Interesting News : पुराने समय से ही एक ही महिला के कई पतियों की कहानी सुनी है। द्रौपदी ने पांच पांडवों से शादी की थी और हम अभी तक उसके बारे में बात करते हैं। पर क्या आपको पता है कि ऐसी प्रथा आज भी एक जगह इसे सामान्य मानी जाती है। हाल ही में जब महाराष्ट्र में एक ही युवक से दो जुड़वां बहनों की शादी की बात सामने आई तो बहुत विवाद हुआ और अब लड़के पर केस भी हो गया है। पर एक ही लड़की के कई पतियों का चलन की प्रथा भी प्रचलित है।
कुछ सालों पहले तक हिमाचल और अरुणाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों में इससे जुड़ी खबरें आती थीं। किन्नौर जिले में बहुपति विवाह प्रचलित थे, लेकिन लगभग एक दशक से इस प्रथा में कमी आई है। पर दुनिया के एक हिस्सा ऐसा भी है जहां इस तरह की प्रथा सामान्य है। सबसे पहले पत्नी के साथ बड़ा भाई समय बिताता है और फिर उम्र के हिसाब से पत्नी का समय मिलता है।
हम बात कर रहे हैं तिब्बत की जहां पर इस प्रथा को अभी भी निभाया जाता है। हालांकि, ऐसे परिवार अब कम बचे हैं जहां पर इस तरह की प्रथा चल रही है, लेकिन फिर भी ऐसा नहीं है कि ये हो नहीं रही है।
कई सदियों से चली आ रही है ये प्रथा
Melvyn C. Goldstein एक अमेरिकी सोशलिस्ट और तिब्बत स्कॉलर हैं। उन्होंने अपने लेख में लिखा है कि fraternal polyandry तिब्बत में बहुत कॉमन है जहां दो, तीन, चार भाई मिलकर एक ही पत्नी के साथ रहते हैं। सभी के बच्चे भी एक साथ ही होते हैं और कौन किसका पिता है कई बार इसके बारे में पता भी नहीं होता है। ये पुराने जमाने में काफी प्रचलित था, लेकिन अब ये ना के बराबर देखने को मिलता है।
तिब्बत में सबसे बड़ा भाई एक लड़की से शादी करता है और उसके बाद बचे हुए भाइयों की साझा पत्नी मान ली जाती है। वैसे ये अब बदल रहा है, लेकिन अभी भी बिना माता-पिता की मर्जी के शादियां नहीं होती हैं। वैसे इसे लेकर अलग-अलग कारण बताए जाते हैं, लेकिन शादी की रस्में परिवार के तबके के हिसाब से होती हैं। परिवार का सबसे छोटा बेटा अधिकतर शादी की रस्में अटेंड नहीं करता है, हां अगर उसकी उम्र थोड़ी बड़ी है तो उसे हिस्सा लेने दिया जाएगा।
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आखिर क्यों तिब्बत में बन गया ऐसा रिवाज?
चीन के तिब्बत पर अधिग्रहण के बाद से इस तरह की शादी का रिवाज बहुत कम हो गया है, लेकिन ग्रामीण इलाकों में अभी भी ये चल रहा है। Melvyn के लेख के मुताबिक 1950 तक तिब्बत में बौद्ध भिक्षु की संख्या 1 लाख 10 हज़ार से ज्यादा थी। इसमें से 35% से ऊपर शादी की उम्र वाले भिक्षु थे। अधिकतर परिवारों में सबसे छोटे बेटे को भिक्षु बनने भेज दिया जाता था ताकि छोटी सी जमीन का बंटवारा ना हो। ये उसी तरह का रिवाज था जैसे इंग्लैंड में प्राचीन काल में नाइटहुड के लिए सबसे छोटे बेटे को भेज दिया जाता था जिसके पास कोई प्रॉपर्टी नहीं होती थी।
इसके बाद धीरे-धीरे जमीन के बंटवारे को रोकने के लिए महिलाओं की एक ही परिवार में अन्य भाइयों से शादी करवाने की प्रथा शुरू हो गई। ये प्रथा इसलिए चलती रही ताकि जमीन का बंटवारा ना हो और टैक्स सिस्टम से बचा जा सके। तिब्बत में इस तरह की प्रथा को 1959 से 1960 में कानूनी तौर पर बंद करने के आदेश चीन द्वारा दिए गए थे, लेकिन अभी भी यहां कुछ जगह चल रहा है।