जगदलपुर / स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने बस्तर प्रवास के दौरान बताया कि बस्तर के ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले 80 प्रतिशत लोगों में 11 से कम हीमोग्लोबीन है। उन्होंने बताया कि महारानी अस्पताल में एक ऐसे बच्चे से मिले जिसका हीमोग्लोबीन मात्र दो है। जो निश्चित ही चिंता की बात है। राज्य व केंद्र सरकार को बस्तर की नक्सली समस्या को खत्म करने की तर्ज पर ही हीमोग्लोबीन बढ़ाने की योजना भी बनानी चाहिए, ताकि हीमोग्लोबिन की कमी की समस्या से बस्तरवासियों को मुक्ति मिल सकें। पुलिस प्रशासन जिस तरह से बस्तर में नक्सलियों के खिलाफ अभियान चलाये हुए है, उसी तर्ज पर स्वास्थ्य विभाग को भी बस्तर के ग्रामीण क्षेत्रों में हीमोग्लोबीन बढ़ाने का अभियान चलाया जाना चाहिए, क्योकि वर्तमान में बस्तर में चल रहे मध्यान भोजन, व आंगनबाड़ी के माध्यम से संचालित पौष्टिक योजना दम तोडऩें के कारण बस्तर के 80 प्रतिशत लोगों मेेें 11 से कम हीमोग्लोबीन है, जो नक्सली समस्या से भी ज्यादा चिंता की बात है, पर सरकार इस समस्या को नक्सली समस्या की तरह गंभीरता से क्यों नही लेती है?
सरकार और पुलिस प्रशासन बस्तर की नक्सली समस्या के समाधान के लिए रणनीति दशकों से बना रही है, इस मुद्दे पर जम कर राजनीति भी होती रही है, लेकिन अभी तक इस समस्या का समाधान नही हो सका है जबकि हीमोग्लोबीन की नई समस्या बस्तर में अपनी जड़ों केा मजबूत करती जा रही है। बस्तरवासियों में हीमोग्लोबीन की भारी कमी इस बात का प्रमाण है कि बच्चों के लिए चलाये जाने वाले मध्यान भोजन व आंगनबाड़ी में पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराने की योजना पूरी तरह से भ्रष्टाचार का शिकार हो रही है, जिसका खामियाजा बस्तरवासियों को भुगतना पड़ रहा है। सुकमा क्षेत्र में रहस्यमय बीमारी से अनेकों लोगों की मौत हो रही है, अगर इतनी मौते नक्सली हादसे में होती तो दिल्ली तक हिल गई होती, लेकिन रहस्यमय बीमारी से हुई मौत प्रदेश में भी सुर्खियां नही बटोर सकी। स्वास्थ्य के मामले पर बस्तर की हालत बहुत खराब होने के बाद भी सरकार स्वास्थ्य सेवाओं को बेहत्तर बनाने की जगह नक्सलियों से निपटने के लिए नये नयेे कैंपों स्थापित करते जा रही है।