नई दिल्ली। कोरोना से आज पूरा देश हर घड़ी जुझ रहा है, अस्पतालों में डाॅक्टर, नर्स और उनका पूरा स्टाफ डटा हुआ है। बाहर जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन के क्या अफसर तो क्या कर्मचारी, हर कोई अपनी जिम्मेदारी निभा रहा है। क्योंकि इन्हें दायित्व सौंपा गया है, सरकार ने इन्हें आदेशित किया है। लिहाजा ड्यूटी निभा रहे हैं, हालांकि इनमें से ज्यादातर लोग ड्यूटी से कहीं ज्यादा कर रहे हैं। पर इन सबसे परे, एक पिता-पुत्र की जोड़ी ऐसी है, जो इंसानियत के लिए कोरोना योद्धा बन गए हैं। ना इन्हें किसी ने जिम्मेदारी सौंपी, ना ही किसी ने कोई आदेश दिया और ना ही ये किसी के आदेश को मानने के लिए मजबूर हैं, पर देश के लोगों के प्रति स्नेह ने इन्हें यह करने पर मजबूर कर दिया।
दिल्ली निवासी जितेन्द्र सिंह संटी और उनका पुत्र ऐसे कोरोना योद्धा हैं, जिन्होंने कोरोना पाॅजिटिव होने की वजह से काल के गाल में समाने वाले ऐसे लाशों के कफन-दफन का बीड़ा उठाया, जिन्हें उनके सगे लावारिस हाल में छोड़कर चले गए। अपनी जिंदगी की परवाह किए बगैर इन पिता-पुत्रों ने 265 लाशों का अंतिम संस्कार किया। इसके लिए ना तो किसी से मदद मांगी और ना ही मीडिया को बुलाकर वाहवाही लुटने का प्रयास किया। सारा खर्च भी खुद ही वहन करते आ रहे हैं, लेकिन उफ्फ तक नहीं किया।
कोरोना संक्रमित लाशोें का अंतिम संस्कार, जिसे डाॅक्टर भी पूरी सावधानी बरतते हुए करते हैं, क्योंकि इनसे संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है, पर इस खौफ को इन्होंने नजरअंदाज कर दिया और अपनी जिंदगी की परवाह ना करते हुए 265 लोगों का पूरी शिद्दत के साथ अंतिम संस्कार किया। नतीजतन, पिता-पुत्र दोनों कोरोना की चपेट में हैं, लेकिन हौसले अब भी पस्त नहीं हुए हैं। इनका कहना है कि स्वस्थ होने के बाद उनकी यह यात्रा फिर शुरू होगी।