिसने अपनी बेहतरीन कॉमिक टाइमिंग से दशकों तक लोगों के दिलों पर राज किया है। वह शख्स जिसने अमिताभ बच्चन को पहला सोलो रोल दिया। आर. डी. बर्मन और पंचम दा जैसे म्यूजिक के धुरंधरों को पहला ब्रेक दिया। जिसकी फिल्म में राजेश खन्ना जैसे सुपरस्टार भी अपने नखरे छोड़कर काम करने लगे। उन्होंने एक बार राजेश खन्ना को सेट पर लेट आने के कारण सबके सामने चांटा भी मारा था। जानिए उस महमूद के बारे में…
खेलते-खेलते मिल गया फिल्म में काम
दादा मुनी यानी अशोक कुमार अपनी फिल्म ‘किस्मत’ की शूटिंग कर रहे थे। उन्हें एक चाइल्ड आर्टिस्ट की जरूरत थी। चूंकि महमूद बचपन में खूब शैतानी करते थे। दादा मुनी की नजर एक बालक पर पड़ी, जो सेट पर ही खेल रहा था और शैतानियां कर रहा था। उन्हें लगा ये लड़का फिल्म के रोल के लिए बिल्कुल मुफीद है। बस फिर क्या था अशोक कुमार ने महमूद को फिल्म में रोल दे दिया। यह वह दौर था जब महमूद के पिता बॉम्बे टॉकीज स्टूडियो में काम किया करते थे।
मधुबाला के सामने एक ही टेक में सब बोल गए
घर की आर्थिक जरूरत को पूरा करने के लिए महमूद मलाड और विरार के बीच चलने वाली लोकल ट्रेनों में टॉफियां भी बेचते थे। इस बीच उन्होंने निर्माता ज्ञान मुखर्जी के यहां बतौर ड्राइवर काम शुरू कर दिया। दरअसल, इस बहाने उन्हें हर दिन स्टूडियो जाने का मौका मिलता था। एक बार महमूद फिल्म ‘नादान’ की शूटिंग देख रहे थे। एक्ट्रेस मधुबाला के सामने एक जूनियर कलाकार लगातार दस रीटेक के बाद भी अपना संवाद नहीं बोल पाया। तब फिल्म निर्देशक हीरा सिंह ने महमूद को वह डायलॉग बोलने के लिए दिया और सीन बिना रिटेक के ओके हो गया। यहीं से उनकी किस्मत का सितारा भी चमक गया। इसके लिए महमूद को 300 रुपए मिले थे। इसके बाद उन्होंने ‘दो बीघा जमीन’, ‘जागृति’, ‘सीआईडी’, ‘प्यासा’ जैसी फिल्मों में छोटे-मोटे सीन किए।
कमाल अमरोही ने कहा था- तुम्हारे पास एक्टिंग की काबिलियत नहीं
महमूद ने अपने हुनर से लोगों की खुद के लिए राय भी बदली। एक बार वे डायरेक्टर कमाल अमरोही के पास फिल्म में काम मांगने गए तो उन्होंने महमूद को यहां तक सुना दिया कि आप मुमताज अली के बेटे हैं इसलिए जरूरी नहीं है कि एक्टर ही बन जाओ। आपके पास फिल्मों में अभिनय करने की योग्यता ही नहीं है। इस बात को महमूद ने चैलेंज की तरह लिया और बाद में अपनी योग्यता साबित की। इसी दौरान उन्हें बीआर चोपड़ा कैंप से बुलावा आया पर जब उन्हें मालूम हुआ कि यह फिल्म उन्हें अपनी पत्नी की बहन मीना कुमारी की सिफारिश से मिली है तो उन्होंने उसमें काम करने से मना कर दिया। हालांकि उनका स्ट्रगल जारी था। 1958 में फिल्म ‘परवरिश’ में उन्हें एक अच्छी भूमिका मिली। इसके बाद उन्हें एलवी प्रसाद की फिल्म ‘छोटी बहन’ में काम करने का मौका मिला जो उनके कॅरिअर के लिए अहम फिल्म साबित हुई। इसमें काम करने के लिए महमूद को 6000 रुपए मिले थे।
सबसे बड़ी ट्रैजिडी के बाद बनाई ‘कुंवारा बाप’
ये उस वक्त की बात है जब महमूद के पास इतना काम था कि वे अपने परिवार को वक्त नहीं दे पाते थे। इसी बीच उनके बेटे को पोलियो हो गया। इसके बाद महमूद खुद को कोसने लगे कि वे अपने बेटे को पोलियो से नहीं बचा पाए।। इस गलती को तो वे सुधार नहीं सकते थे, लेकिन कहीं न कहीं उनके मन में ये दर्द था, जिसे उन्होंने ‘कुंवारा बाप’ में बयां किया। इसमें वे एक पोलियोग्रस्त बच्चे के पिता बने। महमूद जो अपनी फिल्मों में लोगों को हंसाते थे, इस फिल्म में उन्होंने सभी को रुला दिया।
अमिताभ को दिया आसरा, अंतिम दिनों में हुई अनबन
महमूद का अमिताभ बच्चन से खास कनेक्शन था। महमूद के भाई अनवर अमिताभ के दोस्त थे। जब पहली बार वे अमिताभ से मिले तो उस वक्त वे राजीव गांधी के साथ थे। महमूद उस वक्त नशे में थे। राजीव गांधी को देखकर उन्होंने कहा ये मेरी अगली फिल्म का हीरो है और 5 हजार रुपए भाई अनवर को देकर बोले, इस लड़के से कह दो परसों से शूटिंग पर आ जाए। अनवर ने राजीव से दोबारा महमूद का परिचय करवाया और बताया कि ये प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बेटे हैं। तब फिर उन्होंने कहा अमिताभ मेरी फिल्म का हीरो है। अमिताभ को बतौर सोलो हीरो सबसे पहले महमूद ने ही ‘बॉम्बे टू गोवा’ में पेश किया। उन दिनों अमिताभ अनवर के साथ उनके फ्लैट में महीनों रहे। महमूद ने अमिताभ को लंबे समय तक अपने घर पर आसरा दिया। हालांकि अपने अंतिम दिनों में वे अमिताभ से नाराज भी थे। दरअसल, अमिताभ पिता हरिवंश राय बच्चन को लेकर मुंबई के ब्रीच कैंडी हॉस्पिटल गए थे। वहां पर महमूद भी एडमिट थे तब उनकी बायपास सर्जरी हुई थी, लेकिन अमिताभ उन्हें देखने नहीं गए।
जब किशोर दा ने नहीं दिया महमूद को काम
महमूद की एक्टिंग से अच्छे-अच्छे एक्टर डरते थे लेकिन खुद महमूद किशोर कुमार के अभिनय से डरा करते थे। वे कहते थे कि मैं सभी एक्टर्स की सीमा जानता हूं कि कौन कितने पानी में है, लेकिन किशोर का पता लगाना थोड़ा मुश्किल है। वो कभी भी कुछ भी कर जाते हैं। महमूद ने एक बार किशोर कुमार से उनकी किसी फिल्म में खुद को रोल देने की गुजारिश की थी। तब किशोर दा ने उनसे कहा कि वह ऐसे किसी व्यक्ति को मौका कैसे दे सकते, जो भविष्य में उन्हें चुनौती दे सकता है। उनकी इस बात पर महमूद ने भी बड़ा दिलचस्प जवाब दिया कि एक दिन जब मैं भी बड़ा फिल्मकार बन जाऊंगा तब आपको जरूर अपनी फिल्म में भूमिका दूंगा। इसके बाद महमूद ने अपनी होम प्रोडक्शन की फिल्म ‘पड़ोसन’ में किशोर को रोल दिया।
सेट पर लेट आते थे सुपरस्टार राजेश खन्ना तो जड़ दिया चांटा
महमूद एक फिल्म बना रहे थे, जिसका नाम था ‘जनता हलवदार’। इसके लिए उन्होंने राजेश खन्ना को कास्ट किया। एक दिन महमूद अपने फार्म हाउस पर फिल्म की शूटिंग कर रहे थे। वहां महमूद का एक बेटा राजेश से मिला और सीधे दुआ-सलाम करके निकल गया। राजेश इससे नाराज हो गए कि सिर्फ हैलो क्यों बोला? इसके बाद राजेश खन्ना सेट पर लेट आने लगे। शूटिंग में रोज देर होने लगी तो महमूद को गुस्सा आ गया। वे फिल्म के डायरेक्टर भी थे और एक्टर भी। एक दिन उन्होंने सबके सामने राजेश खन्ना को चांटा मार दिया। उन्होंने राजेश को कहा, ‘आप सुपरस्टार होंगे अपने घर के पर मैंने फिल्म के लिए आपको पूरा पैसा दिया है तो आपको मेरी फिल्म समय पर पूरी करनी ही पड़ेगी।’
शूट खत्म होता तो महमूद के लिए बजती थीं तालियां
एक समय ऐसा भी था जब लगभग हर फिल्म में महमूद के लिए एक मजबूत रोल रखा जाने लगा था। फिल्म में महमूद के किरदार की अपने आप में एक कहानी होती थी। कई बार वे फिल्म के हीरो से ज्यादा फीस लिया करते थे। 1971 में आई फिल्म ‘मैं सुंदर हूं’ के लिए जहां एक्टर विश्वजीत को 2 लाख रुपए मिले थे वहीं उसी फिल्म के लिए महमूद को 8 लाख रुपए दिए गए थे। इसी तरह फिल्म ‘हमजोली’ में भी महमूद को जितेन्द्र से ज्यादा पैसे मिले थे। महमूद को किसी ने कभी रिहर्सल करते नहीं देखा। वो जो भी करते थे, फिल्मों में लाइव किया करते थे। यही वजह थी कि हीरो उनसे बहुत डरते थे। इतना ही नहीं उनकी पर्सनालिटी ऐसी थी कि वो जब भी सेट पर खड़े हो जाते, हीरो अपनी शर्ट के बटन बंद कर लिया करते थे। जब शूट खत्म होता तो महमूद के लिए जमकर तालियां बजाईं जाती थीं।
महमूद की हास्य से भरपूर चुनिंदा फिल्में
‘हमजोली’, ‘पड़ोसन’, ‘ससुराल’, ‘आंखें’, ‘दो फूल जिंदगी’, ‘गुमनाम’, ‘दिल तेरा दीवाना’, ‘प्यार किए जा’, ‘लव इन टोकियो’, ‘भूत बंगला’, ‘वारिस’, ‘पारस’ और ‘वरदान’।