बिलासपुर। कोरोना संकट के बीच लाॅकडाउन की अवधि में संचालक लोक शिक्षण संचालनानलय रायपुर के द्वारा फीस स्थगित रखने के संबंध में 1 अप्रैल सभी प्राईवेट स्कूलों को स्पष्ट निर्देश दिया गया था। जिसे लेकर बिलासपुर प्राईवेट स्कूल्स मैनेंजमेंट एसोसिएशन ने बिलासपुर हाईकोर्ट में याचिका दायर कर शिक्षण शुल्क लेने की अनुमति की मांग की थी। इसे लेकर हाईकोर्ट में स्कूल शिक्षा विभाग के तरफ से 26 जून को जवाब प्रस्तुत कर यह कहा गया है सरकार इस मामले में गंभीरता से विचार कर रही है। अगले सप्ताह तक कोई निर्णय लिया जाएगा। इस मामले की आज यानी 3 जुलाई को सुनवाई होनी है। निजी स्कूलों को अभिभावक फीस देंगे या नहीं, आज इस पर फैसला आ सकता है।
छत्तीसगढ़ पैरेंट्स एसोसियेशन के प्रदेश अध्यक्ष क्रिष्टोफर पाॅल ने भी स्कूल शिक्षा विभाग और संचालक को पत्र लिखकर ऑनलाइन क्लासेस और फीस को पालको को हो रही परेशानी से अवगत कराया जा चुका है। आज एसोसियेशन की ओर भी पालको का पक्ष हाईकोर्ट में प्रस्तुत करने की अनुमति मांगी गई है, क्योंकि कई स्कूलों के द्वारा ऑनलाइन क्लासेस आरंभ कर पालको से फीस वसूला जा रहा है, जबकि मामला हाईकोर्ट में विचाराधीन है. फिर कई स्कूलों के द्वारा फीस जमा नहीं करने वाले बच्चों के साथ जो जानबूझकर भेदभावपूर्ण अमानविय व्यवहार किया जा रहा है वह उचित नहीं है। जिन पालको ने लाॅकडाउन अवधी (अप्रैल से जून 2020) का फीस जमा नहीं किया है उनके बच्चों को 1 जुलाई से ऑनलाइन क्लासेस से वंचित कर दिया गया है। उनके क्यू एप्प ओपन नहीं हो रहे स्कूल वालों ने उसे ब्लाॅक कर दिया है।
पाॅल का कहना है कि पालको ने फीस इसलिए जमा नहीं किया, क्योकि स्कूल शिक्षा विभाग ने लाॅकडाउन की अवधि में फीस स्थगित रखने का निर्णय लिया गया है और मामला अभी हाईकोर्ट में विचाराधीन है, लेकिन कई प्राईवेट स्कूलों के द्वारा बच्चों को शिक्षा से वंचित किया गया। एनसीपीसीआर दिल्ली के जारी सर्कुलर 21 अप्रैल की कंडिका दो में यह स्पष्ट लिखा है कि फीस जमा नहीं करने पर भी बच्चों को शिक्षा से वंचित नहीं किया जा सकता है। शिक्षा पाना बच्चों का मौलिक अधिकार है और फीस जमा नहीं कर पाने के कारण उन्हे शिक्षा से वंचित करना गंभीर अपराध है। अब प्राईवेट स्कूलों और पालकों को आज होने वाले हाईकोर्ट में सुनवाई के बाद आदेश का इंतजार है।