बस्तर में सितम्बर के महीने से ही एक के बाद एक त्योहारों का दौर शुरू हो जात है । हालाँकि , हर फसल को खाने के बाद उसकी पूजा अर्चना करना यहाँ का रिवास है जैसे गर्मियों में आम लगने के बाद उसकी पूजा कर के ही उसे खाने का यहाँ रिवाज है , और इसीलिए यहाँ “ आमा तिहार” (आम का त्यौहार , मनाया जाता है बहरहाल, बारिश के बाद जिस त्यौहार का बेसब्री से इंतज़ार होता है वह है नया खानी यह त्यौहार लगातार 15 दिनों तक चलता है और किसान इसे अपनी सुविधानुसार मनाता है । क्या है “नवाखानी”
बस्तर में किसी भी फसल के उपयोग से पहले उसकी पूजा अर्चना की जाती है, इसीलिए जब अन्न (धान की फसल ) पक जाती है तो उसको उपयोग करने से पहले एक त्यौहार मनाया जाता है जिसे “नयाखानी” कहते है। ये त्यौहार अन्य फसलो के त्योहारों से ज्यादा अहमियत रखता है । एसा इसलिए क्योंकि इस त्यौहार में देवी अन्नपूर्णा यानि लक्ष्मी की पूजा की जाती है जो हमें अन्न प्रदान करती है और अन्न यहाँ का प्रमुख भोजन है ।
कैसे मनाया जाता है नवाखानी यहाँ ?
धान की फसल 60 दिन में तैयार हो जाती है इसीलिए इसे सठिया कहा जाता है यानी यह खेतों में पक कर तैयार होने में पुरे साठ दिन का वक्त लगता है और जब यह पूरी तरह पक कर तैयार हो जाता है तो ग्रामीण अपनी पुरे वाद्य यंत्रों के साथ खेत में पहुचता है और एक मुठ्ठी धान की बाली तोड़ कर उसे कांसे के बर्तन में नए कपड़ों को बांध कर ढक देता है।
और उसे नई फसल को कूटकर इसमें गुड, और चिवड़ा (कुटा हुआ चावल ) मिला कर देवी अन्नपूर्णा के प्रसाद के रूप में इसे ग्रहण करता है । यह सिलसिला पुरे महीने चलता और इस दौरान कई धार्मिक आयोजन किये जाते है । जैसा कि मैंने पूर्व में कहा था , यह आयोजन पुरे 15 दिनों तक चलता है ।
बस्तर अनेक प्रकार के रिवाजो के लिए जाना जाता है । बस्तर में दशहरे के दौरान भी नयाखानी की प्रथा है जब भीतर रैनी नामक रस्म के तहत राज परिवार के सदस्य या स्वंय राजा माड़िया जनजातियों के बुलावे पर कुम्हाड़ाकोट जाते हैं और उनके साथ नए फसल की तैयार भोजन करते हैं तो उस दिन भी नया खानी होता है। यहाँ के त्यौहार भी अलग ही होते है जैसे बस्तर दशहरा वैसे तो दशहरा पूरे देश में मनाया जाता है और उसका कारण राम की रावण पर विजय है मगर बस्तर में मनाये जाने वाले दशहरा का कारण कुछ और ही है
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वर्तमान मे इसे मनाने के स्वरुप में ये परिवर्तन आ गया है कि अब इस दौरान जानवरों की बलि की प्रथा लगभग ख़त्म हो चुकी है, कहीं-कहीं इस आयोजन में कथित तौर पर बलि प्रथा सुनाई में ज़रूर आती है, मगर यह पूर्ण रूप से धार्मिक आयोजन है इस दौरान ग्रामीण एक दुसरे के घर जाकर बधाई देते है और नवा खानी की शुभकामनायें देते है