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नूपुर शर्मा की याचिका पर सुनवाई करने वाले जज के खिलाफ हुई टिप्पणियां, अब जस्टिस पारदीवाला ने कही ये बात

Desk
Last updated: 2022/07/04 at 3:44 AM
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5 Min Read
नूपुर शर्मा की याचिका पर सुनवाई करने वाले जज के खिलाफ हुई टिप्पणियां, अब जस्टिस पारदीवाला ने कही ये बात
नूपुर शर्मा की याचिका पर सुनवाई करने वाले जज के खिलाफ हुई टिप्पणियां, अब जस्टिस पारदीवाला ने कही ये बात
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नूपुर शर्मा की सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में दायर याचिका की शुक्रवार को सुनवाई के दौरान अदालत ने बेहद सख्त रुख दिखाते हुए तीखी टिप्पणियां की थीं। पैगंबर मोहम्मद (Prophet Mohammad) के खिलाफ BJP की निलंबित नेता नूपुर शर्मा (Nupur Sharma) की विवादास्पद बयान को लेकर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की कड़ी फटकार पर सोशल मीडिया पर हंगामा देखने को मिला था। याचिका की सुनवाई करने वाली खंडपीठ में न्यायमूर्ति पारदीवाला वाला भी शामिल थे। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला (Justice JB Pardiwala) ने आगाह किया कि न्यायाधीशों पर उनके निर्णयों के लिए व्यक्तिगत हमले एक “खतरनाक परिदृश्य” की ओर ले जाएंगे।

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“न्यायाधीशों पर व्यक्तिगत हमले खतरनाक”

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सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के न्यायाधीश जे.बी. पारदीवाला (Justice JB Pardiwala) ने सोशल मीडिया पर न्यायाधीशों पर ‘व्यक्तिगत, एजेंडा संचालित हमलों’ के लिए ‘लक्ष्मण रेखा’ पार करने की प्रवृत्ति को खतरनाक करार दिया। पारदीवाला ने कहा कि देश में संविधान के तहत कानून के शासन को बनाए रखने के लिए डिजिटल और सोशल मीडिया को रेगुलेट किया जाना जरूरी है। न्यायमूर्ति पारदीवाला ने लखनऊ में एक कार्यक्रम में यह टिप्पणी की। उनका संदर्भ पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ BJP की निलंबित नेता नूपुर शर्मा (Nupur Sharma) की विवादास्पद टिप्पणियों को लेकर अवकाशकालीन पीठ की कड़ी मौखिक टिप्पणियों पर हुए हंगामे से था।

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“लक्ष्मण रेखा को हर बार पार करना, अधिक चिंताजनक है”

दरअसल, शीर्ष अदालत (Supreme Court) ने कहा था कि नूपुर की ‘बेलगाम जुबान’ ने ‘पूरे देश को आग में झोंक दिया है और उन्हें माफी मांगनी चाहिए। पीठ की इन टिप्पणियों ने डिजिटल और सोशल मीडिया सहित अलग-अलग प्लेटफॉर्म पर एक बहस छेड़ दी और इसको लेकर न्यायाधीशों के खिलाफ कुछ अभद्र कमेंट की गए हैं। न्यायमूर्ति पारदीवाला ने कहा, ‘‘भारत को परिपक्व और सुविज्ञ लोकतंत्र के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता है, ऐसे में सोशल और डिजिटल मीडिया का पूरी तरह से कानूनी और संवैधानिक मुद्दों के राजनीतिकरण के लिए इस्तेमाल किया जाता है।’’ उन्होंने कहा कि डिजिटल मीडिया द्वारा किसी मामले का ट्रायल न्याय व्यवस्था में अनुचित हस्तक्षेप है। हाल ही में शीर्ष अदालत (Supreme Court) में पदोन्नत हुए न्यायाधीश ने कहा, ‘‘लक्ष्मण रेखा को हर बार पार करना, यह विशेष रूप से अधिक चिंताजनक है।’’

न्यायमूर्ति पारदीवाला डॉ. राम मनोहर लोहिया नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, लखनऊ और नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, ओडिशा द्वारा आयोजित दूसरी एचआर खन्ना स्मृति राष्ट्रीय संगोष्ठी के साथ-साथ नेशनल लॉ यूनिवर्सिटीज (कैन फाउंडेशन) के पूर्व छात्रों के परिसंघ को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा, “हमारे संविधान के तहत कानून के शासन को बनाए रखने के लिए डिजिटल और सोशल मीडिया को देश में अनिवार्य रूप से रेगुलेट करने की जरूरत है।’’

“मीडिया के पास केवल आधा सच होता है…”

न्यायमूर्ति पारदीवाला ने कहा, ‘‘निर्णयों को लेकर हमारे न्यायाधीशों पर किए गए हमलों से एक खतरनाक परिदृश्य पैदा होगा, जहां न्यायाधीशों का ध्यान इस बात पर अधिक होगा कि मीडिया क्या सोचता है, बनिस्पत इस बात पर कि कानून वास्तव में क्या कहता है। यह अदालतों के सम्मान की पवित्रता की अनदेखी करते हुए कानून के शासन को ताक पर रखता है।’’ डिजिटल और सोशल मीडिया के बारे में उन्होंने कहा कि (मीडिया के) इन वर्गों के पास केवल आधा सच होता है और वे (इसके आधार पर ही) न्यायिक प्रक्रिया की समीक्षा शुरू कर देते हैं। उन्होंने कहा कि वे न्यायिक अनुशासन की अवधारणा, बाध्यकारी मिसालों और न्यायिक विवेक की अंतर्निहित सीमाओं से भी अवगत नहीं हैं।

“न्यायाधीश जुबान से नहीं, अपने निर्णयों से बोलते हैं” 

न्यायमूर्ति पारदीवाला ने कहा, “सोशल और डिजिटल मीडिया आजकल उनके निर्णयों के रचनात्मक आलोचनात्मक मूल्यांकन के बजाय मुख्य रूप से न्यायाधीशों के खिलाफ व्यक्तिगत राय व्यक्त करते हैं। यह न्यायिक संस्थानों को नुकसान पहुंचा रहा है और इसकी गरिमा को कम कर रहा है।” उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों को सोशल मीडिया चर्चा में भाग नहीं लेना चाहिए, क्योंकि न्यायाधीश कभी अपनी जिह्वा से नहीं, बल्कि अपने निर्णयों के जरिये बोलते हैं।

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