एतिहासिक साक्ष्य ये कहते है कि कोहिनूर विश्व का सबसे बड़ा हीरा था जब यह पहली बार मिला तो इसका आकार 186 कैरेट का था आज यह महज 105.6 कैरेट का रह गया है। कोहिनूर कई राजाओं और सुल्तानों के हाथों से होता हुआ वर्तमान में यह ब्रिटेन की महारानी के मुकुट की शोभा बढ़ा रहा है। प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिकी यात्रा की खबर आई थी जिसमें मोदी जी को अमेरिका से दुर्लभ भारतीय कलाकृतियों को लाना बताया गया था ।
भारत के हाथ से कैसे चला गया ?
भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ड में सरकार का पक्ष रखा है और कहा कि ये हीरा ना तो चुराया गया था और ना ही बलपूर्वक ले जाया गया था। बल्कि इसे बतौर भेंट अंग्रेजों को दिया गया और भेंट में दी गई चीजों को वापस नहीं मांगा जाता है।
क्या है कोनिूर और क्यों इतना मषहूर है यह । इसको लेकर जब तब इतनी चर्चा क्यों होती रहती है? कोहिनूर में क्या है खास देखिए एक नजर में ।
कोहिनूर का शाब्दिक अर्थ है प्रकाश का पहाड़ ,
यह दुनियाँ का सबसे मशहूर हीरा है। मूल रूप से आंध्र प्रदेश के गोलकोंडा खनन क्षेत्र में निकला था कोहिनूर मूल रूप से ये 793 कैरेट का रहा गया है जिसका वजन 21.6 ग्राम है। एक समय में इसे दुनियाँ का सबसे बड़ा हीरा माना जाता था।
कोहिनूर के बारे में पहली जानकारी 1304 के आसपास की मिलती है तब यह मालवा के राजा महलाकदेव की संपत्ति में शामिल था। एक अन्य जानकारी के मुताबिक यह 1100 और 1300 ई में दक्षिण भारत में मिला था।
इसके बाद इसका जिक्र बाबरनामा में मिलता है। बाबर ने कहा है कि यह इतना कीमती है कि इससे दुनियाँ का दैनिक खर्च चलाया जा सकता है। मुगल शासक बाबर की जीवनी के मुताबिक, ग्वालियर के राजा विक्रमजीत सिंह ने अपनी सभी संपत्ति 1526 में पानीपत के युद्ध के दौरान आगरा के किले में रखवा दी थी। बाबर ने युद्ध जीतने के बाद किले पर कब्जा जमाया और तब 186 कैरेट के रहे हीरे पर भी कब्जा जमा लिया । तब इकास नाम बाबर हीरा पड़ गया था। इसके बाद ये हीरा मुगलों के पास ही रहा ।
नादिर शाह के समय
साल 1738 में ईरानी शासक नादिर शाह ने मुगलिया सल्तनत पर हमला किया । । साल 1739 में उसने दिल्ली के तत्कालीन शासक मोहम्मद शाह को हरा कर उसे बंदी बना लिया और शाही खजाने को लूट लिया । इसमें बाबर हीरा भी था। इस हीरे का नाम नादिर शाह ने ही कोहिनूर रखा।
नादिर शाह कोहिनूर को अपने साथ ले गया । साल 1747 में नादिर शाह के अपने ही लोगों ने उसकी हत्या कर दी । इसके बाद कोहिनूर नादिर शाह के पोते शाहरूख मिर्जा के कब्जे में आ गया ।
कोहिनूर के बारे में यह कहा जाता है कि यह बड़ा ही अभिशप्त है । जिसके पास भी यह रहा उसका पतन होता गया । इसी श्राप केवल महिला शासकों को ही नहीं लग सकता है ।
चौदह साल के शाहरूख मिर्जा की नादिर शाह के बहादुर सेनापति अहमद अब्दाली ने काफी मदद की तो शाहरूख मिर्जा ने कोहिनूर को अहमद अब्दाली को ही सौंप दिया ।
अहमद अब्दाली इस हीरे को लेकर अफगानिस्तान तक पहुँचा । इसके बाद यह हीरा अब्दाली के वंशजों के पास रहा ।
अब्दाली की वंशज शाह शुजा दुरानी जब लाहौर पहुँचा तो कोहिनूर उसके पास था। पंजाब में सिख राजा महाराजा रणजीत सिंह का शासन था। शुजादुरानी ने 1813 में कोहिनूर हासिल महाराजा रणजीत सिंह को सौंप दिया ।
रणजीत सिंह कोहिनूर हीरे को अपने ताज में पहनते थे। साल 1843 में उनकी मौते के बाद हीरा उनके बेटे दिलीप सिंह तक पहुँचा ।
साल 1849 में ब्रिटेन ने महाराजा को हराया । दिलीप सिंह ने लाहौर की संधि पर तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी के साथ हस्ताक्षर किए। इस संधि के अनुसार कोहिनूर को इंग्लैंड की महारानी को सौंपना पड़ा।
कोहिनूर को लॉर्ड डलहौजी 1850 में लाहौर से मुबंई लेकर आया और वहाँ से छः अप्रेल, 1850 को मुबई से इसे लंदन के लिए भेजा गया ।
3 जुलाई, 1850 को इसे बर्कींघम पैलेस में महारानी विक्टोरिया के सामने पेश किया गया । 38 दिनों में हीरों को शेप देने वाली मशहूर डच फर्म कोस्टर ने इसे नया आकार दिया । इसका वजन तब 108.93 कैरेट रह गया । यह रानी के ताज का हिस्सा बना । अब कोहिनूर का वजन 105.6 कैरेट है
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद 1953 में भारत ने कोहिनूर की वापसी की मांग की थी जिसे इंग्लैण्ड ने अस्वीकार कर दिया था।
साल 1976 में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने भी इसकी मांग की थी। जिसे ब्रिटेन ने खारिज कर दिया ।