गरियाबंद- विजय सिन्हा
राज्य शासन लोगों को स्वास्थ्य सुविधा देने की बात तो कह रही है , लेकिन धरातल पर ये बात कितनी सच्ची है इसकी बानगी गरियाबंद के सामला घुटकुनवापारा में देखने को मिली है। जहां स्वास्थ्य सुविधा वेंटिलेटर पर है। इस बार एक प्रसूता की जान पर बन आई ।
कोरोना का डर या कामचोरी
गरियाबंद जिला मुख्यालय से 8 किलोमीटर दूर ग्राम घुटकुनवापरा निवासी बलराम गन्धर्व की पत्नी की प्रसव पीड़ा गुरुवार सुबह शुरु हुई । जिसकी डिलवरी कराने के लिए महिला स्वाथ्य कार्यकर्ता के पास जाकर मितानिन से संपर्क किया गया। लेकिन मितानिन ने प्रसूता के पति को ये कहकर वापस लौटा दिया गया कि अभी कोरोना का संक्रमण फैला है इसलिए वो डिलिवरी नहीं करवा सकती।
भटक रही थी दर्द में तड़पती प्रसूता
लिहाजा बलराम ने अपनी तड़पती पत्नी को उपस्वास्थ्य केंद्र सोहागपुर ले जाने का फैसला किया। इसके बाद एक वैन में बलराम ने अपनी पत्नी को रखा और सीधा उपस्वास्थ केंद्र की ओर चल पड़ा। लेकिन इस अस्पताल में पहुंचकर भी उसे वही कोरोना वाली कहानी सुना दी गई । इसके बाद पीड़ित परिवार ग्राम कोचवाय उपस्वास्थ्य केंद्र पहुंचा लेकिन उन्हें इस बार स्वास्थ्य केंद्र के अंदर ही नहीं आने दिया गया बल्कि बलराम और उसकी दर्द में तड़पती बीवी को दरवाजे से ही वापस जाने को बोल दिया गया। । जिससे परेशान होकर बलराम ने अपने घर में ही डिलिवरी कराने की सोची और वापस लौटते वक्त बहेराबुड़ा गांव में महिला ने एक स्वस्थ्य बच्ची को जन्म दे दिया।
जिम्मेदार अब झाड़ रहे मामले से पल्ला
इस लापरवाही के बारे में जब सीएमएचओ से हमने बात करने की कोशिश की तो सीएमचओ ने फोन नहीं उठाया ।वहीं जब उपस्वास्थ्य केंद्र के स्टाफ से महिला को वापस करने की बात कही गई तो उसने कोरोना संक्रमण की बात कहकर पूरे मामले से पल्ला झाड़ लिया। यानी साफ है कि सरकारी तंत्र कह कुछ रहा है और कर कुछ रहा है। एक तरफ तो शासन करोड़ों रुपए खर्च करके स्वास्थ्य सुविधाएं गांव-गांव तक पहुंचाने की बात कह रही है। वहीं दूसरी तरफ बलराम जैसे गरीब लोगों को आज भी स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए अपनों की जान खतरे में डालना पड़ रहा है।