अच्छे से देख लिया है आपने इस वी़डियो को । ये वीडियो पिछले दिन खूब वायरल हुआ लेकिन इस वीडियो के बारे में हम आपको आगे कुछ कहे उससे पहले देखिए कि इस रिश्वतखोर अफसर के खिलाफ शासन ने क्या कार्रवाई की है।
जी ठीक पढ़ा आपने एक रिश्वत खोर अधिकारी जिसका नाम व्ही मधु कुमार है। भारतीय पुलिस सेवा की गरिमा को मिट्टी में मिला रहा है। दक्षिण भारत कैडर का इस अधिकारी के नाम पर मशहूर है कि ये जहां भी जाते हैं वहां पर लिफाफा प्रथा की शुरुआत कर देते हैं। लिफाफा प्रथा यानी की आप समझ गए होंगे। अपने अधीनस्थ काम करने वालों पर बाबू साहब बड़ी नजर रखते हैं. सरकारी गेस्ट हाउस में रुकते हैं । सरकार का पैसा खाते हैं और साथ ही साथ अपने नीचे के कर्मचारियों को रिश्वतखोरी के दलदल में फंसने के लिए मजबूर करते हैं। लिफाफा में पेशगी लेने के बाद जनाब उसको बड़े ही सलीके से दबा के सूटकेस में रखते हैं। एक एक पाई का हिसाब रखा जाता है। किसने कब कितना दिया है। जरा देखिए तो कितनी तेजी से लिफाफा सूटकेस के अंदर जा रहा है । और तो और बाथरूम जाते वक्त जनाब इस सूटकेस को लॉक करना नहीं भूले जैसे इनकी कमाई हुई मिल्कियत इसके अंदर बसी हो। लेकिन हद तो तब हो गई जब जनाब का ये वी़डियो वायरल हुआ और शासन से ये अपेक्षा की गई कि कोई बड़ी कार्रवाई होगी।
कार्रवाई के नाम पर खानापूर्ति
लेकिन ऐसा हो न सका। क्योंकि इस वीडियो के वायरल होने के बाद उनसे परिवहन सेवा की जिम्मेदारी छीनकर भोपाल पीएचक्यू में तैनाती दे दी गई। जैसे कि गीले गद्दे के ऊपर चादर बिछाई जा रही हो। लेकिन सवाल ये है कि यदि गद्दा पूरी तरह से गीला हो चुका हो तो वो शरीर में खुजली पैदा करेगा। जब तक की उसे धूप ना दिखाई जाए। लेकिन इस मामले में तो पूरा का पूरा गद्दा तालाब भर पानी में गीला हो चुका है।इसे कोई धूप सूखा नहीं सकती । लिहाजा शासन को चाहिए था कि ऐसे मामले में ठोस एक्शन ले।
लेकिन एक्शन के नाम पर सिर्फ प्रभार छीन लेना कहां तक उचित है। सवाल तो उठेंगे ही क्योंकि ये जनाब ये लिफाफे किसके लिए इकट्ठा करते थे ये सभी के सामने लाना जरुरी है। क्योंकि लिफाफे का ये खेल कितने सालों से चल रहा है और अब तक कितने के लिफाफे ये इकट्ठा कर चुके हैं। इस बात की भी जांच होनी चाहिए । ना कि जिम्मेदारी छीनकर किसी दूसरी जगह अटैच करके वापस से मामला ठंडा होने तक का इंतजार करना चाहिए ।