कोरोना वायरस संक्रमण की चपेट में पूरी दुनिया है। एक तरफ भारत में ग्लेनमार्क और सिप्ला ने अपनी दवाओं को बाजार में उतारा है, वहीं दूसरी तरफ दुनिया भर में वैक्सीन को लेकर रिसर्च जारी है। इजरायल, रूस और अमेरिका जैसे देशों ने आंशिक सफलता का दावा भी किया है। अब बाबा रामदेव की दिव्य फार्मेसी ने ‘कोरोनिल’ नामक दवा उतार कर संक्रमितों को ठीक करने का दावा किया है।
इसकी लॉन्चिंग की खबर आते ही अंधविरोध भी शुरू हो गया। विरोध सिर्फ़ इसीलिए किया गया क्योंकि भारत में आयुर्वेद और योग के प्रचारक ने वो कर दिखाने का दावा किया, जिसके लिए पूरी दुनिया प्रयासरत है।
वामपंथी गिरोह ने दवा में कोई खोट आने की वजह से विरोध नहीं किया। न ही उन्होंने इस दवा का परीक्षण किया। उनका विरोध तो केवल इस बात को लेकर है कि इससे पतंजलि, दिव्य फार्मेसी, बाबा रामदेव और आयुर्वेद का नाम जुड़ा है।
उदाहरण के रूप में अमेरिका स्थित साउथ डकोटा की एक बॉयोमेडिकल कम्पनी को ले सकते हैं। उसने दावा किया कि गायों के शरीर में बने एंटीबॉडी से कोरोना का इलाज हो सकता है और ये वर्तमान प्लाज्मा थैरेपी से 4 गुना बेहतर है। इसके लिए ट्रायल भी हुआ। बताया गया कि एक गाय द्वारा दी गई एंटीबॉडी से सैकड़ों मरीजों को ठीक किया जा सकता है। ‘साइंस’ मैगजीन ने भी इस ख़बर को जगह दी।
क्या आपने किसी भी भारतीय लिबरल या वामपंथी गैंग को इसका विरोध करते हुए सुना? अगर यही दावा किसी आयुर्वेदिक कम्पनी या फिर भारत में स्थित किसी व्यक्ति ने किया होता तो शायद इसे लेकर न जाने कितने मीम्स बनते और मजाक उड़ाया जाता। इसका विरोध इसीलिए नहीं किया गया क्योंकि दावा विदेशी कम्पनी ने किया था। लिबरल गैंग को गोरों के सर्टिफिकेट की आवश्यकता होती है, किसी भी चीज को प्रामाणिक मानने के लिए।
इसी तरह बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण ने जैसे ही ऐलान किया कि उन्होंने कोरोना वायरस की पहली ‘एविडेंस बेस्ड’ आयुर्वेदिक औषधि का निर्माण करने में सफलता प्राप्त की है, लिबरल गिरोह चालू हो गया। पतंजलि आयुर्वेद का दावा है कि इसे पूरे साइंटिफिक ट्रायल और डॉक्यूमेंट्स के साथ लॉन्च किया गया है। बाबा रामदेव ने कहा कि ‘कोरोनिल श्वसारी वटी’ के लॉन्च से आयुर्वेद की प्रतिष्ठा बढ़ी है।
ऐसा नहीं है कि पतंजलि आयुर्वेद ने मंत्रालय द्वारा माँगी गई सूचनाओं से आँख बंद कर लिया। बयान जारी कर एक-एक बात से जनता को अवगत कराया गया। कम्पनी के सीईओ आचार्य बालकृष्ण ने स्पष्ट कहा कि यह सरकार आयुर्वेद को प्रोत्साहन व गौरव देने वाली है और जो कम्युनिकेशन गैप था, वह दूर हो गया है। इसके बाद पतंजलि ने सरकार को बताया कि उसने सारे तय मानकों और Randomised Placebo कंट्रोल्ड क्लिनिकल ट्रायल्स भी पूरा किया है।
पतंजलि का दावा है कि इस दवा के परीक्षण के बाद सभी मरीज 3 से 14 दिनों में कोरोना पॉजिटिव से नेगेटिव हो गए और एक की भी मृत्यु नहीं हुई। साथ ही यह भी जानकारी दी कि जल्द ही किसी अंतरराष्ट्रीय साइंस रिसर्च जर्नल में इस सम्बन्ध में शोधपत्र प्रकाशित किया जाएगा। किसके नेतृत्व में क्लिनिकल अध्ययन हुए, किन शहरों में इसे अंजाम दिया गया, कम्पनी ने सोशल मीडिया पर ये सब बताया। ‘पतंजलि’ ने बताया:
दरअसल, अगर इसी तरह का कोई दावा कोई छोटी सी विदेशी कम्पनी यूरोप या अमेरिका में कर दे तो यही लोग नाचने-कूदने लगेंगे। इन्हें दिक्कत दवा से नहीं बल्कि बाबा रामदेव और आयुर्वेद से है। हमारी पुरातन प्रणाली पाश्चात्य से श्रेष्ठ हो सकती है, वो कभी ऐसा मान ही नहीं सकते।
हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन से लेकर अन्य ड्रग्स तक, दुनिया भर में हुए विभिन्न अध्ययनों में अलग-अलग निष्कर्ष सामने आए हैं। ये मेडिकल एक्सपर्ट्स और विशेषज्ञ तय करेंगे कि किसके दावों में कितना दम है और वास्तविकता सामने आ ही जाएगी, जब इसका इस्तेमाल होगा (इजाजत मिलने के बाद)। लेकिन, बिना किसी आधार के किसी कम्पनी या दवा को सिर्फ़ इसीलिए फ्रॉड बता देना कहाँ तक सही है, क्योंकि वो भारतीय संस्कृति की उपज है?