आधारशिला में मासिक टेस्ट के तुरंत बाद बच्चों के लिए विभिन्न प्रकार की सृजनात्मक गतिविधियों के सत्र रखे गये.. इन सत्रों का मुख्य उद्देश्य बच्चों में अवलोकन, कल्पनाशीलता एवं संवेदनशीलता विकसित करना था.. कुछ बच्चों ने इन गतिविधियों को व्यक्तिगत तौर पर तो कुछ ने समूह में किया.. यह एक अद्भुद प्रक्रिया रही – इस तरह से अभ्यास करने में उन्होंने सहयोग माँगा भी और अपने साथियों का सहयोग किया भी.. कक्षा एक और दो के बच्चों ने अपने नन्हे-नन्हे हाथों से ‘फायरलेस कुकिंग सत्र’ के दौरान कई प्रकार के व्यंजन बनाये आलू चाट, ब्रेड केक, दही बड़ा, सलाद, अंकुरित सलाद, आदि कक्षा तीन से पांच में बहुत उत्साहपूर्वक मिल्क शेक, आलू चाट, सैंडविच, ब्रेड दही बड़ा, ब्रेड बिस्कुट, आदि बनाया और परोसा गया | उन्होंने आग्रह एवं भाव पूर्वक शिक्षकों एवं कक्षा के साथियों के साथ यह भोजन साझा किया | बच्चों ने बहुत धैर्य व बारीकी का परिचय देते हुए संतुलित मात्र में सामग्री का प्रयोग किया और सभी अथिथियों को खिला कर स्वयं भोजन किया.. कक्षा 9 से 12 तक ने ‘ऐड मेकिंग’ का अभ्यास किया – उन्होंने विभिन्न विषयों पर सुन्दर ऐड बनाकर प्रस्तुत किया.. बच्चों के द्वारा चयनित मुख्य थीम थे – भोजन, डेरी प्रोडक्ट, पर्यावरण, स्टेशनरी, डेली प्रोडक्ट, आदि, इसमें बच्चों ने बहुत ही आकर्षक पंक्तियाँ लिखीं व उनके चित्र भी बहुत ही मौलिक थे.. कक्षा 6-8 में ‘कार्टून मिमिक्री’ का सत्र आयोजित किया गया | इस गतिविधि के दौरान बच्चों ने बहुत ही कलात्मक ढंग से हाव-भाव, वौइस् मोडूलेशन’ आदि की सहायता से विभिन्न कार्टून किरदारों को जीवंत किया.. इस गतिविधि के दौरान उन्होंने खूब मस्ती की.. आधारशिला के चेयरमैन डा . अजय श्रीवास्तव ने कहा कि.. दो वर्ष के अंतराल एवं उसके असर को समझ कर हम बच्चों के सीखने पर विशेष ध्यान दे रहे हैं.. साथ ही, बीच बीच में कला, क्राफ्ट, नाट्य, संगीत, आदि से संबंधित गतिविधियाँ रखते हैं ताकि बच्चों की अभिव्यक्ति, चिंतन, रूचि एवं उर्जा का स्तर बना रहे
कला एवं लेखन से अभिव्यक्ति निखरती है
आधारशिला के अकादमिक निदेशक श्री एस. के जनास्वामी ने कहा कि यहां परस्परता एवं सहयोग सिर्फ कला तक सीमित नही है – आम तौर पर हम देखते हैं कि हमारे विद्यालय में छात्र पढने में एक दूसरे की मदद करते हैं एवं इस प्रक्रिया में खुद भी बेहतर होते चले जाते हैं.. विद्यालय की प्रिंसिपल श्रीमती जी. आर मधुलिका ने बताया कि इस तरह की गतिविधियों से शिक्षकों को बच्चों से संवाद एवं सकारात्मक संबंध विकसित करने में मदद मिलती है साथ ही, बच्चे आपस में भी काफी घुल मिल जाते हैं..